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हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के मसौदे का खुलासा किया है। यह योजना उस सामान्य दस्तावेज से कहीं अधिक है जो सरकार हर पांच साल बाद जारी करती है। यह आम आदमी के हित में सरकार की योजनाओं का खाका पेश करती है। बारहवीं योजना देश के विकास का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करती है। योजना के अनुसार अगले पांच वर्षो में देश की औसत विकास दर 8.2 फीसदी रहने की उम्मीद है, किंतु योजना केवल विकास से कहीं अधिक है। यह समावेशी है यानी इसमें सुनिश्चित किया गया है कि विकास का लाभ गरीबों और वंचितों तक भी पहुंचे-खासतौर पर महिलाओं, अनुसूचित जातियों-जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गो को इसका भरपूर लाभ मिले। इसके अलावा योजना में टिकाऊ विकास पर जोर दिया गया है। सुनिश्चित किया गया है कि विकास और संवृद्धि के दौरान पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे। कुछ लोगों का सवाल है कि आर्थिक विकास का लक्ष्य इतना महत्वपूर्ण क्यों है? बारहवीं पंचवर्षीय योजना में 8.2 फीसदी विकास दर आम आदमी के लिए इतनी प्रासंगिक क्यों है? इसे इस सीधे से गणित से समझा जा सकता है। अगर आज एक आदमी की कमाई 1,000 रुपये है तो 8.2 फीसदी की विकास दर के साथ पांच साल में यह बढ़कर 1,480 तथा दस साल में 2,200 रुपये हो जाएगी। यही नहीं, केवल आर्थिक वृद्धि के बल पर ही करोड़ों लोगों को रोजगार मिल सकता है।
बारहवीं योजना में हमनें पांच करोड़ लोगों को रोजगार देने का लक्ष्य रखा है। आर्थिक विकास से ही सरकार को इतनी आय होती है जो वह सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों, खासतौर पर गरीबों और वंचितों के लिए योजनाओं को चला सकती है। 2004 के बाद उच्च विकास दर के कारण ही संप्रग सरकार मनरेगा, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना आदि कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक चला पाई है। इसके अलावा प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना तथा सर्व शिक्षा अभियान आदि पर खर्च में दोगुना से अधिक वृद्धि भी इसी विकास के बल पर हुई है। बारहवीं पंचवर्षीय योजना में पांच बड़े बिंदुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है। पहला, संप्रग सरकार की राज्यों को अधिक संसाधन मुहैया कराने की वचनबद्धता। योजना के अनुसार ग्रामीण विकास फ्लेक्सी फंड (आरडीएफ) की स्थापना की जाएगी। इस निधि में प्रारंभ में 40,000 करोड़ रुपये आवंटित किए जाएंगे। इस योजना में केंद्रीय सरकार प्रादेशिक जरूरतों और प्राथमिकताओं की पूर्ति के लिए सीधे राज्य सरकारों को अंशदान करेगी। उदाहरण के लिए बिहार ग्रामीण सड़कों के निर्माण पर अधिक खर्च करने की इच्छा जता सकता है, जबकि राजस्थान ग्रामीण जल आपूर्ति पर। यह निधि दोनों राज्यों को अपनी-अपनी पसंद की मद में धन उपलब्ध कराएगी। इस योजना का प्रमुख जोर परस्पर संबद्ध स्वास्थ्य, पोषण, जल आपूर्ति, साफ-सफाई आदि पर रहेगा।
प्रधानमंत्री कुपोषण को राष्ट्रीय शर्म बता चुके हैं। सरकार इन प्राथमिकताओं पर अधिक खर्च करने जा रही है। तमाम भारतीयों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए योजना में राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान का दायरा बढ़ाया जाएगा। अधिक जोर रोकथाम के उपायों और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं पर रहेगा। योजना में बाल कुपोषण को घटाकर आधा करने का प्रस्ताव है। साथ ही निर्मल भारत अभियान पर विशेष जोर है। इस अभियान में जनता की भागीदारी से टिकाऊ स्वच्छता क्रांति की जाएगी तथा खुले में शौच करने वाले कम से कम आधे गांवों को पांच साल में निर्मल ग्राम बनाया जाएगा। योजना की तीसरी विशेषता है भ्रष्टाचार से निपटने का दृढ़ संकल्प। इसके लिए संसाधनों के आवंटन में पूर्ण पारदर्शिता सुनिश्चित की गई है। योजना में प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन के लिए प्रतिस्पर्धी निविदा प्रक्रिया अपनाने, पारदर्शी सार्वजनिक खरीद के लिए विधेयक लाने और नागरिकों की शिकायतों के निवारण के लिए तंत्र विकसित करके शासन में पारदर्शिता लाई जाएगी। योजना की चौथी खूबी है राजीव गांधी पंचायत सशक्तीकरण अभियान के माध्यम से पंचायती राज संस्थानों के सुदृढ़ीकरण का दृढ़ संकल्प। योजना में पंचायतों के लिए बजट में दस गुना की वृद्धि की गई है। यह अभूतपूर्व वृद्धि है। इससे हमारी ग्राम पंचायतें और ग्राम सभाओं को मजबूती मिलेगी। इसमें ऐसा तंत्र विकसित किया जाएगा कि योजनाओं में अधिक से अधिक लोगों की भागीदारी हो और इनके लाभ आम आदमी तक पहुंचें। अभियान के तहत राज्यों को अतिरिक्त धनराशि मुहैया कराई जाएगी ताकि वे अपने पंचायत राज संस्थानों को मजबूत कर सकें। योजना की पांचवीं विशेषता यह है कि पहली बार विकास प्रक्रिया में पर्यावरण की सुरक्षा का ध्यान रखा गया है।
योजना में पर्यावरण के मोर्चे पर स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं ताकि हम लक्ष्य की पूर्ति के लिए महज जबानी जमाखर्च ही न करते रहें। उदाहरण के लिए योजना में कार्बन उत्सर्जन को 2020 तक 20-25 फीसदी घटा कर इसे 2005 के आधार वर्ष के स्तर पर लाया जाएगा। यह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग का विश्वसनीय संकल्प है। इसी प्रकार वन संपदा के संरक्षण का भी लक्ष्य रखा गया है। पिछले आठ वर्षो में संप्रग सरकार ने आम आदमी को लेकर किए गए अनेक वायदों को पूरा किया है। इसकी पुष्टि के लिए दो उदाहरण काफी हैं। 1993-94 से लेकर 2004-05 तक भारत में गरीबी दर में प्रति वर्ष 0.7 फीसदी की कमी आ रही थी। 2004-05 यानी जब संप्रग सरकार ने कार्यभार संभाला था, से लेकर 2009-10 तक निर्धनता दर में गिरावट की रफ्तार दोगुनी होकर 1.5 फीसदी पर पहुंच गई। इसी प्रकार 1993-94 से लेकर 2004-05 तक आर्थिक विकास दर औसतन 6.2 फीसदी रही, जबकि 2004-05 से लेकर 2009-10 तक विकास दर 8.4 प्रतिशत पर पहुंच गई। इसके अलावा अभी बहुत कुछ करना शेष है। आजादी की पूर्व संध्या पर देश को संबोधित करते पंडित नेहरू ने कहा था कि हमारी पीढ़ी के महानतम व्यक्ति (महात्मा गांधी) की आकांक्षा हर आंख से आंसू पोंछना है। यह हमारे बूते से बाहर हो सकता है, लेकिन जब तक आंसू और पीड़ा है, तब तक हमारा काम खत्म नहीं होगा..। यही वह प्रेरणा है जो 12वीं योजना में संप्रग सरकार के दृढ़ संकल्प को रेखांकित करती है। अधिक समावेशी और अधिक टिकाऊ विकास, मजबूत पंचायतें, अधिक पारदर्शिता तथा अंतत: आम आदमी के लिए अधिक संपन्नता ही बारहवीं योजना का लक्ष्य है।
लेखक जयराम रमेश केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री हैं
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