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हृदय परिवर्तन की कहानियां

जागरण मेहमान कोना
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लंबे समय से कहानियां लिख रहे सूर्यकांत नागर के आठ कहानी संग्रह और दो उपन्यास छप चुके हैं। हिंदी की छोटी-बड़ी प्राय: सभी पत्रिकाओं में उनकी कहानियां छपती आ रही हैं और अब उनकी संपूर्ण कहानियां भी छप रही हैं। उनकी कथा-यात्रा अनेक पड़ावों से गुजरते हुए जारी है। अपनी संपूर्ण रचनाओं में से कुछ को श्रेष्ठ के रूप में चुनना किसी भी लेखक के लिए बहुत मुश्किल होता है। कहानीकारों को अपनी कुछ कहानियों से कई तरह के मोह होते हैं, जिनके पाश में फंसकर लेखक गलत चुनाव भी कर बैठते हैं और फिर श्रेष्ठ रचना चुनने के जो पैमाने बनाए जाते हैं, उन पर किसी रचना का खरा उतरना प्राय: कठिन होता है। नागर की चुनी हुई कथाओं के संग्रह श्रेष्ठ कहानियां में उनकी 17 कहानियां संग्रहीत हैं : न घर न घाट, मृगतृष्णा, तमाचा, तैरती मछली के आंसू, निशांत, मुक्ति पर्व, कायर, बलि, फर्क, अंधेरे में उजास, जल्दी घर आ जाना, बूढ़ी चाची, बेटियां, दहशतजदा तथा जीने-मरने के बीच आदि। इन कहानियों में समकालीन साहित्य की मुख्य धारा के सभी विषय मौजूद हैं। इसमें एक तरफ ग्रामीण जनजीवन के बोलते चित्र हैं तो यादगार चरित्र भी। दूसरी तरफ, महानगरीय जीवन के अच्छे-बुरे वृत्तांत भी इन कहानियों में मौजूद हैं।


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इनमें मजबूत और कमजोर चरित्रों से लेकर अविस्मरणीय चित्र तक पाठक को सबकुछ मिलता है। कई दशकों से साहित्य की मुख्यधारा में शामिल दलित और स्त्री जीवन की कई कहानियां भी इसमें हैं। इस रूप में कह सकते हैं कि लेखन और लेखक की सभी प्रवृत्तियों को इस संग्रह में एक साथ पढ़ा जा सकता है। जल्दी घर आ जाना पति-पत्नी के प्रगाढ़ संबंधों पर आधारित एक महत्वपूर्ण रचना है। पत्नी के अन्यत्र चले जाने पर नायक को लगता है कि अब उसके जैसा सुखी और स्वतंत्र इंसान दूसरा नहीं। वह पूरी तरह स्वछंद जीवन जीने के लिए आजाद है। कुछ दिन तक तो उसे यह सब अच्छा लगता रहता है, लेकिन फिर दिन-प्रतिदिन की व्यावहारिक दिक्कतों से घबराकर नायक के विचार बदल जाते हैं। उसे लगता है कि पत्नी के बिना जीवन अधूरा है। अचानक उसे बेतरह पत्नी की याद सताने लगती है और इस सत्य का भान भी हो जाता है कि उसकी इस स्वतंत्रता का कोई मतलब नहीं है। बलि में नाव में बैठी बच्ची का हाथ जब मगरमच्छ खींच लेता है तो बाकी लोग अपनी जान बचाने के लिए बच्ची को धक्का दे देते हैं, ताकि बच्ची को मगर खींच ले जाए और नाव डूबने से बच जाए, वरना बच्ची के साथ सभी बेवजह मारे जाएंगे।


इसी तरह तमाचा का नायक सोचता है कि जो व्यक्ति उससे मिलने आ रहा है, वह निश्चित रूप से कुछ मांगने के लिए ही आ रहा है। वह उसके आने के कारणों की अनेक कल्पनाएं कर डालता है। अंतत: एक दिन वह आ धमकता है और नायक के सामने जो प्रस्ताव रखता है, उससे उसकी आंखें खुल जाती हैं। अतिथि बताता है कि मुझे पता चला है कि आपके बेटे की किडनी खराब है। मैं उसे अपनी किडनी देना चाहता हूं। यहीं नायक को यह भी पता चलता है कि उस व्यक्ति के बेटे के लिए समय पर किडनी की व्यवस्था न होने से उसका देहांत हो गया था, जिसकी टीस उसके भीतर अब तक मौजूद है, जिसकी भरपाई वह नायक के बेटे को अपनी किडनी देकर करना चाहता है। यह कहानी कथित अभिजात और साधारण वर्ग की सोच के अंतर को सशक्त तरीके से रेखांकित करती है। निशांत में अपना अपमान करने वाले छात्र से प्राध्यापक क्रूर ढंग से बदला लेना चाहता है, पर ऐन वक्त पर उसका निर्णय बदल जाता है। नागर के इस संग्रह में हृदय-परिवर्तन की कई कहानियां हैं।


फर्क यों तो महानगरीय और कस्बाई बोध के द्वंद्व को प्रस्तुत करती है, पर उसके मूल में यही है कि अब भी कुछ लोग हैं, जिनमें मानवीय संवेदना बची है और जिनकी वजह से यह दुनिया जीने लायक बनी हुई है। घर-परिवार के रिश्तों को लेकर कहानी लिखना सूर्यकांत नागर की पहली पसंद है। मृगतृष्णा में एक बिगड़ैल पोते को सुधारने के लिए बार-बार प्रयत्न करता एक दादा है। तैरती मछली के आंसू कैंसर से पीडि़त पति के लिए अपना जीवन होम करती स्त्री की मर्मस्पर्शी कथा है, जो प्रेम और त्याग का अविस्मरणीय उदाहरण पेश करती है। ऐसी कहानियां अब भी रिश्तों की ऊंचाई और पवित्रता को नए आयाम देती रहती हैं। कुछ कहानियां समकालीन परिस्थितियों और व्यवस्था पर तीखा व्यंग्य करती हैं। पीएचडी करती लड़की का पिता शिक्षा जगत में फैले भ्रष्टाचार को उजागर करती है तो दहशतजदा में भ्रष्टाचार से दौलत कमाने वाले लोगों का मनोविश्लेषण किया गया है। सूर्यकांत नागर की ये कहानियां पढ़ते हुए यह स्पष्ट हो ही जाता है कि वह भाषा के मामले में लगातार सजग हैं। पात्रों पर वह अपनी भाषा थोपते नहीं, बल्कि पात्रों के हिसाब से ही भाषा का प्रयोग करते है। इस संग्रह की कहानियों को पढ़कर हमारे सामने समाज के अनेक प्रसंग उजागर हो उठते हैं। लेखक ने विभिन्न चरित्रों और प्रसंगों के जरिये अपनी बात प्रभावशाली ढंग से कही है। सूर्यकांत नागर की ये कहानियां, नवनीत, अक्षरा, वीणा, अक्षर शिल्पी, वागर्थ तथा शिखर आदि देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर चर्चा हासिल कर चुकी हैं। उन सब चर्चित कहानियों का एक जिल्द में आ जाना पाठकों के लिए किसी उपहार से कम नहीं।


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Tag: Suryakant Nagar, Madhya Pradesh, Story, Navneet,  नवनीत, अक्षरा, वीणा, अक्षर शिल्पी, वागर्थ, सूर्यकांत नागर, उपन्यास



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