Menu
blogid : 5736 postid : 6311

पाक का पुराना राग

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में अपने भाषण में न सिर्फ कश्मीर का मामला उठाया, बल्कि वहां जनमत संग्रह तक की मांग कर डाली। इससे पाकिस्तान का असली रूप एक बार फिर सामने आ गया है। जम्मू-कश्मीर में समय-समय पर पाकिस्तान के नेता और पाक समर्थक कश्मीरी नेता जनमत संग्रह की बात उठाते हैं, परंतु वे यह नहीं जानते कि हमारे देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था है।


Read:क्या आला कमान गुजराती शेर से डर गई हैं?


यहां विधानसभा व लोकसभा के चुनाव निष्पक्ष रूप से कराए जाते है तथा लोग अपनी खुशी से मतदान करते हैं। यह बात अलग है कि कुछ अलगाववादी और पाक समर्थक तत्व उन्हें मतदान से रोकने के लिए विभिन्न हथकंडे अपनाते हैं तथा धमकियां देते हैं, परंतु प्रदेश की जनता दोगुने उत्साह से मतदान कर उन्हें करारा उत्तर देती है। पंचों-सरपंचों की हत्या की धमकी देकर उन्हें त्यागपत्र देने के लिए मजबूर करना पाकिस्तान की नई नीति है ताकि सीधे लोकतंत्र पर हमला कर उसे कमजोर किया जा सके। ऐसे में सरकार को सुरक्षा बलों व सेना को और ज्यादा मजबूत करने के लिए विशेष अधिकार देने होंगे, जिससे इन षड्यंत्रों को विफल किया जा सके। पिछले दिनों भारत व पाक में काफी सौहार्दपूर्ण वातावरण में बातचीत हुई।


वार्ता में बातचीत करके कश्मीर समस्या का हल निकालने पर भी चर्चा हुई। इस बैठक में कई समझौते किए गए। इससे लोगों ने राहत की सांस ली थी तथा कश्मीर के अलगाववादी तत्व व उनके समर्थक इस बैठक से तथा संयुक्त वक्तव्य से बौखला गए थे। इसी बौखलाहट में आतंकवादियों ने लोकतंत्र को निशाना बनाने के लिए पंचों-सरपंचों को त्यागपत्र देने को कहा तथा उनमें डर पैदा करने के लिए एक दर्जन से ज्यादा पंचों की हत्या भी कर दी। इससे डरकर पंचों ने त्यागपत्र देने प्रारंभ कर दिए। इस समय तक पांच सौ से ज्यादा पंचों ने त्यागपत्र दे दिए हैं। यदि जम्मू-कश्मीर का इतिहास देखा जाए तो यहां की परिस्थितियां देश की परिस्थितियों से सदैव अलग रही हैं।


इस राज्य को 75 लाख रुपये में महाराजा रणजीत सिंह से महाराजा गुलाब सिंह ने खरीदा था तथा यहां डोगरा राज्य की स्थापना की थी। जब पूरे देश में 1940 में महात्मा गांधी द्वारा अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ हुआ तो इस राज्य में भी महाराजा हरि सिंह के विरुद्ध जम्मू-कश्मीर के लोगों ने आंदोलन शुरू कर दिया तथा महाराजा हरि सिंह को गद्दी छोड़ने को कहा। 1948 में महाराजा हरि सिंह ने भी इस राज्य का भारत के साथ विलय-पत्र पर हस्ताक्षर करके भारत का अभिन्न अंग बना दिया परंतु पाकिस्तान को यह मंजूर नहीं था। कबाइलियों के भेष में पाक सैनिकों ने हमला कर दिया। उस समय तत्कालीन राज्य के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला ने भारी विरोध किया तथा यहां की जनता ने कबाइलियों का डट कर सामना किया। राज्य में धीरे-धीरे लोकतंत्र की स्थापना हुई। पंचायतों, विधानसभा, लोकसभा तथा निकायों के समय-समय पर चुनाव हुए।


लोगों के प्रतिनिधि उनकी आवाज को विधानसभा में पहुंचाने लगे कि इस राज्य के लोगों को वही अधिकार हैं जो देश के अन्य राज्यों के नागरिकों को हैं, बल्कि धारा 370 के अंतर्गत कुछ विशेष सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। ऐसे में आजादी का राग अलापना कहां तक उचित है? पाकिस्तान के राष्ट्रपति का ऐसा विवादास्पद वक्तव्य देना इस बात को दर्शाता है कि वह इस समय दबाव में हैं क्योंकि पाकिस्तान के न्यायालय ने उनके पुराने केसों को खोलने के आदेश दिए हैं जिससे उनकी कुर्सी भी जा सकती है। अब वह कुर्सी को बचाने की खातिर कश्मीर को लेकर लोगों का ध्यान बटाने में लग गए हैं, जिस प्रकार पाकिस्तान के पुराने शासक करते रहे हैं।ऐसे में इस राज्य की जनता को किसी के बहकावे में न आकर अपना तथा अपने राज्य का भविष्य देखना होगा, जिससे आने वाली संतानों का भविष्य उज्जवल हो सके।


लेखक  रमेश गुप्ता स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


Read:अब तो भाजपा एक स्वर में बोले नहीं तो……


Tag:India, Indian Government, Pakistan, Asif Ali Zardari, Jammu Kashmir, पाकिस्तान, आसिफ अली जरदारी, संयुक्त राष्ट्र संघ, जम्मू-कश्मीर, महाराजा रणजीत सिंह , महाराजा गुलाब सिंह, प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला, विधानसभा, लोकसभा

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh