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हमारे निकटवर्ती तारामंडल, अल्फा सेंटारी में पृथ्वी जैसे ग्रह की खोज से हमारे पड़ोस में जीवन के अनुकूल ग्रह मिलने की उम्मीद बढ़ गई है। 1995 से अभी तक करीब 800 बाहरी ग्रहों का पता चल चुका है। नया ग्रह इनमें हमारे सबसे नजदीक और सबसे छोटा है। खगोल वैज्ञानिकों ने इस ग्रह पर जीवन होने की संभावना को नकार दिया है, क्योंकि उसकी सतह का तापमान करीब 1500सी है। पृथ्वी के बराबर द्रव्यमान वाला यह ग्रह हर 3.2 दिन बाद अपने तारे की परिक्रमा करता है। अल्फा सेंटारी तारामंडल पृथ्वी से सिर्फ 4.3 प्रकाश वर्ष दूर है, लेकिन वर्तमान रॉकेट टेक्नोलोजी के इस्तेमाल से वहां पहुंचने में 40,000 वर्ष लगेंगे। इस तारामंडल में तीन तारे हैं, अलफा सेंटारी ए और बी तथा प्रोक्सिमा सेंटारी।
हमारे सूरज और बुध के बीच की दूरी की तुलना में नया ग्रह अल्फा सेंटारी बी के ज्यादा नजदीक है। यानी इस ग्रह पर आग बरसती है। वहां की परिस्थितियां जीवन के लायक नहीं है। खगोल वैज्ञानिकों को लगता है कि अल्फा सेंटारी के जीवन-अनुकूल क्षेत्र में पृथ्वी का जुड़वां ग्रह हो सकता है। जेनेवा विश्विद्यालय से जुड़े वैज्ञानिक स्टेफान युर्डी का कहना है कि इस तारामंडल के जीवन योग्य क्षेत्र में पृथ्वी जैसे ग्रह के मिलने की संभावना है। यह पहला अवसर है जब सूरज जैसे तारे के इर्दगिर्द ऐसा चट्टानी ग्रह मिला है जिसका द्रव्यमान पृथ्वी के बराबर है। चूंकि उसकी कक्षा उसके तारे के बहुत करीब है, उसका बेहद गरम होना स्वाभाविक है, लेकिन उस तारामंडल में और भी बहुत से ग्रह होंगे। इन ग्रहों के बीच एक ऐसा ग्रह भी हो सकता है जो जीवन के पनपने की सारी शर्र्ते पूरी करता हो। अंतरिक्ष में करीब 600 प्रकाश वर्ष दूर तारों की बस्तियों की टोह लेने वाले नासा के केप्लर टेलीस्कोप से मिले आंकड़ों के मुताबिक अनेक ग्रह वाले सिस्टम बहुतायत में हैं। खगोल वैज्ञानिकों ने तारे से आने वाले प्रकाश की वेवलेंथ में होने वाले परिवर्तनों पर नजर रखने के बाद नए ग्रह का पता लगाया। इस तकनीक को डोपलर वोबल भी कहते हैं।
इससे पता चलता है कि क्या तारे की हलचल किसी निकटवर्ती ग्रह के गुरुत्वाकर्षण के कारण प्रभावित हो रही है। इसी तकनीक से खगोल वैज्ञानिकों ने 1995 में 51 पेग तारे के इर्दगिर्द ब्रहस्पति जितने विशाल गैस-ग्रह की खोज की थी। अब इस तकनीक के जरिये 51 पेग का चक्कर लगाने वाले विशाल ग्रह से 150 गुना छोटे पृथ्वी सरीखे ग्रहों का पता चल सकता है। नए ग्रह की खोज से वैज्ञानिकों में अंतर-नक्षत्रीय यात्रा को लेकर एक बार फिर दिलचस्प बहस छिड़ गई है। कुछ खगोल वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि हमें सौरमंडल के बाहर जाना है तो हमें सबसे पहले अल्फा सेंटारी को ही लक्षित करना चाहिए, लेकिन वहां कोई अंतरिक्ष यान भेजना असंभव है। यदि कोई सेलफोन जितना यान प्रकाश की गति की 10 प्रतिशत गति भी हासिल कर ले तो भी उसे 40 वर्ष यात्रा करनी पड़ेगी। यह यान तापमान में होने वाले चरम उतार-चढ़ावों को झेलने में सक्षम होना चाहिए। इसे दशकों तक सक्रिय रहना पड़ेगा। ऐसे यान को पृथ्वी के साथ संचार संपर्क बनाए रखने में भी समर्थ होना पड़ेगा। हमें यह भी ध्यान रखना पड़ेगा कि दूसरे ग्रह की परिक्रमा करते हुए यह यान गर्मी से कहीं पिघल न जाए। अल्फा सेंटारी तक पहुंचने वाला यान वोएजर यानों की तरह वहां के ग्रहों के चित्र खींच सकता है और उनके वायुमंडलों का अध्ययन कर सकता है। ध्यान रहे कि वोएजर-1 और वोएजर-2 करीब 35 वर्ष पहले छोड़े गए थे। गहन अंतरिक्ष में आज भी इन दोनों यानों की यात्रा जारी है। फिलहाल खगोल वैज्ञानिक इस असंभव-सी अंतर-नक्षत्रीय यात्रा को साकार करने के उपाय खोज रहे हैं।
लेखक मुकुल व्यास स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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