Menu
blogid : 5736 postid : 6383

गडकरी की विदाई का समय

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

predeepभारतीय जनता पार्टी के लिए कठिन परीक्षा का दौर है। सबसे अलग होने का दावा करने वाली पार्टी के लिए फैसले की घड़ी आ गई है। उसे तय करना है कि वह भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस से अलग है। उसे यह भी बताना है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों में मिलीभगत के आरोप सही नहीं हैं। यह भी कि भ्रष्टाचार के जिस मुद्दे पर उसने संसद का मानसून सत्र नहीं चलने दिया उस पर उसका अपना दामन पाक साफ है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के व्यापारिक कार्यकलाप पर सवाल उठ रहे हैं। सवाल गंभीर हैं। इन्हें राजनीति से प्रेरित बताकर टाला नहीं जा सकता। सवाल तो पार्टी के अंदर से भी उठने लगे हैं। अब यह भाजपा को तय करना है कि उसे अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष को बचाने की कोशिश करना है या पार्टी की साख बचानी है।


वर्तमान परिस्थिति में दोनों नहीं बच सकते। देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल बना हुआ है। लोगों के मन में फिर उम्मीद जगी है कि इस बुराई से लड़ा जा सकता है। यही नहीं रसूख वालों के भ्रष्टाचार को बेपर्दा किया जा सकता है। कानून को उनकी गर्दन तक पहुंचने में देर लग सकती है पर पहुंचेगा जरूर। लोगों में नई उम्मीद जगाने का श्रेय नागर समाज के लोगों को जाता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान जितना जोर पकड़ता जा रहा है, सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी भ्रष्टाचारियों के बचाव में उतनी ही ज्यादा ताकत लगा रही है। कहते हैं कि एक हद के बाद बहादुरी और बेवकूफी की विभाजन रेखा बहुत महीन हो जाती है। कांग्रेस के एक केंद्रीय मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। मामला अदालत में गया। अदालत ने आरोप तय कर दिए। प्रधानमंत्री को अपने मंत्रिमंडल के इस सहयोगी को मंत्रिमंडल से बाहर करना पड़ा। कांग्रेस पार्टी ने उस नेता को चुनावी राज्य का प्रभार सौंप दिया। जी हां बात हिमाचल प्रदेश के वीरभद्र सिंह की हो रही है। अब आप ही तय करें कि यह कांग्रेस की बहादुरी है या बेवकूफी। वीरभद्र सिंह के भ्रष्टाचार का नया मामला सामने आया है।


कांग्रेस के सामने समस्या है कि वह राबर्ट वाड्रा को बचाए, सलमान खर्शीद को या वीरभद्र सिंह को। इसलिए वह सबको बचा रही है। अभी कोयला घोटाले की तलवार उसके सिर पर लटक ही रही है। कांग्रेस ने या तो मान लिया है कि घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोपों से उसका जितना नुकसान होना था, हो चुका है अब नए घोटालों के सामने आने से भी उसका इससे ज्यादा नुकसान नहीं हो सकता। या फिर वह मानती है कि लोगों की याददाश्त कमजोर होती है। देश के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे तो यह कह ही चुके हैं कि जिस तरह लोग बोफोर्स को भूल गए इसे भी भूल जाएंगे। कांग्रेस ने अपने को किले में बंद कर लिया है। उसे अपने सरदार को बचाना है। सवाल है कि कब तक? भ्रष्टाचार का मुद्दा अब पलटकर भाजपा के गले की हड्डी बन गया है। गडकरी द्वारा अपने दोस्त और व्यवसायी अजय संचेती को राज्यसभा में भेजने और अंशुमान मिश्रा के टिकट के मुद्दे पर हुए विवाद के बाद भी पार्टी और संघ नहीं चेते। गडकरी को अध्यक्ष बनाते समय संघ और खासतौर से संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जो भूमिका निभाई उसकी आंच अब उनके दामन तक भी आएगी। संघ प्रमुख ने गडकरी के साथ अपनी प्रतिष्ठा जोड़ दी। गडकरी इसलिए अध्यक्ष नहीं बने कि वे पार्टी के सर्वमान्य नेता थे या सबसे ज्यादा जनाधार वाले नेता थे।


गडकरी अपने गृह राज्य महाराष्ट्र में भी भाजपा के घटते जनाधार को रोक नहीं पाए। उनकी सबसे बड़ी ताकत थी संघ का समर्थन। सवाल है कि क्या संघ का यह समर्थन अब भी जारी रहेगा। सार्वजनिक जीवन लोकलाज और लोक मर्यादा से चलता है। गडकरी के खिलाफ लगे आरोपों की सच्चाई तो जांच के बाद ही सामने आएगी। पर सवाल है कि क्या पार्टी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर लोकसभा चुनाव में उतरने का जोखिम उठाएगी? बंगारू लक्ष्मण के बाद नितिन गडकरी भाजपा के दूसरे अध्यक्ष हैं, जिन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा है। दोनों स्वंयसेवक रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी सोचना चाहिए कि अब उसके यहां से नानाजी देखमुख, कुशाभाऊ ठाकरे और सुंदर सिंह भंडारी जैसे स्वंयसेवक राजनीति में क्यों नहीं आते। बंगारू लक्ष्मण और नितिन गडकरी जैसे लोगों पर संघ कैसे भरोसा कर लेता है? उसे क्यों पता नहीं चलता कि उसका स्वयंसेवक रास्ता भटक गया है। उसे हर बार चौंकना क्यों पड़ता है? उसे चार्टर्ड प्लेन से चलते हुए भाजपा नेता क्यों नहीं दिखते। किनके निजी विमानों पर चलते हैं ये नेता? उद्योगपतियों के निजी विमामों को टैक्सी की तरह इस्तेमाल करने वालों से संघ और भाजपा कैसे उम्मीद करते हैं कि समय आने पर वे इन्हीं उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग नहीं करेंगे।


विजयदशमी पर सरसंघचालक मोहन भागवत ने गडकरी के मुद्दे पर कहा कि यह भाजपा का अंदरूनी मामला है। इसके अलावा उन्होंने और एक बात कही कि भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। क्या यह बात नितिन गडकरी पर भी लागू होगी? भाजपा की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई एक निर्णायक दौर में है। नागर समाज ने भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में जो माहौल बनाया है, मुख्य विपक्षी दल के नाते उसका राजनीतिक फायदा भाजपा उठा सकती है, लेकिन गडकरी की लंगड़ी तलवार से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। भाजपा अध्यक्ष पर लगे आरोपों ने पार्टी को संकट में डाल दिया है। भाजपा चाहे तो इस संकट को अवसर में बदल सकती है। अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के खिलाफ कार्रवाई करके अपनी पार्टी के नेताओं के साथ ही मतदाताओं को भी संदेश दे सकती है कि उसकी नीयत और नीति साफ है। इसके लिए पार्टी अपने अध्यक्ष की भी कुर्बानी दे सकती है।



लेखक प्रदीप सिंह  वरिष्ठ स्तंभकार हैं


Tag: भारतीय जनता पार्टी , भ्रष्टाचार के मुद्दे , कांग्रेस, भ्रष्टाचार , राष्ट्रीय अध्यक्ष , प्रधानमंत्री , मंत्रिमंडल गडकरी अध्यक्ष, गडकरी , महाराष्ट्र , राजनीतिक फायदा , कुर्बानी , उद्योगपतियों, गडकरी की विदाई का समय, गडकरी , विदाई का समय,Adiev, Dismissal, Parting, Valediction, Farewell, Leave- taking, Send-Off, So long, cogres, priem minister,

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh