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केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना विशिष्ट पहचान संख्या यानी आधार कार्ड अब सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों से जुड़ गई है। हाल ही में राजस्थान के दूदू कस्बे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसकी विधिवत शुरुआत की। जिन पांच योजनाओं को फिलहाल आधार से जोड़ा गया है, उनके नाम हैं- मनरेगा, बीपीएल ग्रामीण आवास योजना, सामाजिक सुरक्षा के तहत दी जाने वाली पेंशन योजना, आशा सहयोगिनी भुगतान और छात्रवृत्ति योजना। इन योजनाओं के लाभार्थियों को आधार कार्ड के आधार पर सरकार से सीधा भुगतान मिलेगा। इस योजना से जहां सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार रुकेगा, वहीं बिचौलिए भी आम आदमी का हक नहीं मार पाएंगे। योजनाओं में पारदर्शिता आएगी। सरकारी योजनाओं में संसाधनों की बर्बादी, फर्जीवाड़े और भ्रष्टाचार को काफी हद तक रोका जा सकेगा।
आज से दो साल पहले जब महाराष्ट्र के नंदूबार जिले से दस आदिवासियों को आधार कार्ड देने के साथ यह योजना शुरू हुई तो इसके बारे में लोगों को कई आशंकाएं थी। पहली, योजना के भारी भरकम बजट को लेकर थी कि सरकार इतनी रकम कहां से जुटाएगी? दूसरी आशंका, देश की बड़ी जनसंख्या को लेकर था कि सौ करोड़ से ज्यादा आबादी को इसके दायरे में लाना खासा मुश्किल काम होगा, लेकिन ये सारी आशंकाएं गलत साबित हुई और सरकार का फैसला सही। महज दो साल के अंदर ही देश के 24 करोड़ लोग आधार में अपना पंजीयन करवा चुके हैं। इनमें भी 21 करोड़ लोगों को आधार कार्ड सौंपा जा चुका है। सरकार को उम्मीद है कि आगामी दो साल में इससे 60 करोड़ लोग और जुड़ जाएंगे। थोड़े से समय में यह सचमुच एक बड़ी कामयाबी है। फिलहाल देश के 20 जिले आधार को सरकारी योजनाओं से जोड़ने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। इन जिलों में 80 फीसद से अधिक लोगों को आधार कार्ड दिया जा चुका है, जबकि 31 अन्य जिलों में मौजूदा वित्तीय वर्ष के आखिर यानी 31 मार्च 2013 तक 80 फीसद लोगों को यह जारी कर दिया जाएगा। इस तरह कुल 51 जिले आधार के इस्तेमाल के लिए तैयार हो जाएंगे।
आधार कार्ड का मुख्य मकसद सब्सिडी के दुरुपयोग पर रोक लगाना है। सब्सिडी के मद में हाल फिलहाल सरकार कोई दो लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करती है, जिसमें 58 फीसद सब्सिडी का दुरुपयोग होता है। यह सब्सिडी जरूरतमंद लोगों तक पहुंच ही नहीं पाती। सब्सिडी बीच में ही हड़प ली जाती है। सरकारी मशीनरी के अंदर व्यवस्थागत भ्रष्टाचार कुछ इस कदर घर कर गया है कि कोई भी अच्छी योजना हो, उसका फायदा जरूरतमंदों तक पहुंच ही नहीं पाता। सरकारी दफ्तरों में बैठे अफसर और बिचौलिए दोनों मिलकर योजनाओं की ज्यादातर रकम हजम कर जाते हैं। यही वजह है कि सरकार को फैसला करना पड़ा कि योजनाओं में सब्सिडी देने की बजाय सब्सिडी का पैसा सीधे लाभार्थियों के बैंक खाते में पहुंचा दिया जाए। जाहिर है, इसके लिए पहचान एक बड़ी समस्या थी, जो अब आधार कार्ड ने दूर कर दी है। सरकार का इरादा साल 2014 से पहले आधार कार्ड में दर्ज 5 करोड़ परिवारों और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्ट्री की सूची के माध्यम से कुल 60 करोड़ लोगों तक 3.25 लाख करोड़ की सालाना सब्सिडी सीधे पहुंचाने का है। इस कार्यक्रम के तहत शुरू में स्कॉलरशिप, पेंशन तथा बेरोजगारी भत्ता जैसी योजनाओं को शामिल किया जाएगा। बाद में इसमें सार्वजनिक जन वितरण प्रणाली को भी शामिल किया जाएगा।
यही नहीं, आगे चलकर पेट्रोलियम, खाद सब्सिडी समेत व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने वाली तमाम योजनाओं में भी लाभ की राशि सीधे लाभार्थी को मिलेगी। हमारे देश में भी आधार कार्ड के अमल में आने के तुरंत बाद बैंकिग प्रणाली के दायरे से बाहर खड़े 80 करोड़ से ज्यादा लोग बैंकिग व्यवस्था से जुड़ जाएंगे। जिसके पास आधार कार्ड होगा, उसे बैंक खाता खुलवाने के लिए किसी और दस्तावेज की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसके अलावा व्यक्ति की पहचान और पते के प्रमाण के तौर पर भी आधार कार्ड काम आएगा। कुल मिलाकर संप्रग सरकार द्वारा आधार कार्ड भारतीय नागरिकों के लिए सूचना के अधिकार के बाद एक और बड़ी सौगात है। आधार कार्ड से हर भारतीय को एक नई पहचान मिलेगी। प्रत्येक नागरिक के अस्तित्व को स्वीकार करने से सरकार जहां खुद ही सेवाओं की गुणवत्ता सुधारने को विवश होगी, वहीं नागरिकों को भी तुरंत ही सरकार तक बेहतर पहंुच मिल पाएगी।
लेखिका वसीमा खान स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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