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राजनीति-बजनेस का कॉकटेल

जागरण मेहमान कोना
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वर्ष 2000 में जब मुहम्मद अजहरुद्दीन पर क्रिकेट खेलने पर आजीवन प्रतिबंध लगा था तब तक वह 334 एक दिवसीय क्रिकेट मैच और 99 टेस्ट मैच खेल चुके थे। उनकी गिनती देश के सफलतम कप्तानों में होती थी, लेकिन जब फिक्सिंग का खुलासा हुआ तो देश हैरान था। दक्षिण अफ्रीका के पूर्व कप्तान स्वर्गीय हैन्सी क्रोनिये ने क्रिकेट में फिक्सिंग को लेकर हुई पूछताछ के दौरान कबूल किया कि उन्होंने फिक्सिंग की है और इसके लिए मोहम्मद अजहरुद्दीन ने एक बुकी से मिलवाया था। इससे क्रिकेट की धर्म की तरह दीवानगी वाले देश में लोगों का दिल टूट गया। अजहर ने खुद कबूला था कि उन्होंने तीन एक दिवसीय क्रिकेट मैचों में फिक्सिंग की थी। उन्होंने यह भी कहा कि वही अकेले इस बात के भागीदार नहीं हैं अजय जडेजा, अजय शर्मा, नयन मोंगिया और मनोज प्रभाकर भी इस पाप में बराबर के साझीदार थे। नयन मोंगिया पर आरोप साबित नहीं हुए इसलिए उन पर प्रतिबंध भी नहीं लगा और वह 2004 तक खेलते रहे। अजय जडेजा और मनोज प्रभाकर पर से तीन साल में ही प्रतिबंध हटा लिया गया, लेकिन अजहरुद्दीन पर जारी रहा और अजय शर्मा पर अब भी प्रतिबंध लगा है। हालांकि अजहरुद्दीन ने इस पर काफी हंगामा किया और प्रतिबंध हटाने के लिए तो राजनीतिक कोशिश भी की। उन्होंने बीसीसीआइ पर दबाव डालने के लिए यहां तक कहा कि वह मुसलमान हैं, इसलिए उन्हें परेशान किया जा रहा है। उनका यह बयान हास्यास्पद था क्योंकि भारतीय क्रिकेट टीम में शायद ही कभी ऐसा होता हो जब दो-तीन मुस्लिम खिलाड़ी न होते हों।


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ऐसा नहींथा कि अजहर का दबाव काम नहीं कर रहा था। इसी दबाव का नतीजा था कि 2006 में ही बीसीसीआइ ने प्रतिबंध हटा लिया था, लेकिन इस पर आइसीसी बिगड़ गया। बीसीसीआइ ने फिर बैन लगा दिया। इस पर अजहर स्थानीय कोर्ट में चले गए। कोर्ट ने बीसीसीआइ और आइसीसी के नजरिये को ही सही माना। अजहर मामला लेकर आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट पहुंच गए और हाई कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया। अब एक बार गेंद फिर से अजहर के पाले में चली गई है उनके साथ हाईकोर्ट का फैसला है और बीसीसीआइ के ऊपर आइसीसी का चाबुक। अजहर ने अब बीसीसीआइ से दोबारा जुड़ने की मंशा जाहिर की है। कुल मिलाकर देखा जाए तो कम से कम भारतीय उपमहाद्वीप के लिए क्रिकेट महज एक खेल भर नहीं है। यह राजनीति, कारोबार और अपराध के जटिल कॉकटेल में तब्दील हो चुका है। जिस तरह से पिछले दिनों पाकिस्तान के कई प्रमुख खिलाडि़यों पर सालों लगा प्रतिबंध उठा है, विशेषकर सलीम मलिक पर से उससे यह बात और स्पष्ट हो जाती है कि क्रिकेट पर इस महाद्वीप में कोई भी फैसला बिना राजनीतिक भागीदारी के संभव ही नहीं। अजहर पर बैन तकरीबन तभी उठाया जाना तय हो चुका था, जब यह तय हुआ कि वह आगे की पारी क्रिकेट नहीं, सियासत के मैदान में खेलेंगे। सोने पर सुहागा यह हुआ कि अजहर आंध्र प्रदेश के होते हुए भी मुरादाबाद से चुनाव जीत गए। उनके सांसद बनने के बाद से ही कांग्रेस का मौन दबाव काम करने लगा था। यह फैसला उसी की सुखद परिणति के तौर पर सामने आया है। क्रिकेट में फिक्सिंग भी अब बड़ी माफियागीरी के रूप में उभरकर सामने आई है। सच तो यह है कि हाल के सालों में क्रिकेट बोर्ड ने फिक्सिंग रोकने के लिए भले ही किसी भी तरह की कार्रवाई की चेतावनी दी हो, मगर सच्चाई यह है कि न सिर्फ हर गुजरते दिन के साथ क्रिकेट में फिक्सिंग का रोग बढ़ता जा रहा है, बल्कि यह रोग क्रिकेट को लगातार शक और षडयंत्र के घेरे में कैद करता जा रहा है। हाल के दिनों में फिक्सिंग की ऐसी नायाब तरकीबों का खुलासा हुआ है कि लोग यह देखकर हैरान हैं कि क्रिकेट को किस-किस तरह से निशाना बनाया जा सकता है।


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अभी ज्यादा अरसा नहीं गुजरा जब अंपायरों को वैसा ही समझा जाता था, जैसे डॉक्टरों को समझा जाता है। डॉक्टर अगर धरती के भगवान के रूप में प्रतिष्ठित थे तो अंपायर खेलों के खुदा माने जाते थे। मगर पिछले दिनों जिस तरह श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश के 6 अंपायर एक स्टिंग ऑपरेशन में फिक्सिंग के लिए तैयार होते दिखे हैं उससे यह सोचना भी सीमा से परे हो गया है कि फिक्सिंग की गंदगी क्रिकेट में कहां तक घुस चुकी है। बहरहाल, अजहर को अदालती राहत मिली है तो नहीं लगता कि बीसीसीआइ या आइसीसी अब उनकी राह में बाधा बनेंगी। अजहर अब 100वां टेस्ट मैच खेलने की अपनी हसरत को भले न पूरी कर पाएं, इसमें कोई दो राय नहीं है कि उन्हें क्रिकेट के अब वो तमाम छूटे फायदे मिलेंगे जो पहले नहीं मिले थे।


लेखिका मीरा राय स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

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Tags:2G Spectrum, Azharuddin, ,   Coal Block Scam, West Bengal, Madhya Pradesh,   जल संसाधन विभाग, पृथ्वीराज चव्हाण, भ्रष्टाचार , कांग्रेस , ,

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