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क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान ने अपने बयान से सबको चौंका दिया है। हाल ही में गुड़गांव में एक आर्थिक सम्मेलन में उन्होंने अपना मन खोल कर रख दिया। उन्होंने भारत और पाकिस्तान के संबंधों में सुधार के लिए क्रिकेट और वाणिज्य का रास्ता अपनाने की सलाह दी। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक कश्मीर का मुद्दा नहीं सुलझता है, 26/11 जैसे हमलों की संभावना बनी रहेगी। इस मुद्दे का समाधान जरूरी बताते हुए उन्होंने कहा कि क्रिकेट मैचों के साथ-साथ व्यापारिक संबंधों से मदद मिलेगी। लेकिन इसके साथ ही हमें कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए कोई कार्यक्रम बनाना होगा, क्योंकि यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा है। लेकिन पाकिस्तान की ओर से पैदा की गई समस्याओं के समाधान के लिए इमरान खान का समझदारी भरा समाधान आसान नहीं है। ऐसे किसी हृदय परिवर्तन के लिए सेना, विधायिका और न्यायपालिका की तिकड़ी का सामना करना होगा, जो हमेशा एकदूसरे से टकराती रहती हैं। सभी लोकतांत्रिक और निर्वाचित संस्थानों से ऊपर, अनिर्वाचित संस्थानों में से एक पाक सेना का मानना है कि वही देश के अतीत, वर्तमान और भविष्य के लिए सीधे तौर पर चिंतित है। हाल ही में पाक सेना प्रमुख जनरल परवेज कियानी के नेशन इंटरेक्ट भाषण ने चिंगारी भड़का दी। इस भाषण में परस्पर विरोधी इस तिकड़ी के उचित तरीके से कामकाज पर जोर दिया गया। उन्होंने कहा कि देश की सेना द्वारा झेली जा रही आलोचना को रोकना होगा और सरकारी संस्थानों की सीमाएं तय करनी होंगी। कियानी का यह बयान ऐसे समय आया है, जब राजनीति में अपनी भूमिका के लिए सेना सुप्रीम कोर्ट की नजर में बनी हुई है, इसलिए माना यह जा रहा था कि उनका भाषण सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ था।
झूठे रसूख का यह कैसा लेन-देन
असगर खान मामले में सेना की भूमिका स्पष्ट हो गई थी, जिसमें तत्कालीन चीफ आफ आर्मी स्टाफ और आइएसआइ के महानिदेशक को 1990 में बेनजीर भुट्टो को चुनाव लड़ने से रोकने का दोषी पाया गया था। चीफ जस्टिस इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी के इस बयान से कि किसी देश के पास कितनी मिसाइलें और टैंक हैं, इस बात से देश की सुरक्षा नहीं आंकी जा सकती, अटकलों का बाजार गर्म हो गया था कि दोनों अनिर्वाचित संस्थान टकराव के रास्ते पर हैं। इसके साथ ही राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने संसद पर हमलों को पुरानी व्यवस्था की थकी-हारी चोटें बता कर मामले को और हवा दे डाली। बात यहीं नहीं रुकी। कियानी ने कहा कि किसी भी व्यक्ति या संस्थान को यह तय करने का एकाधिकार नहीं है कि राष्ट्रीय हित को तय करने में क्या सही है या क्या गलत है। राष्ट्रीय हित तय करने और इन हितों को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी नीति ढालने के लिए अकसर सेना की आलोचना की जाती है। विभिन्न घोटालों में कुछ रिटायर्ड जनरलों की भूमिका को लेकर जांच के बारे में चिंतित जनरल कियानी ने कहा कि देश में हम सभी से व्यक्तिगत स्तरों पर गलतियां हुई हैं, लेकिन इनसे निपटने का काम कानून पर छोड़ देना चाहिए। आज जब हम कानून-व्यवस्था पर जोर दे रहे हैं, तब हमें इस मूलभूत सिद्घांत को नहीं भुला देना चाहिए कि जब तक साबित नहीं हो जाता कोई दोषी नहीं होता। सेना प्रमुख के बयान ने पाकिस्तान के प्रबुद्ध वर्ग को हैरत में डाल दिया है। लेखक मोहम्मद हनीफ ने ट्वीट किया-क्या जनरल कियानी धीमे से कोई धमकी दे गए हैं? पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पुत्री मरयम नवाज शरीफ ने कहा कि पहली बार मुझे आशा की किरण नजर आई है। रक्षा के बारे में संविधान से अलग शक्तियां एक मजबूत लोकतांत्रिक पाकिस्तान के हित में होंगी। राजनेता भी यह कहने से नहीं चूके कि सेना को कुछ लोगों द्वारा की जा रही आलोचना पर गुस्सा है, जबकि राजनीतिक वर्ग को कुछ लोगों के गलत कामों के लिए पूरी तरह से बदनाम किया जा रहा है।
लेखक योगेंद्र बाली स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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