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आतंकवाद का चक्रव्यूह

जागरण मेहमान कोना
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prakash jiiiiiiiiiiiiiiमुंबई हमले के गुनहगार अजमल कसाब को फांसी पर हम केवल संतोष कर सकते हैं कि कानून की जीत हुई है और भारत सरकार ने अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वहन किया है। कसाब आतंकवादियों का केवल एक सिपाही था। उसके मरने से केवल एक अध्याय समाप्त हुआ है, आतंकवाद का खतरा आज भी बरकरार है, बल्कि सच्चाई तो यह है कि आने वाले दिनों में यह खतरा और भी बढ़ जाएगा। पाकिस्तानी तालिबान ने धमकी दी है कि वह भारतीयों को दुनिया में कहीं भी निशाना बना सकते हैं। ऐसी घटना की अधिक आशंका जम्मू-कश्मीर, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जैसे-जैसे अमेरिकी फौजें अफगानिस्तान से हटने लगेंगी, आतंकवादियों का खतरा देश पर उसी अनुपात में बढ़ता जाएगा। आज आवश्यकता इस बात की है कि भारत सरकार पाकिस्तान पर 26/11 के आतंकवादियों के विरुद्ध ठोस कार्रवाई का दबाव बनाए। पाकिस्तान ने सात व्यक्तियों को गिरफ्तार किया था और उनके विरुद्ध रावलपिंडी में मुकदमा चलाने का ड्रामा हो रहा है। लश्करे तैयबा का सरगना हाफिज मोहम्मद सईद जब-तब भारत के विरुद्ध जहर उगलता रहता है।


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भारत को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि भारत-पाक मैत्री में कोई प्रगति तभी हो सकती है जब पाकिस्तान 26/11 के आरोपियों के विरुद्ध ठोस कार्रवाई करे। इन परिस्थितियों में सबसे जरूरी बात यह है कि आतंकवाद से लड़ने की हमारी व्यूहरचना कितनी सुदृढ़ है? यह सही है कि 26/11 के बाद भारत सरकार ने कुछ ठोस कदम उठाए थे। नेशनल सिक्योरिटी गार्ड की इकाइयां दिल्ली के अलावा हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई में स्थापित की गई। इसके अलावा 20 स्थानों पर काउंटर इनसर्जेसी प्रशिक्षण संस्थान खोले जाने की घोषणा की गई। राष्ट्रीय स्तर पर एनआइए का गठन किया गया और इसे विशेष तौर से आतंकी घटनाओं की विवेचना की जिम्मेदारी दी गई। राज्य सरकारों से कहा गया है कि वे अपने पुलिस बल में वृद्धि करें और पुलिस की साज-सज्जा को और आधुनिक बनाएं। मल्टी एजेंसी सेंटर को सक्रिय किया गया। ये सब कदम सही दिशा में थे। आवश्यकता इस बात की है कि इन कदमों को अंतिम लक्ष्य तक पहुंचाया जाए। सच्चाई यह है कि आज भी सबसे कमजोर कड़ी पुलिस की है, जबकि इसी बल को सबसे पहले मौके पर पहुंचना पड़ता है। पुलिस सुधार की दिशा में सभी राज्य उदासीन हैं। सुप्रीम कोर्ट तक के आदेशों की अवहेलना हो रही है। केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता पर भी बहुत बड़ा सवालिया निशान है।


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राज्यों में पुलिस बल में वृद्धि एवं उसके आधुनिकीकरण में प्रगति बहुत धीमी है। काउंटर इनसर्जेसी में अभी 10 स्कूल खुलने बाकी हैं। तटीय सुरक्षा आज भी ढुलमुल है। हमें अपनी आतंकवाद विरोधी संरचना को सुदृढ़ बनाने के लिए कुछ और कदम भी उठाने जरूरी हैं। नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर की स्थापना संबंधी प्रस्ताव ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। कई राज्यों ने आपत्ति भी की कि इस सेंटर का प्रारूप संघीय ढांचे पर आघात करता है। केंद्र को चाहिए कि आपत्तिजनक बिंदुओं को हटाते हुए सशक्त काउंटर टेररिज्म सेंटर शीघ्रातिशीघ्र खड़ा करे। राज्यों द्वारा भी अनावश्यक आपत्ति नहीं होनी चाहिए। नैटग्रिड, जो इंटेलीजेंस के एकत्रीकरण और उसके वितरण से संबंधित है, को भी जल्दी ही अंतिम रूप दिया जाना चाहिए। इसके अलावा यह भी अत्यंत आवश्यक है कि हम आतंकवाद से लड़ने की नीति को परिभाषित कर दें। अभी तक जो भी सरकार आती है वह अपनी समझ से और उससे भी ज्यादा अपनी सहूलियत से इस समस्या से निपटती है। फलस्वरूप, समझौते होते हैं जो अक्सर राष्ट्रहित में नहीं होते। यदि नीति परिभाषित कर दी जाए तो सरकार पर एक तरह की बंदिश हो जाएगी और कंधार जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होगी। आतंकवाद से लड़ने के कानून को भी और सख्त बनाने की जरूरत है।


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आज की तारीख में हमारे पास आतंकवाद विरोधी कानून नहीं हैं। हम उससे गैर कानूनी गतिविधि निवारक अधिनियम के अंतर्गत निपटते हैं। यह कानून मददगार जरूर है, पर उतना नहीं जितना होना चाहिए। दुर्भाग्य से हम इस विषय पर कानून को बराबर ढीला करते जा रहे हैं। पहले टाडा था, फिर उससे कमजोर पोटा हुआ और अब उससे भी लचर वर्तमान अधिनियम है। एक तरफ तो हम आतंकवाद से पीडि़त होने का दुखड़ा रोते हैं और दूसरी ओर उससे लड़ने का कानून बनाने में संकोच करते हैं। अमेरिका या इंग्लैंड में ऐसी कोई मानसिक रुकावट नहीं दिखती। उनके कानून स्पष्ट रूप से आतंकवाद से लड़ने के लिए हैं। हमारे यहां राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी घटिया राजनीति होती है। एक प्रदेश में तो इसकी पराकाष्ठा हो रही है। आतंकवाद से जुड़े लोगों के विरुद्ध मुकदमे वापस लिए जा रहे हैं। कानून के साथ यह खिलवाड़ सत्ताधारी पार्टी को बहुत महंगा पड़ सकता है। राज्य की जनता शायद ही ऐसी राजनीतिक पार्टी को माफ करे। कुल मिलाकर स्थिति चुनौतीपूर्ण है और इसे बड़ी गंभीरता से लेने की जरूरत है। आवश्यकता इस बात की है कि हम आतंकवाद से लड़ने की व्यवस्था को इतना मजबूत करें कि आतंकी हमारे चक्रव्यूह को भेद न पाएं। देश के पास ऐसी व्यूहरचना के लिए सारे संसाधन हैं। अगर कमी किसी बात की है तो राजनीतिक इच्छाशक्ति की और दृढ़संकल्प की। राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वाधिक महत्व देने की जरूरत है। वोट बैंक कारणों से समझौता करना खतरनाक होगा और इसके परिणाम भयंकर हो सकते हैं।


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लेखक आंतरिक सुरक्षा के विशेषज्ञ हैं

Tag:Mumbai blast,Mumbai Terrorist  Attack, Celebrity Blog, मुंबई, आतंकवाद, 26\11

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