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कांग्रेस का दुस्साहस

जागरण मेहमान कोना
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rajnath jiiiiiiiiiसूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने नियंत्रक एवं महा लेखापरीक्षक को 2जी और कोयला घोटाले की जांच रिपोर्ट के तथ्यों पर सार्वजनिक बहस की चुनौती दी है। उनकी यह चुनौती आश्चर्यजनक नहीं है। सत्ता स्वेच्छाचारिता और मदांधता का जो दौर चल रहा है, उसमें इसी प्रकार के बयानों की अपेक्षा की जा सकती है। मनीष तिवारी की प्रेरणाश्चोत सोनिया गांधी किसी आरपी सिंह के इस कथन पर कि लेखा महानिरीक्षक का प्रतिवेदन तथ्यों के विपरीत है, उछलकर कह सकती हैं कि भाजपा की पोल खुल गई तो फिर कांग्रेस प्रवक्ता के रूप में अन्ना हजारे को देशद्रोही कहने वाला शख्स मंत्री बनने पर किसी संवैधानिक संस्था के प्रमुख को सार्वजनिक बहस की चुनौती देने से कैसे दूर रह सकता है। नियंत्रक एवं महा लेखापरीक्षक का प्रतिवेदन लोकसभा में पेश होने के बाद समीक्षा के लिए सदन में बहस के बिना लोक लेखा समिति को भेज दिया जाता है। समिति जब समीक्षा कर अपना प्रतिवेदन लोकसभा में पेश करती है तब दोनों प्रतिवेदनों पर चर्चा होती है। अब चाहे विधानसभा हो या संसद, किसी भी समिति के प्रतिवेदन पर चर्चा कराने की परंपरा ही खत्म हो गई है।


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2जी के बारे में महा लेखापरीक्षक का प्रतिवेदन दो वर्ष पूर्व संसद में पेश हो चुका है। महा लेखापरीक्षक के सहायक रहे आरपी सिंह उस प्रतिवेदन के सभी बिंदुओं पर सहमति का हस्ताक्षर कर चुके हैं। लोक लेखा समिति के समक्ष साक्ष्य में भी उन्होंने सभी बिंदुओं पर सहमति जताई है। हालांकि कांग्रेसी सदस्यों की असहमति के कारण उसे समिति से लौटा दिया गया है। इन दो वर्षो में आरपी सिंह ने कभी अपनी आपत्ति लिखित या मौखिक रूप से प्रकट नहीं की। फिर क्या बात हुई कि वह अवकाश प्राप्ति के बाद अचानक कह देते हैं कि प्रतिवेदन लोक लेखा समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी के परामर्श पर तैयार किया गया। फिर कहा कि उस पर उन्होंने हस्ताक्षर भी दबाव में किए हैं। यदि अपने सेवा काल में कोई व्यक्ति दबावों में आकर काम कर सकता है तो क्या सेवानिवृत्त होने के बाद वह प्रलोभन में काम नहीं कर सकता? हर स्तर पर सहमति के बाद उसके खुलासे पर सोनिया गांधी का भाजपा की पोल खुल गई बयान कितना हास्यास्पद है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन इसके पीछे के कारणों को समझना जरूरी है। संप्रग-2 सरकार 2009 में जनता से किए किसी वादे को न तो पूरा कर सकी और न उस पर बढ़ते बोझ को रोक पाई है। इसके उलट आसमान छूती महंगाई ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। खासतौर पर डीजल-पेट्रोल व एलपीजी के दामों में जबरदस्त उछाल ने लोगों की कमर तोड़ दी। शुरू में घोटालों की जांच तक से इन्कार करने के बाद सरकार सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर जांच कराने पर विवश हुई। इतना ही नहीं, सोनिया गांधी के दामाद और पुत्र राहुल गांधी पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे।



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संप्रग सरकार ने भ्रष्टाचारियों पर अंकुश लगाने के बजाय दागी मंत्रियों को पदोन्नत कर उन्हें पुरस्कृत किया। इससे जनता में यह संदेश गया कि सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के बजाय इसको बढ़ावा दे रही है। चुनाव के समय सौ दिन में काला धन विदेश से वापस लाने का दावा भी खोखला साबित हुआ। घोटालों, बढ़ती महंगाई आदि के कारण अवाम की निगाह में गिर चुकी कांग्रेस ने एक कहावत-आक्रमण ही सर्वश्रेष्ठ रक्षण है के अनुसार आचरण करने की रणनीति अपनाई है। इसलिए जिस व्यक्ति या संगठन ने ये मुद्दे उठाए, उन्हें बदनाम करना शुरू कर दिया गया। पहले लोकपाल के मसले पर उसने टीम अन्ना के सामने पलक-पांवड़े बिछाए। जब वह सरकार के जाल में नहीं फंसे तो उन्हें देशद्रोही तक कह डाला। बाबा रामदेव का हवाई अड्डे पर स्वागत करने के लिए उसने कई मंत्रियों को भेजा, फिर रामलीला मैदान से आधी रात उन्हें भागने पर मजबूर किया। इन सबके बावजूद सरकार अपने ऊपर लगे दाग धोने में असफल रही तो बाद में कांग्रेस ने राहुल गांधी को और अधिक महत्वपूर्ण पद देने का शिगूफा चलाया। इन सबसे आम आदमी की समस्याओं का हल तो नहीं निकलने वाला। फिर उसने संसद को यह आश्वासन दिलवाया कि खुदरा व्यापार क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश तभी लागू किया जाएगा, जब सभी पक्षों की सहमति बनेगी।



रिटेल में एफडीआइ के खिलाफ भारत बंद में सत्ता में भागीदार और समर्थक दलों के शामिल होने के बाद भी उसने एक राजकीय आदेश के तहत उसे लागू कर दिया। भाजपा के नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के लिए उभरने के कारण उसे 2014 के चुनावी परिणाम साफ दिखाई पड़ने लगे हैं। मोदी का लगातार बढ़ता प्रभाव कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा खतरा है।अब कांग्रेस ने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर पहले जमीन कब्जे का आरोप उछाला, फिर फर्जी कंपनियों के निवेश पर घेराबंदी की। यदि 2014 में भाजपा नेतृत्व में सरकार बनने की संभावना का आकलन सामने न आता तो शायद भाजपा गडकरी के मसले पर आक्रामक रुख अपनाती, लेकिन नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं ने उसके अध्यक्ष की स्थिति अवाम में हास्यास्पद बना दी है और उसकी भावी सफलता पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया है। जिस प्रकार मुरली मनोहर जोशी अपने ऊपर लगे आरोप पर मुखर हुए उसी प्रकार यदि गडकरी भी खुलकर सामने आए होते तो उनकी स्थिति संदेहास्पद न बनती।


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लेखक राजनाथ सिंह सूर्य वरिष्ठ स्तंभकार हैं


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