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प्यार करने की सजा

जागरण मेहमान कोना
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हाल ही में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जनपद के अब्दुल्ला हाकिम को एक बार फिर ऑनर किलिंग का शिकार होना पड़ा। कुछ समय पहले अब्दुल्ला हाकिम और उनकी पत्नी महविश ने आमिर खान के शो सत्यमेव जयते में भाग लिया था। इस ऑनर किलिंग पर आमिर खान नाराज हैं और उन्होंने महविश को इंसाफ दिलाने का वादा किया है। पिछले कुछ समय से हरियाणा और उत्तर प्रदेश में जिस निर्दयता के साथ प्रेमी युगलों को मौत के घाट उतारा जा रहा है या वे खुद परिजनों एवं समाज के डर से मौत को अपने गले लगा रहे हैं, वह हमारी सामाजिक व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न तो लगाता ही है, साथ ही यह संदेश भी देता है कि हम आज भी मध्ययुगीन बर्बर युग में ही जी रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि आज प्रत्येक क्षेत्र में जागरूकता आने एवं आगे बढ़ने के बावजूद ग्रामीण समाज प्रेम के नाम पर कई वर्ष पीछे चला जाता है। उसे यह भी ध्यान नहीं रहता कि प्रेम को अक्षम्य अपराध घोषित कर वह जिस बर्बरता का राज पुनस्र्थापित कर रहा है वह किसी ठोस नींव पर आधारित नहीं है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश में प्रेमियों की हत्याओं के जो मामले प्रकाश में आए हैं उनमें से अधिकांश मामलों में प्रेमियों के परिजनों का किसी न किसी रूप में हाथ रहा है।



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इन सभी घटनाओं में प्रेमी या प्रेमिका की हत्या करने के उपरांत परिजनों या गांववालों को किसी तरह की आत्मग्लानि का अनुभव होता हुआ दिखाई नहीं दिया। इस विषय को मात्र प्रशासन के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। जब तक समाज की सोच में कोई बदलाव नहीं आएगा तब तक प्रेमियों के लिए यह समाज इसी तरह की कत्लगाह तैयार करता रहेगा। आज विचारणीय प्रश्न यह हैं कि क्या ग्रामीणों द्वारा जारी मौत के फरमानों से ग्रामीण युवक व युवतियों के दिलों में प्रेम के अंकुर का प्रस्फुटन बंद हो जाएगा? क्या मौत का यह फरमान इस समस्या का स्थायी समाधान हो सकता है? यह चिंता और क्षोभ का विषय है कि इस तरह की घटनाओं के बाद हत्यारों को किसी तरह की शर्म या गलती का एहसास नहीं होता। वे और अधिक दृढ़ता के साथ इन हत्याओं की वकालत करते हुए दिखाई देते हैं, लेकिन इन हत्यारों की यह दृढ़ता उस समय बौनी साबित हो जाती है जब कुछ ही समय बाद एक और प्रेमी युगल इन हत्याओं को चुनौती देता हुआ दिखाई देता है। यदि मौत का डर युवाओं के दिलों की धड़कन नियंत्रित कर सकता तो इस समस्या का समाधान बहुत पहले ही हो गया होता।



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इसलिए हमें इस समस्या का फौरी हल ढूंढ़ने के बजाय स्थायी समाधान खोजना होगा। क्रूर और हिंसक व्यवहार से हम स्वयं अपनी पहचान पर तो प्रश्नचिह्न लगाएंगे ही साथ ही मानवता को भी कलंकित करेंगे। भारतीय संस्कृति ने संपूर्ण विश्व को हमेशा ही प्रेम की शिक्षा दी है, लेकिन एक प्रेमी और प्रेमिका का प्रेम प्राचीन समय से ही भारतीय समाज की नजरों में चुभता रहा है। भारतीय समाज ने इस तरह के प्रेम को कभी महापाप की संज्ञा दी तो कभी इसे चरित्रहीनता से जोड़कर देखा गया। व्यावसायिकता और उदारीकरण के इस दौर में भारतीय समाज में एक बड़ा परिवर्तन हुआ है। शहरों में इस तरह के प्रेम को अब हैरत से नहीं देखा जाता, लेकिन ग्रामीण समाज आज भी उसी मध्ययुगीन सोच से प्रभावित है। वर्तमान समय में ग्रामीण विकास को एक नई दिशा मिली है, लेकिन यदि अभी भी ग्रामीणों की मानसिकता दकियानूसी परंपराओं की जंजीरों में जकड़ी हुई है तो इसे ग्रामीण विकास का नाम नहीं दिया जा सकता। मात्र गांवों के भौतिक विकास पर ही ध्यान देने से ही बात नहीं बनेगी। जब तक ग्रामीणों की मानसिकता गलत परम्पराओं की जंजीरों से मुक्त नहीं होगी तब तक गांवों का सच्चा विकास संभव नहीं हो सकता। इसलिए अब समय आ गया है कि ग्रामीण लोग गलत एवं रूढि़वादी परंपराओं के अंधेरे से बाहर निकलकर अपने जीवन को प्रकाशमय करने के लिए प्रयास करें।



लेखक रोहित कौशिक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं



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