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गरीब विरोधी आर्थिक फैसला

जागरण मेहमान कोना
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bharat jiiiविपक्ष के पुरजोर विरोध के बावजूद रिटेल कारोबार में एफडीआइ यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को छूट देने के केंद्र सरकार के फैसले पर लोकसभा और राज्यसभा में मुहर लग गई। सत्तारूढ़ दल का मूल उद्देश्य है कि आने वाले चुनाव में वह दोबारा सत्ता पर काबिज हो सके। वोट खरीदने के लिए सरकार को पैसा चाहिए, जैसे नकद सब्सिडी हस्तांतरण योजना के लिए। वर्तमान में केंद्र सरकार की वित्तीय हालत बिगड़ रही है। भ्रष्टाचार जनित रिसाव से केंद्र सरकार का खजाना खाली हो रहा है।


अर्थव्यवस्था ठीक उसी प्रकार सुस्त पड़ रही है जैसे व्यक्ति के शरीर से खून निकाल लिया जाए तो वह सुस्त हो जाता है। ऐसे में सरकार को दो कार्यो के लिए धन जुटाना है-गरीब को रोटी देने के लिए और भ्रष्टाचार के रिसाव को जारी रखने के लिए। मंद पड़ रही अर्थव्यवस्था में ऋण लेकर धन एकत्रित करना कठिन हो रहा है, क्योंकि ब्याज दर ऊंची है। इसके अलावा यदि सरकार ने भारी मात्रा में ऋण लिए तो मूडीज और फिच जैसी अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग एजेंसियां भारत के रैंक को घटा देंगी। रैंक घटने से विदेशी निवेश की आवक कम होगी, अर्थव्यवस्था में तरलता में कमी होगी और ब्याज दरों में और वृद्धि होगी। इस समस्या का हल सरकार ने रिटेल में एफडीआइ को छूट देकर निकाला है। एफडीआइ को खोलने से विदेशी कंपनियों को भारत में प्रवेश करने का अवसर मिलेगा। वे अपने साथ पूंजी लाएंगी।


अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ेगी। ब्याज दर में वृद्धि नहीं होगी और सरकार के लिए ऋण लेना आसान हो जाएगा। साथ ही टैक्स की वसूली में भी कुछ वृद्धि होगी, क्योंकि विदेशी कंपनियां अपने मेगा स्टोर बनाएंगी। दूसरी विदेशी कंपनियां भी देखा-देखी प्रवेश करेंगी। इनके आने से विकास दर में वृद्धि होगी और टैक्स की वसूली बढ़ेगी। एफडीआइ से ऊपरी मध्यम वर्ग को विदेशी माल एक छत के नीचे आसानी से उपलब्ध हो जाएगा। इस वर्ग के पास पैसा है, परंतु पटरी पर बिक रहे सस्ते माल को खरीदने का समय नहीं है। उन्हें मेगा स्टोर जाकर महंगा माल खरीदना सुविधाजनक लगता है। यही वर्ग मीडिया पर प्रभावी है। यह वर्ग मीडिया एवं टीवी चैनलों के माध्यम से देश में एफडीआइ के पक्ष में वातावरण बनाने में मदद करता है।


गरीब समझने लगता है कि एफडीआइ सही नीति है, जबकि यह सच है कि एफडीआइ के कारण किराना दुकानों का धंधा मंद पड़ जाएगा, बेरोजगारी बढ़ेगी, परंतु संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर इस बेरोजगारी का नकारात्मक प्रभाव कम ही पड़ेगा। जैसे घास पर पैदल चलने से बगीचे का सौंदर्य कम नहीं होता है और माली प्रसन्न रहता है उसी प्रकार गरीब कुचला जाएगा, परंतु अर्थव्यवस्था चलती रहेगी। सरकार प्रसन्न रहेगी। एफडीआइ खोलकर सरकार एक साथ कई उद्देश्य हासिल करना चाह रही है-भ्रष्टाचार जारी रखना, ऊपरी मध्यम वर्ग को अपने पक्ष में करना और गरीब को रोटी बांटना। एफडीआइ के विरोधियों का कहना है कि भ्रष्टाचार रोकें तो विदेशी निवेश से मिलने वाली रकम की जरूरत नहीं रह जाएगी। रोटी बांटना भी जरूरी नहीं रह जाएगा। किराना दुकान को जीवित रखें तो भी जनकल्याण हासिल होगा। दुर्भाग्यवश इस नीति से सत्तारूढ़ मंत्रियों के उद्देश्य पूरे नहीं होते हैं। भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने से मंत्रियों और उच्चाधिकारियों को नुकसान होगा। ऊपरी मध्यम वर्ग नाराज होगा। यह वर्ग मीडिया में सत्ता के विरुद्ध बोलेगा। गरीब को रोटी बांटकर वोट नहीं मिलेगा।


पिछले चुनाव में मनरेगा और ऋण माफी की छाया तले कांग्रेस ने सत्ता पुन: हासिल की थी। एफडीआइ खोलने से किराना दुकानें पूरी तरह ध्वस्त हो जाएंगी, ऐसा मुझे भय नहीं है। एफडीआइ का लाभ मुख्यत: ऊपरी मध्यम वर्ग को मिलेगा। कमजोर मध्यम वर्ग एवं गरीब के लिए मेगा स्टोर के ऊंचे दाम अदा करना और दूर जाने के लिए बस का किराया देना तथा अपना समय लगाना संभव नहीं होगा। इसलिए एफडीआइ आने से प्रलय नहीं होने वाली है। यूं भी एफडीआइ की तुलना में देश की मंडियां एवं पटरी के बाजार कुशल हैं। इनमें हर स्तर पर माल को छांटा जाता है जैसे मंडी में दुकानदार सेब को बड़े और छोटे, ताजे और पुराने, लाल और पीले के वर्गो में छांटते देखा जा सकता है। इसके सामने एफडीआइ अकुशल है। अत: हमारी मंडियां और पटरी बाजार जीवित रहेंगे।


एफडीआइ खोलने से एक और लाभ हो सकता है। संभव है कि इस चुनौती से हमारे मेगा स्टारों द्वारा अपने को सुधार लिया जाए और ये स्वयं दूसरे देशों में एफडीआइ करने लगें, जैसे बिग बाजार अमेरिका में अपना स्टोर खोल दे। अत: एफडीआइ से अर्थव्यवस्था पर विशेष अंतर नहीं पड़ेगा। यह मामला आर्थिक विकास का नहीं है। एफडीआइ खोलने से ऊपरी मध्यम वर्ग को लाभ होगा, जबकि गरीब को सरकार द्वारा दी गई रोटी खाकर जीना होगा। एफडीआइ रोकने से ऊपरी मध्यम वर्ग नाराज होगा, जबकि गरीब को सम्मानपूर्वक जीविकोपार्जन का अवसर मिलेगा। इस परिप्रेक्ष्य में बसपा और सपा द्वारा एफडीआइ को समर्थन देना दुखद और आश्चर्यजनक है। ये पार्टियां अपने को दलितों और कमजोर वर्ग का साथी बताती हैं। एफडीआइ इन्हीं वर्गो के लिए हानिप्रद है।


भाजपा का विरोध तर्कसंगत है, क्योंकि इस पार्टी को छोटे व्यापारियों का समर्थन प्राप्त है। ममता बनर्जी का विरोध तर्कसंगत है और तृणमूल के मूल जनकल्याण के उद्देश्य के अनुरूप है। स्पष्ट होता है कि राजनीतिक समीकरणों से एफडीआइ पर पार्टियों का रुख तय नहीं हो रहा है। प्रतीत होता है कि एफडीआइ के पक्ष और विपक्ष का विभाजन भ्रष्टाचार के मुद्दे पर टिका हुआ है। एफडीआइ के आने से मंत्रियों एवं अधिकारियों को रिसाव के अवसर उपलब्ध रहेंगे। इसलिए कुछ पार्टियां इस नीति को समर्थन दे रही हैं, जबकि इससे उनके ही समर्थकों को नुकसान होगा।


लेखक भरत झुनझुनवाला  आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं


Tag:Fdi,Bjp,रिटेलकारोबार,एफडीआइ,प्रत्यक्षविदेशीनिवेश,सरकार,अर्थव्यवस्था

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