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गुजरात के पूर्व मंत्री अमित शाह को विधानसभा चुनाव लड़ने से रोकने के लिए न तो सिविल सोसाइटी और न ही चुनाव आयोग ने कुछ किया। इसका मुसलमानों के बीच क्या संदेश जाएगा? शाह फर्जी मुठभेड़ के मामलों के आरोपी हैं। भाजपा ने अमित शाह को उम्मीदवार बनाकर इस आरोप को पुष्ट कर दिया है कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्री गुजरात दंगों की साजिश का हिस्सा थे। संभवत: भाजपा को हिंदू कार्ड खेलने में कोई हिचक नहीं हो रही है और वह गुजरात में इसकी संभावनाओं का आकलन करना चाहती है। फर्जी कंपनियों के साथ संबंध को लेकर पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी के खिलाफ राम जेठमलानी, यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की खुली बगावत से भाजपा की छवि पहले ही बिगड़ चुकी है। शाह को उम्मीदवार बनाने का लाभ कांग्रेस को मिल सकता था, लेकिन यह पार्टी अपनी ओर गोल करने में माहिर है। उसने नरेंद्र मोदी के खिलाफ श्वेता भट्ट को उम्मीदवार बनाया है। वह पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट की पत्नी हैं। संजीव भट्ट सार्वजनिक रूप से कहते रहे हैं कि उन्हें और दूसरे अधिकारियों को मुख्यमंत्री ने एक समुदाय के लोगों की हत्या करने वालों, लूटपाट और उनके घरों को जलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया था।
इसके बचाव में भाजपा और मोदी समर्थक भट्ट को कांग्रेस का एजेंट और उनके द्वारा मोदी के खिलाफ दिए गए बयानों को कांग्रेस के इशारे पर दिया गया बयान बताते रहे हैं। कांग्रेस के कम से कम कुछ नेताओं को यह बात समझनी चाहिए थी कि भट्ट की पत्नी को उम्मीदवार बनाने से मोदी को एक हथियार मिल जाएगा। श्वेता भट्ट जब यह कहती हैं कि वह चुनाव का इंतजार कर रही थीं ताकि गुजरात में चल रही तानाशाही को उजागर करने का उन्हें मंच मिले, तो शायद वह सच बयान कर जाती हैं। बहुत सारे लोग उनके आरोपों का समर्थन करेंगे, क्योंकि मोदी की आलोचना के कारण उन्हें परेशानी झेलनी पड़ी है, लेकिन मुझे लगता है कि अगर वह कांग्रेस का टिकट नहीं लेतीं तो ज्यादा मजबूत स्थिति में रहतीं। निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उनकी विश्वसनीयता ज्यादा होती। मोदी सरकार की शह से जो हत्याएं और ज्यादतियां हुई, उन्हें लोगों के ध्यान में लाना गुजरातियों के जमीर को जगा सकता है। जिन लोगों पर नरसंहार में शामिल होने का आरोप है उन्हें उनका समर्थन मिलना दुखद है। मोदी और भाजपा नेताओं का बड़ा परिवार राज्य की जनता को दो धु्रवों में बांटना चाहेगा। यह उनका एकमात्र एजेंडा है, लेकिन इसे खारिज करना गुजरातियों का काम है। देश पंथनिरपेक्ष है, लेकिन यह कितना गलत है कि उनकी वैचारिक सोच ठीक इसके उलट है। उन्हें जानना चाहिए कि संविधान भारतीयों के बीच धर्म या जाति के आधार पर किसी तरह के भेदभाव की इजाजत नहीं देता। गुजराती अगर मुख्यधारा में लौटते हैं तो वे न सिर्फ मुसलमानों, बल्कि पूरे देश को भरोसा दिलाएंगे। न सिर्फ गुजरात, बल्कि पूरे देश में मुसलमान खुद को असुरक्षित और असहाय महसूस करते हैं।
ऐसा देखा गया है कि महज संदेह के आधार पर पुलिस मुसलमान युवकों को गिरफ्तार करती रही है। इनमें से कुछ छूट गए हैं, जबकि कई अभी भी न्याय के इंतजार में हैं। उनकी गिरफ्तारी और वर्षो तक जेल में रखे जाने के लिए अदालतें जवाबदेह हैं। सबसे बुरा तो यह है कि इसके लिए किसी को जवाबदेह नहीं ठहराया गया है। चौदह सालों तक जेल में रहने के बाद एक व्यक्ति को दिल्ली हाईकोर्ट ने निर्दोष करार दिया। कम से कम पुनर्वास के लिए उन्हें वित्तीय सहायता दी जानी चाहिए। बंटवारे के बाद कभी भी मुसलमान उतने अपमानित नहीं हुए जितना आज हो रहे हैं। वे हताश और निराश हैं। उनके हालात में सुधार के लिए सच्चर कमेटी की रिपोर्ट लागू नहीं हुई है। मैं इस बात को लेकर आशान्वित हूं कि वह दिन दूर नहीं जब बड़े शहरों के रिहायशी इलाकों में मुसलमानों को किराए का मकान मिल जाया करेगा। नि:संदेह कुछ मुसलमानों ने हताशा में आतंकवाद का रास्ता अपना लिया है, लेकिन इस समस्या का हल जवाबी आतंकवाद नहीं है, जैसा कि कुछ अतिवादी हिंदू संगठन कर रहे हैं। दोनों समुदायों को यह बात समझनी चाहिए कि हत्या से हत्या ही उपजती है। इन सबके बावजूद लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज मोदी को भारत का अगला प्रधानमंत्री बनाना चाहती हैं। भाजपा के प्रति उनकी वफादारी समझने वाली बात है, लेकिन जिस व्यक्ति के ऊपर गुजरात दंगों का दाग लगा हो उसे वह देश पर कैसे थोप सकती हैं? अगर सुप्रीम कोर्ट ने मुठभेड़ और दूसरे अपराधों से जुड़े मामलों को गुजरात के बाहर की अदालतों में स्थानांतरित नहीं किया होता तो मोदी और उनकी टीम तमाम अपराधों को दबाने में कामयाब हो गई होती।
ब्रिटिश उच्चायुक्त जेम्स बेवन की अहमदाबाद में मोदी से मुलाकात मुख्यमंत्री के आलोचकों का मजाक उड़ाने के बराबर है। बेवन का कहना था कि ब्रिटेन गुजरात के साथ व्यापार बढ़ाना चाहता है। वह उपायुक्त दिल्ली में हैं, अहमदाबाद में नहीं। जैसा कि अहमदाबाद स्थित एक सोसाइटी ने ब्रिटिश उच्चायुक्त को लिखे पत्र में कहा, नैतिकता के साथ समझौता नहीं किया जा सकता। इसके लिए महात्मा गांधी ने दृढ़ता के साथ संघर्ष किया था और अंतत: अपनी जान न्यौछावर कर दी थी। मोदी के वीजा को लेकर अमेरिका में फिर से जो विरोध हुआ है वह समझने वाली बात है, क्योंकि वाशिंगटन यह संकेत नहीं देना चाहता है कि वह लंदन के रास्ते पर चलेगा। यह संदेश दुनिया के तमाम देशों में जाना चाहिए।
लेखक कुलदीप नैयर प्रख्यात स्तंभकार हैं
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