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जापान के हालिया चुनाव में शिंजो एबे के नेतृत्व वाली लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) को पूर्ण बहुमत मिल गया है। 480 सदस्यों वाली संसद के निचले सदन में इसे 300 सीटें प्राप्त हुई हैं और इसकी सहयोगी पार्टी न्यू कोमिटो पार्टी को 30 सीटें ही मिली हैं। दोनों पार्टियों को मिलाकर निचले सदन में एलडीपी को दो-तिहाई बहुमत मिल गया है। अब एलडीपी को देश में कोई भी कानून बनाने में कोई कठिनाई नहीं होगी। एलडीपी पार्टी का जापान की आम जनता ने इसलिए भी स्वागत किया है कि हाल में चीन पूर्वी एशिया सागर में अपनी दादागिरी दिखा रहा है। पूर्वी एशिया सागर में कुछ ऐसे द्वीप हैं जिन पर पिछले अनेक वषरें से जापान का कब्जा रहा है। इन द्वीपों को जापान में सेनकाकू द्वीप और चीन में दियाआयू द्वीप कहते हैं। चीन कुछ वषरें से दक्षिण चीन सागर में आने वाले देशों के द्वीपों पर अपना अधिकार जता रहा है, परंतु इस क्षेत्र में आने वाले देश वियतनाम, मलेशिया, फिलीपीन्स और ताइवान का कहना है कि पिछले अनेक वषरं से दक्षिण चीन सागर के द्वीपों पर उनका अधिकार है। यह अधिकार वे कभी नहीं छोड़ेंगे। इन द्वीपों में तेल, गैस और खनिज पदाथरे के विशाल भंडार छिपे पड़े हैं। अमेरिका ने बार-बार चीन से कहा है कि वह इन सभी देशों से एक साथ बात करे जिससे समस्या का समाधान खोजा जा सके, परंतु चीन इस सलाह पर अमल करने के लिए तैयार नहीं है। वह इन देशों से अलग-अलग बात करना चाहता है और उन्हें डरा-धमकाकर इस बात के लिए राजी करना चाहता है कि वे इन द्वीपों पर अपना अधिकार छोड़ दें।
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दक्षिण चीन सागर पर विवाद अभी टला भी नहीं था कि चीन ने पूर्वी एशिया सागर के कुछ द्वीपों पर अपना हक जता दिया दिया, जो वषरें से जापान के कब्जे में हैं। किसी भी क्षण इस क्षेत्र में चीन और जापान टकरा सकते हैं। इन द्वीपों में तेल और गैस के विशाल भंडार हैं। चीन जापान की कमजोरी को अच्छी तरह समझता है। उसे यह पता है कि सूनामी के कारण जापान की अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई है। इसलिए वह अधिक प्रतिरोध करने की स्थिति में नहीं है। एलडीपी के अध्यक्ष शिंजो एबे ने चुनाव के दौरान जापान की जनता से यह अपील की कि जापान को सुरक्षा के मामले में अपने पैरों पर खड़ा होना होगा अन्यथा चीन कोई बहाना बनाकर उसे हड़पने का प्रयास करेगा। शिंजो एबे इसके पहले भी जापान के प्रधानमंत्री थे, परंतु गिरते हुए स्वास्थ्य के कारण 2007 में उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था।
वह भारत के अनन्य मित्र हैं। लोगों ने योशिहिको नोडा को इसलिए भी आम चुनाव में धूल चटा दी कि उनके दल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जापान के गलत निर्णयों के कारण जापान की अर्थव्यवस्था जर्जर हो गई। शिंजो एबे का कहना है कि जापान तब तक खोई हुई प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं कर सकता है जब तक वह पहले की तरह ही आर्थिक दृष्टिकोण से संपन्न देश नहीं हो जाए। जापानियों को इस बात का बहुत गम है कि संसार के संपन्न देशों में जापान की जगह चीन ने ले ली है। आगामी कुछ महीनों में यह तय होगा कि क्या श्ंिाजो एबे जापान को पहले की तरह प्रतिष्ठा का स्थान प्राप्त करा सकेंगे और क्या वह चीन की भड़काऊ गतिविधियों का मुंहतोड़ जवाब दे सकेंगे? यदि जापान ने चीन की उकसाने वाली गतिविधियों का मुंहतोड़ जवाब दिया तो दक्षिण चीन सागर और पूर्वी एशिया सागर के सभी देश उसके साथ हो जाएंगे। परंतु लाख टके का प्रश्न यह है कि क्या जापान चीन को मुंहतोड़ जवाब दे सकेगा? आगामी कुछ महीने चीन और जापान के संबंधों की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होंगे। चीन कमजोर पड़ोसियों को ललकारने से बाज नहीं आता है। देखना यह है कि क्या शिंजो एबे की एलडीपी सरकार चीन को मुंहतोड़ जवाब दे सकेगी?
लेखक डॉ. गौरीशंकर राजहंस पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत हैं
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