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एक-दूसरे की जरूरत हैं दोनों देश

जागरण मेहमान कोना
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24 दिसंबर को जहां दिल्ली गुस्से से उबल रही थी, वहीं दूसरी ओर भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन आपसी रिश्ते की नई इबारत लिख रहे थे। दोनों देशों के बीच हुई द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा ने पुरानी यारी को और शिखर तक पहुंचाने का संकेत दिया है। चर्चा के केंद्र में दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध, ऊर्जा तथा अरबों डॉलर के रक्षा सौदे रहे। भारत और रूस के बीच कूटनीतिक संबंधों को इस साल 65 वर्ष पूरे हो गए। साल के आखिर तक भारत और रूस के बीच व्यापार बढ़कर रिकॉर्ड 10 अरब डॉलर तक होने की उम्मीद है। दोनों देशों के बीच आठ अहम समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं। इससे पहले रूस ने भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता दिलाने के लिए समर्थन करने का फैसला लिया था। उस मुद्दे पर भी पुतिन ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आश्वस्त किया। ऐसे में यह कहना सही होगा कि पुतिन की यह एकदिवसीय भारत यात्रा सकारात्मक रही।


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मनमोहन सिंह और पुतिन की मुलाकात के दौरान आठ समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के लिए स्थायी सीट का समर्थन करते हुए विदेश नीति से संबंधित मामलों में पुतिन के सहायक ने बता दिया था कि रूस सुरक्षा परिषद के विस्तार की स्थिति में भारत को उसके स्थायी सदस्य के लिए सर्वाधिक योग्य और मजबूत दावेदार के रूप में देखता है। वह शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का स्थायी सदस्य बनने के लिए भी इसके निर्णय का समर्थन करता है। बताते हैं कि दोनों देशों के बीच के व्यापारिक संबंधों को ठीक करने पर बातचीत हुई। दोनों देशों के बीच के व्यापार को 2015 तक 10 अरब डॉलर से बढ़ाकर 20 अरब डॉलर करने की योजना है। जानकार मानते हैं कि पुतिन ने कोशिश की कि भारत के साथ रिश्ते फिर से प्रगाढ़ बनें। इसी दरम्यान उन्होंने कारोबार और हथियारों के सौदे पर बातचीत की। तीसरी बार रूस के राष्ट्रपति बने ब्लादिमीर पुतिन इस बार 7.5 अरब डॉलर के रक्षा सौदों के प्रस्ताव के साथ नई दिल्ली आए थे। बताया गया कि दोनों देश 290 किलोमीटर तक मार करने वाली इस मिसाइल को एसयू-30एमकेआइ में फिट करने की तकनीक विकसित करेंगे। बीते वर्ष शुरू हुए अरब बसंत के बाद से हथियार बाजार में रूसी कंपनियों को मंदी का सामना करना पड़ रहा है।



वैसे भी भारत ही रूसी हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार रहा है। बीते कुछ सालों से अमेरिकी कंपनियां भी भारत को हथियार बेचने में दिलचस्पी ले रही हैं। पिछले साल रूसी कंपनियों को नजरंदाज कर भारत ने फ्रांस से 126 लड़ाकू विमान खरीदे और बीते महीने भारत ने अमेरिकी कंपनी बोइंग के साथ 1.4 अरब डॉलर का हेलीकॉप्टर का सौदा किया। बताते हैं कि युद्धपोत एडमिरल गोर्शकोव का सौदा भी दोनों देशों के बीच कड़वाहट घोल चुका है। भारत और रूस के बीच एडमिरल गोर्शकोव का सौदा 2004 में हुआ, लेकिन अब तक यह जहाज भारत को नहीं मिल सका है। रूस की तरफ से हुई देरी ने युद्धपोत की कीमत बढ़ा दी। बढ़ी हुई कीमत भारत को चुकानी पड़ी। भारतीय नौसेना की शिकायत है कि रूस से खरीदी गई एकमात्र परमाणु पनडुब्बी चक्र में खराबी आ रही है। इसके कुछ पुर्जे काम नहीं कर रहे हैं। इस प्रकार रूस और भारत के बीच शीत युद्ध के जमाने से रही अच्छी दोस्ती बीते एक दशक से ढलान की ओर जाती दिख रही थी।


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इसी क्रम में 24 दिसंबर को पुतिन के भारत आने से पहले रूस ने भारत की सरकारी तेल और गैस कंपनी ओएनजीसी की इकाई को टैक्स में रियायत देने से इन्कार कर दिया था। इसे लेकर भी दोनों देशों के बीच टकराव की स्थिति बन रही थी। जानकारों का कहना है कि भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय वार्ता के दौरान ओएनजीसी विवाद पर भी चर्चा हुई। पुतिन ने प्रधानमंत्री को सकारात्मक आश्वासन दिया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से बातचीत के दरम्यान पुतिन ने भारत के साथ कारोबार बढ़ाने की पेशकश की। वे चाहते थे कि दोनों देशों के द्विपक्षीय कारोबार को बढ़ाया जाए। विज्ञान, शिक्षा और दूसरे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाया जाए। भारतीय अर्थव्यवस्था बेहताशा खर्च करने की क्षमता रखती है, अन्य देशों की तरह रूस भी इसका फायदा उठाना चाहता है। पुरानी दोस्ती की वजह से मॉस्को का दावा ज्यादा मजबूत भी है, लेकिन अब भारत भी एक हाथ दे, एक हाथ ले की स्थिति में है। अब देखना है कि भारत और रूस के रिश्ते किस तरह और प्रगाढ़ बन पाते हैं, जबकि अमेरिका की तिरछी नजर इन दोनों देशों की ओर टिकी हुई है।



लेखक राजीव रंजन तिवारी स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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ताकि फिर न मारे जाएं मासूम



Tag:भारतीय , प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ,रूस , राष्ट्रपति,  ब्लादिमीर पुतिन ,india,ruse,Baladimir putin,Manmohan Singh

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