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नकद सब्सिडी कार्यक्रम को व्यावहारिक रूप से कारगर बनाने के लिए जो तैयारी होनी चाहिए, वह फिलहाल नहीं दिखती। कैश ट्रांसफर के तहत गरीब परिवारों को 30 से 35 हजार रुपये सालाना का भुगतान होगा। इस मद में सरकार सालाना तीन लाख बीस हजार करोड़ रुपये खर्च करेगी। वैसे सरकार के लिए यह काम बड़ा चुनौतीपूर्ण है। इसलिए सवाल उठ रहे हैं कि क्या सरकार डायरेक्ट सब्सिडी ट्रांसफर को एक कामयाब स्कीम बना पाएगी? सब्सिडी के बदले कैश स्कीम को संप्रग-2 का एक महत्वाकांक्षी कदम माना जा रहा है। अब तक गरीबों को हर साल सब्सिडी के रूप में जो सहायता दी जाती थी, वह दूसरों की जेबों में चली जाती थी। पूरा लाभ गरीबों को नहीं मिल पाता था। इस योजना से भ्रष्टाचार तो खत्म होगा ही, बिचौलियों का काम भी खत्म हो जाएगा। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को अपनी मेहनत का पैसा भी पूरा मिलेगा। यह तय है कि अगर कैश सब्सिडी की योजना सफल रही तो सरकारी योजनाओं का सीधा फायदा उन गरीब और कमजोर लोगों को ही हासिल हो सकेगा, जो अब तक अफसरशाही और दलालों के मकड़जाल के चलते इससे महरूम रहते आए हैं। साथ ही जरूरतमंदों को सब्सिडी के बजाय सीधे कैश देने से उनके पास खर्च करने के लिए ज्यादा पैसा होगा। इकोनॉमिक थ्योरी के मुताबिक, सरकार परिवारों का कल्याण करके कम खर्च में ज्यादा काम कर सकती है।
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सरकार की मानें तो ये हर जरूरतमंद तक ईमानदारी से सब्सिडी पहुंचाने का एकमात्र कारगर हथियार है और इस स्कीम में गड़बड़ी की कोई गुंजाइश नहीं है। सरकार को लगता है कि सीधे कैश ट्रांसफर से भ्रष्टाचार को रोका जा सकेगा। सवाल यह है कि क्या कैश ट्रांसफर योजना सचमुच में हर मर्ज की दवा यानी गेम चेंजर है? असल में कैश ट्रांसफर योजना कोई ऐसी नई या नायाब योजना नहीं है और न ही देश में पहली बार लागू होने जा रही है। वृद्धावस्था, विधवा पेंशन, आंगनवाड़ी कर्मियों का मानदेय और छात्रवृत्ति आदि लाभार्थियों को पहले से ही बैंक में नकद या चेक के जरिये मिलती रही है। दूसरी तरफ सब्सिडी के कैश ट्रांसफर यानी लाभार्थियों को सीधे नकद सहायता देने की योजना को लागू करने का काम बेहद पेचीदा है। सरकार ने कैश सब्सिडी को सीधे विशेष पहचान पत्र यानी यूआइडी से जोड़ने का एलान किया है। उसका मानना है कि यूआइडी कार्ड अगर गरीब को मिल जाता है तो उसकी सब्सिडी कोई और छीन नहीं सकता।
सरकार को लगता है कि सिर्फ इतनी सावधानी बरतने से ही सब्सिडी पर होने वाला फ्रॉड रुक जाएगा। हां, आधार कार्ड से एक बड़ा लाभ होगा कि फर्जी आइडेंटिटी की समस्या खत्म हो जाएगी। आंकड़ों में कई स्तरों पर दोहराव की समस्या खत्म हो जाएगी, लेकिन जरूरतमंदों और गरीबों की पहचान कैसे होगी? इन सारी समस्याओं के लिए भारत सरकार के पास कोई ठोस जवाब नहीं है। हालांकि अभी देश की करीब 20 फीसद आबादी के पास ही यूआइडी है। न तो सबके पास बैंक खाते हैं और न ही हर गांव तक बैंक की पहुंच है। देश में मात्र 18 से 20 फीसद लोगों के पास बैंक खाते हैं। ऐसे में देश के करीब छह सौ से अधिक जिलों और छह लाख से अधिक गांवों तक इस योजना को लागू करना सरकार के लिए टेढ़ी खीर होगी। इस कारण आधार कार्ड कोई जादू की छड़ी नहीं बनने जा रही है, जिससे गरीबों की सही-सही पहचान हो जाए।
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राज्य सरकार और जिला प्रशासन जिसे गरीब घोषित करेगा, उसे उसके आधार कार्ड की पहचान के आधार पर इन योजनाओं का सीमित लाभ मिलेगा। यही नहीं, आगे चलकर सरकार का इरादा राशन और उर्वरक सब्सिडी को भी इसके तहत लाने का है, जिसका मतलब होगा कि पीडीएस की मौजूदा व्यवस्था को खत्म करके सरकार अनाज के बजाय सीधे लोगों को उतना पैसा दे देगी, जिससे वे खुले बाजार से अपनी पसंद का अनाज खरीद लें। अगर ऐसा हुआ तो एक ओर सरकार को किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज खरीदने से मुक्ति मिल जाएगी, क्योंकि जब पीडीएस राशन नहीं तो अनाज खरीदने की क्या जरूरत है। कांग्रेस पार्टी कैश सब्सिडी स्कीम को मनरेगा की तरह एक गेम चेंजर के तौर पर देख रही है। अब यह भ्रम है या सच्चाई, यह तो भविष्य बताएगा, पर इतना तय है कि जिस ब्राजील और लुला की तर्ज पर इसे शुरू किया गया है, वहां और भारत की स्थितियों में बहुत फर्क है। मनरेगा का हश्र किसी से छुपा नहीं है। वहां भी पैसा सीधा अकाउंट में आता है, पर भ्रष्टाचार की जो कहानियां मनरेगा ने लिखी हैं, उसका कोई जवाब नहीं है।
लेखक रवि शंकर स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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