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विज्ञान नीति की सीमाएं

जागरण मेहमान कोना
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करीब एक दशक बाद देश ने नई विज्ञान नीति लागू कर दी है। इस नीति को लागू करने की औपचारिक घोषणा कोलकाता में आयोजित राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस के शताब्दी समारोह में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने की। नई और 2003 में लागू की गई विज्ञान नीति में एक बड़ा अंतर है। पिछली विज्ञान नीति का मकसद विज्ञान और प्रौद्योगिकी को एक साथ लाना था। सोचा गया था कि एक तो इससे देश के वैज्ञानिक संस्थानों पर से नौकरशाही का प्रभुत्व खत्म होगा और देश के उद्योगों को इसका फायदा मिलेगा, लेकिन यह अनुभव किया गया है कि पिछली विज्ञान नीति उद्योग को विज्ञान के फायदे दिलाने में नाकाम रही। देश के विज्ञान जगत को नौकरशाही के जिन दबावों और पक्षपातवाद से निजात दिलाने का वादा पिछली विज्ञान नीति में किया गया था, उसका कोई खास असर तक देखने को नहीं मिला है।


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ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी ही है कि क्या हमारा देश अगले एक दशक में विज्ञान से जुड़े वे लक्ष्य हासिल कर पाएगा, जिन्हें सामने रखकर नई विज्ञान नीति लागू की गई है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि बड़े लक्ष्य सामने रखते हुए हमारे नीति-निर्माता विज्ञान की उन बुनियादी जरूरतों को नजरअंदाज कर देते हैं, जिन्हें पूरा करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। विज्ञान, तकनीकी और नवाचार (एसटीआइ) नाम से लागू की जा रही नई विज्ञान नीति के तहत सरकार का प्रयास देश का तेज, स्थायी और समग्र विकास करना है। साथ ही इसके लिए वैश्विक अनुभवों के आधार पर नापजोख का एक मजबूत पैमाना बनाना है ताकि हासिल किए जाने वाले लक्ष्यों की उपयोगिता आदि की समय-समय पर जांच हो सके। इस नई नीति में ज्यादा जोर नवाचार के लिए वैविध्यपूर्ण माहौल बनाने पर रहेगा जिससे कि वैज्ञानिकों को देश में रहकर नए प्रयोग, अनुसंधान और आविष्कार करने की आजादी मिल सके।



इसके तहत विज्ञान और तकनीकी विभाग देश के 35 राज्यों के विज्ञान में रुचि रखने वाले एक हजार से ज्यादा छात्रों को इंस्पायर (इनोवेशन इन साइंस परसूट फॉर इंस्पायर्ड रिसर्च) नामक कार्यक्रम में बड़े शोध के अवसर भी देगा। इंस्पायर के अंतर्गत कक्षा छह से दस में पढ़ने वाले तीन लाख से ज्यादा छात्रों को विज्ञान की जिलास्तरीय प्रदर्शनियों में अपने वैज्ञानिक समझबूझ दर्शाने का मौका देने की भी योजना है। इस योजना का उद्देश्य छात्रों में विज्ञान को एक कैरियर के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित करना है। इंस्पायर के तहत पंजीकृत कक्षा 12 के छात्रों में से सर्वश्रेष्ठ प्रर्दशन करने वाले एक प्रतिशत छात्रों को स्नातक स्तर की कक्षाओं में सालाना 80 हजार रुपये की छात्रवृत्ति देने की भी योजना है। निश्चय ही ये पहलकदमियां हमारे देश में विज्ञान के क्षेत्र में लंबे अरसे से कायम सूखा खत्म करने में मददगार साबित हो सकती हैं।


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अभी हमारे देश में विज्ञान के क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या यही है कि उसमें रोजगार के विकल्प अनाकर्षक हो गए हंी और प्रतिभावान छात्रों व वैज्ञानिकों को अपनी योग्यता के अनुरूप न तो सुविधाएं मिलती हैं और न ही माहौल। असल में मौजूदा चुनौतियों के मद्देनजर हमारे देश को विज्ञान में और ज्यादा निवेश करने तथा उन क्षेत्रों में पूरी ताकत से कार्य आरंभ करने की जरूरत है जिनका कोई ठोस लाभ भारत जैसे विकासशील देश को निकट भविष्य में मिल सकता है। जिस सौर ऊर्जा में असीम संभावनाएं भारत जैसे गर्म मुल्क में हैं, उसके दोहन के लिए गुजरात से बाहर कोई बड़ा सोलर पावर प्लांट लाने की योजना नहीं है। जबकि इस तरह के इंतजामों से बहुत कम कीमत में लंबे समय तक ऊर्जा मिलने का प्रबंध हो सकता है। इसी तरह बाढ़ और सूखे की स्थायी समस्या के निदान के लिए नदी जोड़ परियोजना (रिवर लिंक प्रोजेक्ट) को कागजों से निकाल कर हकीकत में साकार करने का कोई प्रयास नहीं हो रहा है। भारत की इन मौलिक समस्याओं के समाधान में विज्ञान काफी मदद कर सकता है, लेकिन ऐसे समाधान के ठोस प्रारूप दुर्भाग्य से हमारी विज्ञान नीतियों का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।



लेखक अभिषेक कुमार सिंह  स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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Tag:विज्ञान नीति, प्रधानमंत्री, मनमोहन सिंह,कांग्रेस,सरकार, इनोवेशन इन साइंस परसूट फॉर इंस्पायर्ड रिसर्च, नदी जोड़ परियोजना ,रिवर लिंक प्रोजेक्ट

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