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रेलवे ने रेल बजट आने से महीना भर पहले ही यात्री किरायों में 20-25 फीसदी बढ़ोतरी कर दी है। रेल मंत्री पवन कुमार बंसल के मुताबिक यदि हर साल इन किरायों में सात प्रतिशत बढ़ोतरी होती रहती तो किरायों में की गई यह बढ़त नहीं खलती। चूंकि किराये करीब दशक बाद बढ़ाए गए हैं, इसलिए यह बढ़त ज्यादा प्रतीत हो रही है। पर रेल यात्रियों को किरायों की गई यह वृद्धि अनुचित नहीं लगती यदि इसके साथ-साथ उन्हें सफर में समुचित सुविधाएं भी दी गई होतीं। ट्रेनों में परोसे जाने वाले भोजन, साफ-सफाई और सुरक्षा आदि अनेक मुद्दों पर राहत दी गई होती। देश के भूगोल के हिसाब से सबसे ज्यादा जरूरत ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाने की है क्योंकि हमारी ज्यादातर ट्रेनें आज भी कछुआ चाल से रेंग रही हैं।
जिस तरह से पड़ोसी देश चीन ने अपनी राजधानी बीजिंग को 2298 किलोमीटर दूर स्थित औद्योगिक शहर गुआंगझो से 300 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली बुलेट ट्रेन से जोड़ा है, तो भारतीय रेल की गति का मुद्दा और भी प्रासंगिक लगने लगा है। रेल राज्यमंत्री केजे सूर्यप्रकाश रेड्डी के अनुसार वर्ष 2011-12 के दौरान मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों की औसत गति 50 किमी प्रति घंटा रही, जबकि बड़े शहरों में चलने वाली ईएमयू की औसत गति 40 किमी प्रति घंटा रही। साधारण पैसेंजर ट्रेनें फिलहाल 36 किमी प्रति घंटे की औसत गति से ही चल पा रही हैं और सामान ढोने वाली मालगाडि़यां महज 25 किमी प्रति घंटे की औसत रफ्तार निकाल पा रही है। ब्रॉड गेज के मुकाबले मीटर गेज यानी छोटी रेलवे लाइन पर चलने वाली यात्री रेलगाडि़यां 30 किमी जबकि मालगाडि़यां 14 किमी प्रति घंटे की औसत रफ्तार से चल पा रही हैं। रेलवे के मुताबिक ट्रेनों की गति उनके इंजन की ताकत के अलावा कई अन्य चीजों पर निर्भर करती है जैसे, पटरियों की हालत, सिग्नलिंग सिस्टम, मार्ग में पड़ने वाले स्टेशन और उनमें सवार यात्रियों अथवा उनके जरिए ढोए जा रहे सामान का वजन।
भारत में चीन-जापान जैसी तेज रफ्तार ट्रेनें चलाना वक्त की मांग कही जा सकती है। भौगोलिक दूरियों के लिहाज से भी इन्हें भारत की अनिवार्य जरूरतों में गिना जा सकता है। देश के एक छोर से दूसरे छोर तक ट्रेन से आने-जाने में आज भी कई-कई दिन का समय लग जाता है। इसी तरह यदि कारखानों तक देश के किसी हिस्से से कच्चा माल पहुंचाने और वहां से उत्पादित सामान को दूसरी जगह तक पहुंचाने में और भी ज्यादा वक्त लगता है क्योंकि मालगाडि़यों की औसत रफ्तार पैसेंजर ट्रेनों की लगभग आधी है। सड़क के जरिए ट्रकों से होने वाली माल ढुलाई से कड़ी चुनौती मिलने की दशा में यह और भी जरूरी है कि ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाई जाए अन्यथा रेलवे भारी घाटे की स्थिति में पहुंच सकती है क्योंकि माल ढुलाई इसकी आय का एक प्रमुख जरिया है।
देश की भावी जरूरतों को देखते हुए हाई स्पीड ट्रेनें नि:य ही हमारी प्राथमिकता में शामिल होनी चाहिए, लेकिन मानवरहित लेवल क्रॉसिंग, रेलवे ट्रैकों का घटिया मेंटिनेंस, एक सदी से भी ज्यादा पुराने हजारों पुल और ऑटो सिग्नलिंग का अभाव – इन दिक्कतों से पार पाए बिना रेलवे के आधुनिकीकरण की सारी कोशिशें व्यर्थ साबित हो सकती हैं। कभी वर्ल्ड क्लास स्टेशन, तो कभी बुलेट ट्रेन जैसे हाई प्रोफाइल प्रोजेक्टों की बातें सुनने में चाहे जितनी भली लगें, लेकिन इस तरफ बढ़ने से पहले भारतीय रेलवे को उन अनगिनत समस्याओं का नोटिस लेना होगा जो इसकी मामूली चाल तक में रोड़े अटकाती हैं। एक्सप्रेस ट्रेनों में जनरल बोगियां बढ़ाने, एक्सिडेंट और लूटपाट रोकने, रिजर्वेशन और भोजन की क्वॉलिटी में सुधार से लेकर रेल लाइनों की लंबाई बढ़ाने जैसे अनगिनत मुद्दे हैं जिन्हें प्राथमिकता पर लेकर उनका हल ढूंढा जाएगा तो रेल का सफर काफी सुकून भरा हो जाएगा।
लेखक अभिषेक कुमार सिंह स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
Read:रेल किराये में बढ़ोतरी का औचित्य
Tag:Railway , Ministry of Railway , india , china , japan , रेल बजट , भारत , चीन , जापान
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