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राहुल गांधी की ताजपोशी के मायने

जागरण मेहमान कोना
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देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस में एक बार फिर बदलाव की बयार बहती दिखाई दे रही है। यह तय हो चुका है कि अगले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ही कांग्रेस की अगुवाई करेंगे और जयपुर चिंतन शिविर में पार्टी के इस युवा नेता को उपाध्यक्ष पद पर बिठाकर नंबर दो की उनकी हैसियत पर औपचारिक मुहर भी लगा दी गई है। नई जिम्मेदारियों को संभालने के बाद चिंतिन शिविर में राहुल गांधी का भाषण कांग्रेस के लिए उम्मीद तो जगाता है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि पिछले कई बरसों से पुराने ढर्रे पर चली आ रही कांग्रेस और इसके नेताओं को बदलना कितना मुश्किल है? राहुल गांधी के भाषण में सहजता और सरलता तो दिखाई दी, लेकिन उनके चेहरे पर कांग्रेस में आमूलचूल परिवर्तन की छटपटाहट भी साफ दिखाई दे रही थी। इसमें कोई दो मत नहीं कि राहुल गांधी ने अपने भाषण में कांग्रेस पार्टी को आईना दिखाने की कोशिश की है। अगर हम 1985 के कांग्रेस अधिवेशन पर गौर करें तो उस वक्त राजीव गांधी ने भी कुछ इसी अंदाज में पार्टी में आमूलचूल बदलाव की बात कही थी, लेकिन तब से लेकर आज तक कांग्रेस में सकारात्मक बदलाव कम ही नजर आए।


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राहुल गांधी ने अपने भाषण में कांग्रेस और देश के विकास को लेकर कई बातें कहीं, लेकिन कुछ मसलों पर उनकी बातें और कांग्रेस की नीतियों में विरोधाभास भी दिखाई दिया। आम कार्यकर्ता और जमीनी नेता राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी में बड़े बदलाव की बात कर रहे हैं और उनका कहना है कि पार्टी में आम कार्यकर्ताओं को अहमियत मिलेगी और उनकी बातों पर गौर किया जाएगा। राहुल का कहना है कि हर कार्यकर्ता की कद्र होनी चाहिए। वह यह भी कहते हैं कि काम नहीं करने वाले नेताओं पर सख्ती हो और अगर ऐसे नेता दो तीन बार कहने पर भी नहीं सुधरे तो उन्हें हटा दिया जाए और उनकी जगह किसी और को मौका दिया जाए। इस बात के लिए राहुल गांधी की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने बिना किसी लाग लपेट के इस बात को माना है कि टिकट वितरण में ऊपर से फैसले लिए जाने गलत हैं। उनका यह कहना ठीक है कि जमीन पर कार्यकर्ता काम करता है और टिकट वितरण के समय जिलाध्यक्ष, ब्लॉक अध्यक्ष और ब्लॉक समितियों से कोई राय नहीं ली जाती। राहुल ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि चुनाव से ठीक पहले दूसरे दलों के लोग आ जाते हैं, उन्हें टिकट भी मिल जाता है और चुनाव हारने के बाद ऐसे लोग फिर चले जाते हैं। क्या वाकई कांग्रेस में अब आम कार्यकर्ताओं और जमीनी नेताओं की बात को सुना जाएगा? क्या गणेश परिक्रमा करने और टेलिविजन चैनलों में जाकर बौद्धिक उछलकूद करने वाले नेताओं की बजाय पार्टी में जमीनी नेताओं को अहमियत मिलेगी? राहुल गांधी ने टिकट वितरण में ऊपर से फैसले लिए जाने की बात को गलत ठहराया है, लेकिन कांग्रेस के उपाध्यक्ष ने आम कार्यकर्ताओं और जमीनी नेताओं की उन बातों का कोई जिक्र नहीं किया, जिसमें बिहार विधानसभा और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में टिकट बेचने की शिकायतें आई थीं। कांग्रेस को इस बात पर गौर करने की जरूरत है कि महाराष्ट्र के राजनेता को बिहार का प्रभारी और मध्य प्रदेश के नेता को उत्तर प्रदेश का प्रभारी जैसे प्रयोग क्यों असफल रहे हैं? जनाधार वाले जमीनी नेताओं और कार्यकर्ताओं को अहमियत देकर ही कांग्रेस अपनी खिसकती बुनियाद को मजबूत कर सकती है, लेकिन इन सभी बातों के अलावा राहुल गांधी को यह बात समझनी होगी कि अपने ही राज्यों में पार्टी को हाशिये पर ला चुके राजनेताओं के दम पर भविष्य की राजनीति नहीं की जा सकती।


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राहुल गांधी का कहना है कि हमें चालीस-पचास ऐसे नेता तैयार करने हैं, जो सिर्फ प्रदेश को ही नहीं देश को भी चला सकें। हर प्रदेश में मुख्यमंत्री के लिए कई योग्य नेता हो। हर राजनीतिक दल को यह अधिकार है कि वह अपने राजनीतिक नेतृत्व को मजबूत करे और उन लोगों को आगे लेकर आए, जो ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ अपनी भूमिका को भलीभांति निभा सके। अगर हम बात कांग्रेस पार्टी की करें तो यह तभी हो सकता है, जब हाईकमान के इर्द गिर्द वह कोटरी पूरी तरह खत्म कर दी जाए, जिसके चलते जनाधार वाले प्रदेश स्तर का एक नेता भी अपनी बात ऊपर तक नहीं पहुंचा पाता। ब्रांड की राजनीति भ्रष्टाचार को लेकर राजीव गांधी का कहना था कि यदि एक रुपया बाहर जाता है तो गांव में पहुंचते-पहुंचते वह पंद्रह पैसे रह जाता है, लेकिन अब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का कहना है कि नकद सब्सिडी के जरिये अब गरीबों तक पहुंचेंगे सौ में से 99 पैसे। महंगाई और भ्रष्टाचार से आम आदमी त्रस्त है और जिस तरह से जरूरी चीजों के दाम बढ़ रहे हैं, उसे लेकर आम आदमी का गुस्सा किसी से छिपा नहीं है, लेकिन अब कांग्रेस नकद सब्सिडी के जरिये देश में भ्रष्टाचार को मिटाने और बिचौलियों को खत्म कर व्यवस्था को सुधारने की बात कर रही है। कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ का नारा देने वाली पार्टी में आज आम आदमी के हितों की सबसे ज्यादा अनदेखी की जा रही है। दरअसल, आजादी के बाद से लेकर अब तक कांग्रेस में चाटुकारों की एक लंबी-चौड़ी जमात रही है और ये वे लोग हैं, जिनका कांग्रेस की विचारधारा से कोई सरोकार नहीं है। ये वे लोग हैं, जो आम आदमी के हितों की राजनीति करने के बजाय ब्रांड की राजनीति करते हैं, इनमें से कुछ लोगों का यह भी मानना है कि चुनाव आम लोगों का भरोसा हासिल करके नहीं, बल्कि चुनावी प्रबंधन से जीते जाते हैं। मीडिया की बढ़ती भूमिका और संचार माध्यमों की पहुंच से आज आम आदमी की जागरूकता का स्तर बढ़ा है। भारतीय राजनीति में अब वह दौर खत्म हो गया, जब नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य अपनी फूल मालाओं को चुनावी रैली में आम जनता की तरफ उछालते थे तो लोग भावुक हो उठते थे। अब वक्त का पहिया काफी घूम चुका है। विरासत की राजनीति से जनता का कोई लेना-देना नहीं है। जनता को अब वही नेता या राजनीतिक दल बेहतर नजर आता है, जो उनके लिए कुछ काम करके दिखाए। कांग्रेस के नेताओं को यह बात समझनी होगी कि महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी या राजीव गांधी की विरासत के नाम पर राजनीति के दौर से अब इस देश की जनता ऊपर उठ चुकी है। जयपुर चिंतन शिविर में कांग्रेस पार्टी का चिंतन तभी कारगर साबित हो सकेगा, जब कांग्रेस विरासत और ब्रांड की राजनीति करने के बजाय आम जनता की तकलीफों को महसूस करे और दलितों के घर जाकर रुकने या एक दिन मजदूरों के साथ उनका बोझ उठाने जैसी प्रतीकात्मक पहल से आगे बढ़कर लोगों के लिए सार्थक कदम उठाए।


लेखक डॉ. शिव कुमार राय स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं



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Tags:Congress, Rahul Gandhi, Rahul Gandhi Politics, राहुल गांधी, कांग्रेस्, भारत, India

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