Menu
blogid : 5736 postid : 6691

जनतंत्र की उम्मीदों का गणतंत्र

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

Hridaynarayan Dixitउल्लास व्यक्तिगत नहीं होता। गणतंत्र भारत के जनगणमन का राष्ट्रीय उल्लास है। संवैधानिक गणतंत्र आज 62 साल का हो गया, लेकिन इसके पहले भी यहां गणतंत्र था। संविधान पारित होने के आखिरी भाषण में सभाध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था हम एक गणराज्य बना रहे हैं। भारत में प्राचीन काल में गणराज्य थे, यह व्यवस्था 2000 पूर्व थी, इससे भी पहले थी। राजेंद्र प्रसाद ने गणतंत्रीय व्यवस्था को भारतीय संस्कृति का भाग बताया। संविधान निर्माण के प्रारंभ में जवाहर लाल नेहरू ने सभा में 13 दिसंबर, 1946 को उद्देश्य संकल्प प्रस्ताव रखा था। सभा ने इसे 22 जनवरी, 1947 को अंगीकृत किया। इस संकल्प के अंतिम दो सूत्र ध्यान देने योग्य हैं- गणराज्य के राज्यक्षेत्र की अखंडता, भूमि, समुद्र और आकाश पर उसके प्रभुत्व संपन्न अधिकार बनाए जाएंगे। यह प्राचीन भूमि विश्व में अपना समुचित गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त करेगी और विश्व शांति व मानव कल्याण के लिए अपना सहयोग देगी। आखिरकार क्या हुआ उन संकल्पों का और सपनों का। संविधान की उद्देशिका में जनगणमन के संकल्प हैं और सपने भी। गणराज्य संप्रभु है। 26 नवंबर, 1949 के दिन हम भारत के लोगों ने ही इसे संपूर्ण प्रभुत्व गणराज्य घोषित किया। नागरिकता निर्वाचन, अंतरिम संसद तथा अस्थायी व संक्रमणकारी उपबंध इसी दिन लागू हो गए। शेष संविधान 26 जनवरी, 1950 से लागू हुआ। हम भारत के लोगों ने ही समस्त नागरिकों को सामाजिक आर्थिक व राजनीतिक न्याय देने की शपथ ली। हम भारत के लोगों ने ही विचार अभिव्यक्ति, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, अवसर की समता, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्रीय एकता सुनिश्चित कराने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित व आत्मार्पित किया, लेकिन सपने और संकल्प पूरे नहीं हुए। भारत को गर्व है। भारत ने तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद गणतंत्री व्यवस्था को आगे बढ़ाया है। हम दुनिया के सबसे बड़े गणतंत्र हैं। गणतंत्र ने आपातकाल जैसी क्रूर तानाशाही भी खारिज की। भारत की संपदा भी बढ़ी है। राष्ट्रजीवन के सभी क्षेत्रों में लोग आगे बढ़े हैं।


Read:भावुक भाषणों से देश नहीं चलता


जनतंत्र ने गणतंत्र को ताकत दी है, लेकिन राजनीतिक दलतंत्र ने ही उसे लगातार असफल बनाया है। संवैधानिक संस्थाओं के अपमान हैं। संस्थाएं धीरज नहीं देतीं। इस गणतंत्र में राजनीति को ही कमाऊ उद्यम बनाने की लत बढ़ी है। संविधान पारण के आखिरी सत्र में मद्रास के डॉ. पी. सुब्बारायन ने कहा था, लोकतंत्रों का संचालन वृत्तिभोगी राजनीतिज्ञों द्वारा होता है। यह लोकतंत्र के लिए घातक है। बात सच निकली। भारतीय राजनीति महालाभ का उद्योग है। बिना पूंजी का यह उद्योग अरबों-खरबों के मुनाफे में है। जो जितना दुस्साहसी वही उतना बड़ा मुनाफाखोर। भारत से भिन्न यूनान में प्लेटों ने भी विश्वविख्यात रिपब्लिक में नेता की व्याख्या की- आशय फिजूलखर्च लोगों से है, जिनमें अधिक साहसी नेता बन जाते हैं और दब्बू अनुयायी। राजनीतिक दलतंत्र ने गणतंत्र का चेहरा बिगाड़ा है। राजनीति ने जाति, क्षेत्र, मजहब और पंथिक आग्रहों का दुरुपयोग किया है। महाराष्ट्र में अन्य राज्यों के निवासियों का उत्पीड़न ऐसी ही घटनाएं हैं। असम का बार-बार जलना, कश्मीर के जख्म तुष्टीकरण राजनीति के परिणाम हैं। बावजूद इस सबके भारत के लोग जाग रहे हैं। बेशक सत्ता राजनीति ने लगातार हताश और उदास किया है, लेकिन भारत में गणतंत्र का पुष्ट राष्ट्रभाव है। निराशा के तमाम कारण हैं तो आशा के भी कारण कम नहीं हैं। भ्रष्ट तंत्र के विरुद्ध आवाज उठाने वाली ताकतों ने गणतंत्र को सदा तरुण बनाए रखा है। गणतंत्र भारत का स्वभाव है। गण का अर्थ है समूह। इतिहास के उत्तरवैदिक काल में गण राजव्यवस्था की एक पद्धति बन गया। महाभारत के शांतिपर्व का 107वां अध्याय गणव्यवस्था पर ही है। बताया गया है कि गण अपनी राष्ट्रनीति, अपने राजकोष, सेना, युद्ध कौशल और राज्य संचालन नीति के लिए विख्यात थे। बाहर की तुलना में गण को अंदरूनी खतरे से ज्यादा सतर्क रहना चाहिए। भारतीय गणतंत्र को भी भीतर से ही खतरा है। पराक्रमी सेना के कारण सीमाएं सुरक्षित हैं, लेकिन कमजोर नेतृत्व के कारण सीमाओं पर भी खतरे हैं। सामाजिक, पंथिक भेदभाव गणतंत्र के आंतरिक शत्रु हैं। संविधान में अल्पसंख्यक की परिभाषा नहीं, लेकिन राजसत्ता अल्पसंख्यक विशेषाधिकारों पर डटी हुई है। युद्धरत वामपंथी पलटने गणतंत्र के लिए बड़े खतरे हैं। हमारे राजनेताओं के पास उनसे निपटने की राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है। संविधान अविचल निष्ठा है, लेकिन राष्ट्र जीवन की मूल ऊर्जा है संस्कृति। संविधान की हस्तलिखित मूल प्रति के मुखपृष्ठ पर रामकृष्ण के चित्र थे। भीतर मोहनजोदड़ो की मोहरों, वैदिक काल के आश्रम, राम की लंका विजय, अर्जुन को गीता सुनाते श्रीकृष्ण, बुद्ध, महाबीर, अशोक, विक्रमादित्य, नालंदा विश्वविद्यालय, नटराज, भगीरथ गंगावतरण, गांधीजी की दांडी यात्रा व नोआखाली दंगों में शांति मार्च, नेताजी सुभाष आदि की चित्रावली थी। ये चित्र कहां गए? राष्ट्र एक है, लेकिन संविधान में भारत के दो नाम – इंडिया दैट इज भारत। इसी तरह राष्ट्र स्तुति के दो गीत हैं – जनगणमन और वंदेमातरम। राष्ट्र भाषा, राजभाषा हिंदी है, लेकिन अंग्रेजी अब भी राजभाषा है। संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 370 का शीर्षक रखा था- जम्मू कश्मीर के बारे में अस्थायी उपबंध। यह स्थायी क्यों है? हिंदू आतंकवाद नई गाली है भारत के मूल गण, जन और मन को। हम भारत के लोगों ने ही संविधान को अंगीकृत कर रखा है। सत्ताधीश संविधान के सामंत जैसे हैं। भारत के जन को वास्तविक इतिहासबोध और राजनीतिक वर्ग को गहन आत्मविश्लेषण का मार्ग अपनाना चाहिए।



लेखक हृदयनारायण दीक्षित उ.प्र. विधानपरिषद के सदस्य हैं



Read More:

टैक्स ढांचे की विसंगतियां

एकतरफा शांति प्रयास का सच

रेल किराये में बढ़ोतरी का औचित्य


Tags:Republic Day of India, Republic Day26 January, Republic Day in Hindi, Republic Day History in Hindi, Indian Republic Day, Republic Day in Hindi Font

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh