Menu
blogid : 5736 postid : 6717

अध्यात्म का अद्भुत स्तंभ

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

anindayअमेरिका के भाइयो और बहनो, स्वामी विवेकानंद के इस संबोधन को सुनकर पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। यह दिन था 11 सितंबर, 1893। शिकागो आर्ट इंस्टीट्यूट में विश्व धर्म संसद के आयोजन का अवसर। इस दिन न्यू व‌र्ल्ड में कोलंबस के कदम रखने की 400वीं वर्षगांठ मनाई जा रही थी। यह युवा संतों की प्राचीनतम परंपरा की ओर से विश्व के सबसे युवा देश का अभिवादन करने आया था। ऐसे मंच पर जहां प्रत्येक वक्ता अपने धर्म या पंथ को सर्वश्रेष्ठ बताने पर तुला हुआ था, विवेकानंद ने बड़ी विनम्रता के साथ कहा कि कोई भी धर्म दूसरे धर्म से श्रेष्ठ नहीं है। जल की सभी धाराएं आखिरकार सागर में ही मिलती हैं। आधी दुनिया पार करके शिकागो में अनामंत्रित पहुंचने में उन्हें भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। किंतु अंतत: जब उनकी बारी आई तो वह धर्म संसद पर छा गए।


स्वामी विवेकानंद तमाम संतों-दार्शनिकों की आंख के तारे बन चुके थे। अमेरिका में दिए गए इस युगांतरकारी भाषण ने पश्चिम में भारतीय दर्शन और धर्म के दरवाजे खोल दिए और भारत में हिंदुत्व के पुनरुद्धार का मार्ग प्रशस्त कर दिया। अगले दो सालों तक स्वामी विवेकानंद हिंदुत्व, भारतीय दर्शन और योग पर अमेरिका में सार्वजनिक मंचों और निजी कक्षाओं में प्रवचन देते रहे। यह पश्चिम का भारतीय अध्यात्म से पहला सीधा परिचय था। इस घटना से पहले पश्चिम के कुछ मुट्ठी भर विद्वान ही भारतीय धर्म, संस्कृति और दर्शन से परिचित थे। विवेकानंद के माध्यम से पश्चिम का आम आदमी भारत की महान आध्यात्मिक संपदा को समझ पाया। तब तक भारत को एक पिछड़ा हुआ देश माना जाता था। पश्चिम के लोगों का मानना था कि भारतीयों के उद्धार का एक ही तरीका है-वहां अधिक से अधिक प्रचारकों को भेजकर ईसा का संदेश देना। दूसरी तरफ औद्योगिक भौतिकवाद और बड़े पैमाने पर शहरीकरण के तनावों से त्रस्त एक नई पीढ़ी ने विवेकानंद की शिक्षाओं में संतोष का अनुभव किया।


महान फ्रांसीसी लेखक और रामकृष्ण व विवेकानंद के जीवनीकार रोमेन रोलेंड ने लिखा-विवेकानंद के भाषण से जैसे बिजली कौंध गई। अमेरिका के बाद उन्होंने 1895 तथा 1896 में दो बार इंग्लैंड की यात्रा की। लंदन में उनकी मुलाकात महान विचारकों से हुई। वहां बड़ी संख्या में लोग उनके अनुयायी बने। इनमें से कुछ उनके साथ भारत आ गए, जिनमें मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल, सिस्टर निवेदिता शामिल हैं। सिस्टर निवेदिता भारत में ही रुक गईं और महिलाओं को शिक्षित करने की दिशा में काम करने लगीं। 1 मई, 1997 को जब बेलूर में रामकृष्ण मिशन की स्थापना हुई तब इसकी तीन इकाइयां थीं- बेलूर और मद्रास में रामकृष्ण मिशन और न्यूयॉर्क में वेदांता सोसाइटी। इसकी स्थापना स्वामी विवेकानंद ने 1894 में की थी। बहुत कम लोगों को जानकारी है कि बेलूर मठ का करीब-करीब समग्र वित्त पोषण स्वामीजी के पश्चिमी देशों की शिष्य मंडली के सहयोग से हुआ था। आज भी 20 से अधिक देशों में शाखाओं वाले रामकृष्ण मिशन के भारत के बाद सबसे अधिक केंद्र अमेरिका में हैं।


भारत के विपरीत जहां रामकृष्ण मिशन के केंद्रों में शिक्षा, समाजसेवा, वेदों के दर्शन व भारतीय संस्कृति का समावेश है, अमेरिका में इन केंद्रों का मुख्य ध्यान केवल दर्शन और संस्कृति पर केंद्रित है। आज भावातीत ध्यान, योग, भारतीय दर्शन और हिंदू व बौद्ध धर्म पश्चिम में भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। आज बहुत से भारतीय धार्मिक संत और संगठन पाश्चात्य देशों में अपनी छाप छोड़ रहे हैं, किंतु यह स्वामी विवेकानंद का पथप्रदर्शक अभियान ही था, जिसने पश्चिम से आध्यात्मिक भारत का परिचय कराया। विवेकानंद को पश्चिम में मिलने वाले अपार समर्थन के कारण भारत लौटते ही वह चर्चा के केंद्र में आ गए। वह ऐसे समय में विदेश गए थे, जब कुछ लोग एक भिक्षु के लिए कालापानी की सजा पर विचार करने में व्यस्त थे। जब वह एक विजेता के रूप में वापस लौटे तो कृतज्ञ राष्ट्र ने उनकी सफलता में भरोसा जताया। सर अरविंदो के शब्दों में विवेकानंद ने भारत को आध्यात्मिक रूप से जागृत किया। यह जागृति उभरते राष्ट्रवाद के परिप्रेक्ष्य में आई और इसने भारत के युवाओं को अपनी सभ्यता में प्रेरणा तलाशने में सहायता की।


रवींद्रनाथ, जमशेदजी टाटा जैसे उनकी पीढ़ी के तमाम महान भारतीयों की तरह विवेकानंद भी जापान की सफलता से बेहद प्रेरित हुए। उन्होंने जापान की सफलता में भारत का भविष्य देखा। एक तरफ, विवेकानंद ने भारत के अतीत की महानता को रेखांकित किया वहीं दूसरी तरफ देश में व्याप्त बेपनाह गरीबी और अज्ञानता को लेकर वह बेहद पीड़ा भी महसूस करते थे। उनका अडिग विश्वास था कि इस देश को बचाने का एकमात्र मार्ग शिक्षा और विज्ञान-प्रौद्योगिकी से होकर गुजरता है। इस युवा संत से प्रभावित उनके समकालीन जमशेदजी टाटा ने जब उन्हें एक मोटी रकम देने की पेशकश की तो स्वामीजी ने उन्हें इस राशि से एक वैज्ञानिक संस्थान बनाने के लिए कहा। तभी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आइआइएससी), बेंगलूर की आधारशिला रखी गई थी। तीन फरवरी बांग्ला तिथि के आधार पर विवेकानंद का जन्म दिवस है अर्थात उनके महान विचारों और आदर्शो को याद करने तथा उनसे प्रेरणा लेने का एक अवसर। आइए हम उस पथ पर कदम बढ़ाने का संकल्प लें जो विवेकानंद ने हमें दिखाया था।



लेखक  अनिंद्य सेनगुप्ता भारतीय सूचना सेवा के अधिकारी हैं


Tag:स्वामी विवेकानंद, शिकागो आर्ट इंस्टीट्यूट , रामकृष्ण मिशन, अमेरिका,swami vivekananda, Chicago,

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh