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वर्ष 2001 में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच जो क्रिकेट मुकाबला हुआ था, वह जबरदस्त, दिलचस्प और ऐतिहासिक था। इसमें शानदार क्रिकेट के नए पैमाने स्थापित हुए थे। विशेषज्ञों ने मान लिया था कि इन दोनों देशों के बीच प्रतिस्पर्धा अब एशेज या भारत-पाक मुकाबलों से कहीं बेहतर है। इसलिए शुक्रवार से भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच शुरू होने जा रही नई टेस्ट श्रृंखला के संदर्भ में यह प्रश्न प्रासंगिक है कि क्या दोनों टीमें 2001 के जादू को दोहरा सकेंगी या फिर यह मुकाबला दो ऐसी टीमों के बीच में होगा, जो अपने आपको फिर से स्थापित करने के प्रयास में हैं? पिछले कुछ सीजन से कम से कम टेस्ट क्रिकेट में भारत और ऑस्ट्रेलिया अपनी पहली-सी चमक नहीं दिखा सकी हैं। दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड इनसे बहुत आगे निकल गए हैं। जहां भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम में अब राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण, सौरव गांगुली और जहीर खान जैसे मजबूत खिलाड़ी नहीं हैं, वहीं ऑस्ट्रेलिया भी रिकी पोंटिंग, माइकल हसी, ग्लेन मेकग्रा और बे्रट ली जैसे दिग्गजों से महरूम है। ऑस्ट्रेलियाई टीम अपनी ही धरती पर इंग्लैंड-दक्षिण अफ्रीका से टेस्ट सीरीज हार चुकी है और इस बीच इंग्लैंड घुमावदार विकटों पर भारत को पराजित करके जा चुका है। ऐसे में दोनों टीमें फिर से अपना दबदबा तलाशने की कोशिश में हैं।
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इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह मुकाबला तेज गेंदबाजी बनाम स्पिन गेंदबाजी ही होगा। हालांकि 22 फरवरी से चेन्नई के मैदान में खेले जाने वाले पहले टेस्ट की विकेट सपाट और सूखी दिखाई दे रही है, जिससे अनुमान यह है कि पहले दिन से ही यह स्पिन लेगी। लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने अपनी घोषित टीम में केवल एक स्पिनर नथन लयोन को शामिल किया है और तीन तेज गेंदबाजों पीटर सिडल, मिशेल स्टार्क व जेम्स पेटिंसन पर भरोसा दिखाया है। इसके विपरीत अनुमान यह है कि भारत तीन स्पिन गेंदबाजों प्रज्ञान ओझा, आर आश्विन और हरभजन सिंह या रवींद्र जडेजा तथा एक तेज गेंदबाज के साथ मैदान में उतरेगा। चूंकि ऑस्ट्रेलिया के पास इंग्लैंड की तरह ग्रीम स्वान व मोंटी पनेसर जैसे स्तरीय स्पिन गेंदबाज नहीं हैं, इसलिए वह विकेट की परवाह किए बगैर अपनी ताकत के साथ मैदान में उतरना चाहता है।
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हालांकि मैकग्रा और माइकल कैस्प्रोविच को छोड़कर ऑस्ट्रेलिया का कोई तेज गेंदबाज कभी भारतीय विकेटों पर अपना कमाल नहीं दिखा सका है, जैसे वेस्टइंडीज, पाकिस्तान, इंग्लैंड या न्यूजीलैंड के तेज गेंदबाज पूर्व में अच्छा प्रदर्शन कर चुके हैं। फिर भी ऑस्ट्रेलिया को लगता है कि पीटर सिडल अपनी सधी हुई गेंदों, पेटिंसन अपनी रफ्तार और स्टार्क अपनी यार्कर गेंद से नया इतिहास रचने में कामयाब रहेंगे। स्टार्क के बारे में अनुमान यह है कि वह इस समय विश्व के सबसे अच्छे बाएं हाथ के गेंदबाज हैं और उनमें स्विंग के सुल्तान वसीम अकरम जैसी क्षमता है। बहरहाल, यह श्रृंखला कई खिलाडि़यों के लिए कई खिलाडि़यों के लिए मायने रखती है। सबसे पहली बात तो यह है कि अगर सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग और हरभजन सिंह अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन न कर सके तो संभव है कि उनकी यह आखिरी टेस्ट श्रृंखला हो। सचिन तेंदुलकर को तो शायद 200 टेस्ट पूरे करने के लिए अगला मौका भी मिल जाए, लेकिन सहवाग और हरभजन सिंह पर हर सूरत में अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव है। सचिन तेंदुलकर अब तक 194 टेस्ट खेल चुके हैं। इस सीरीज के बाद उनके 198 टेस्ट हो जाएंगे और इसलिए उन्हें दूसरी सीरीज भी खिलाई जा सकती है ताकि वह 200 टेस्ट खेलने वाले विश्व के पहले क्रिकेटर बन सकें। इसके अलावा टेस्ट क्रिकेट में महेंद्र सिंह धौनी की कप्तानी पर भी विशेष नजर रहेगी। धौनी इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में 0-4 से हारने के बाद फिर भारत में इंग्लैंड से 1-2 से पराजित हुए। बावजूद इसके वह इस वजह से अपनी कप्तानी बचाए रखने में कामयाब रहे। चूंकि अब भारतीय टीम में द्रविड़, लक्ष्मण, कुंबले आदि जैसे स्थापित खिलाड़ी मौजूद नहीं हैं तो युवा खिलाडि़यों के लिए अच्छा अवसर है कि वह अपने प्रदर्शन से लंबे समय तक के लिए टीम में अपनी जगह बनाने का प्रयास करें। इन खिलाडि़यों में विशेष रूप से शिखर धवन, अजिंक्य रहाणे और मुरली विजय पर निगाहें होंगी कि वे द्रविड़ आदि के रिक्त स्थानों को भरने के काबिल हैं या नहीं। इनके अलावा चेतेश्वर पुजारा और विराट कोहली को भी साबित करना होगा कि वे लंबी दौड़ के खिलाड़ी हैं।
इस आलेख के लेखक शाहिद-ए-चौधरी हैं
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Tags: cricket match, test cricket match, Sachin Tendulkar, सचिन तेंदुलकर, टेस्ट क्रिकेट, भारतीय टीम
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