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जिस देश में मेल-एक्सप्रेस ट्रेनें फिलहाल बैलगाड़ी की रफ्तार से चल रही हों, वहां हाई स्पीड ट्रेनें चलाने की घोषणा चौंकाती है। यह खबर ठसाठस भरी, लेट-लतीफ और सुस्त रफ्तार ट्रेनों से ऊबे मुसाफिरों के लिए हवा के ठंडे झोंके जैसी है कि उन्हें जल्द ही देश में 130-160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हाई स्पीड ट्रेनों में यात्रा का मौका मिलेगा। इसके संकेत काफी पहले से थे कि रेल मंत्री पवन कुमार बंसल अपने पहले रेल बजट में हाई स्पीड ट्रेनें चलाने का ऐलान कर सकते हैं। कुछ ही अरसा पहले, भारत दौरे पर आए जापान के राजदूत तकेशी यागी ने गुजरात में कहा था कि भारत की पहली हाई-स्पीड ट्रेन अहमदाबाद और मुंबई के बीच चलेगी। इससे भी काफी पहले से देश में 200 से 300 किमी प्रति घंटे से दौड़ने वाली बुलेट ट्रेनों का सपना देखा जा रहा है।
इस हिसाब से रेल मंत्री की नई घोषणा देश को बुलेट ट्रेनों की दिशा में ले जाती प्रतीत हो रही है। पर खराब रेल पटरियों, उनके मेंटेनेंस, दोषपूर्ण सिग्नलिंग व्यवस्था और अनमैन्ड रेलवे क्रॉसिंग आदि समस्याओं के रहते हमारी ट्रेनों की सुस्त रफ्तारी एक बड़ी समस्या रही है। देश में शताब्दी और राजधानी जैसी ट्रेनें कितनी धीमी गति से चल पाती हैं। फिलहाल देश में ज्यादातर ट्रेनें 50 किलोमीटर प्रति घंटे की औसत गति से दौड़ पा रही हैं। साधारण पैसेंजर ट्रेनें फिलहाल 36 किमी प्रति घंटे की औसत गति से ही चल पा रही हैं और सामान ढोने वाली मालगाडि़यां महज 25 किमी प्रति घंटे की औसत रफ्तार निकाल पा रही है। ट्रेनों की यह औसत रफ्तार देश में बीते कई दशकों से है, लेकिन उसके साथ ही यह सपना भी आम लोगों को दिखाया जाता रहा है कि भारत में भी बुलेट ट्रेनें चलेंगी। 2005-06 में दिल्ली-आगरा सेक्शन पर 150 किमी की गति वाली शताब्दी एक्सप्रेस देश की सबसे तेज रफ्तार रेलगाड़ी बनी थी। हालांकि यह रफ्तार भी बाद में घटाकर 130 किमी प्रति घंटे कर दी गई। रेलवे महकमे ने इसके पीछे टेक्निकल वजह बताई थी। फिलहाल, हाई स्पीड या बुलेट ट्रेन की ज्यादा चर्चा चीन के करिश्मे की वजह से भी है। दुनिया के हाई स्पीड ट्रेन-क्लब में सबसे देरी से यानी 2007 में शामिल हुए चीन ने इधर दुनिया का सबसे लंबा हाई स्पीड रेल नेटवर्क बनाकर दिखा दिया है कि इच्छाशक्ति हो तो नामुमकिन को भी मुमकिन बनाया जा सकता है। चीन ने अपनी राजधानी बीजिंग और दक्षिणी चीन के औद्योगिक शहर गुआंगझो के बीच 2298 किलोमीटर की दूरी को बुलेट ट्रेन के जरिये सिर्फ आठ घंटे के सफर में सिमटा दिया है।
इस उपलब्धि के साथ ही चीन के ज्यादातर महत्वपूर्ण शहर हाई स्पीड रेल नेटवर्क से जुड़ गए हैं। वहां का हाई स्पीड रेल नेटवर्क 9300 किलोमीटर का हो गया है। इस नेटवर्क पर रोजाना 155 जोड़ी बुलेट ट्रेनें दौड़ रही हैं। वैसे तो जापान, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी में पिछले कई दशकों से हाई स्पीड अथवा बुलेट ट्रेनें चल रही हैं, लेकिन पड़ोसी देश चीन की इस मामले में कामयाबी साबित करती है कि योजनाओं के उचित क्रियान्वयन से ही सपने साकार किए जा सकते हैं। देश की बेहद लंबी भौगोलिक दूरियों को देखते हुए ऐसे हाई स्पीड रेल नेटवर्क जरूरी लगते हैं ताकि यात्री परिवहन और माल ढुलाई में लगने वाले समय में कटौती की जा सके। लेकिन इस जरूरत के बाद भी हाई स्पीड ट्रेनें हमारे लिए एक स्वप्न ही रही हैं। एक अहम प्रश्न यह भी है कि हाई स्पीड ट्रेनों के योग्य उम्दा रेल ट्रैक बनाने से लेकर ऐसी ट्रेनों के लिए विदेशों से कोच और इंजन मंगाने के लिए पैसा कहां से आएगा। फिलहाल 50 हजार करोड़ की इस परियोजना के लिए निजी कंपनियों से 20 हजार करोड़ रुपये के सहयोगी निवेश की उम्मीद कर रही है पर बाजार के मौजूदा रुख को देखते हुए यह रकम मिल पाना मुमकिन नहीं लगता है। बुलेट ट्रेन की राह पर आगे बढ़ने से पहले भारतीय रेल के वास्तविक आधुनिकीकरण के कुछ दूसरे मोचरें पर ध्यान देना जरूरी होगा, अन्यथा हमारी ट्रेनें मामूली चाल भी नहीं चल सकेंगी।
इस आलेख के लेखक अभिषेक कुमार सिंह हैं
Tags: हाई स्पीड रेल, मेल-एक्सप्रेस, बुलेट ट्रेन , मालगाडि़यां
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