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ग्वादर पर चीनी आधिपत्य

जागरण मेहमान कोना
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पाकिस्तान ने भारत पर दबाव बनाने के लिए नई रणनीति पर अमल करते हुए ग्वादर बंदरगाह का संचालन चीन के हाथों में सौंप दिया है और चीन ने इस पर अपना नियंत्रण हासिल कर लिया है। 18 फरवरी को ग्वादर पोर्ट पर चीन और पाकिस्तान ने समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। भारतीय सुरक्षा के लिहाज से यह एक चिंतनीय खबर है। इस समझौते के मुताबिक 30 जनवरी को ग्वादर बंदरगाह के प्रबंधन का अधिकार सिंगापुर से चीन को हस्तांतरित किया गया है। गहरे समुद्र वाला यह बंदरगाह पाकिस्तान की ही संपत्ति रहेगा। चीनी कंपनी कामकाज के लाभ की हिस्सेदार रहेगी। इस बंदरगाह के निर्माण पर 25 करोड़ डॉलर का खर्चा आएगा। चीन ने बंदरगाह के निर्माण के लिए 75 फीसदी धन दिया है। इससे अरब सागर में चीन के जहाजों की आवाजाही और चीनी दखल बढ़ जाएगा। इस बंदरगाह के माध्यम से चीन का अफगानिस्तान व मध्य एशिया के सभी देशों से व्यापार संभव हो जाएगा जो भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। ग्वादर बंदरगाह पाकिस्तान के लिए बेहद सामरिक महत्व वाला बंदरगाह है। इसे चीन को सौंपे जाने पर भारत ने कड़ी चिंता जताई है। रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने छह फरवरी को कहा था कि भारत के पड़ोसी देश के बंदरगाह पर चीन का नियंत्रण चिंताजनक है।

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जब चीन की नौ सेना इसका इस्तेमाल करेगी तो यह भारत की सामरिक सुरक्षा के लिए ठीक नहीं होगा। चीन इस क्षेत्र में पाकिस्तान से पश्चिमी चीन तक ऊर्जा और खाड़ी देशों से व्यापार के लिए एक कॉरिडोर खोलना चाहता है। पहले इस बंदरगाह को सिंगापुर पोर्ट अथॉरिटी (एसपीए) और इसके साझीदार नेशनल लॉजिस्टिक सेल व एकेडी ग्रुप को 40 साल के अनुबन्ध पर दिया गया था, लेकिन पाकिस्तान सरकार बंदरगाह के मुहाने की 584 एकड़ जमीन एसपीए को हस्तांतरित करने में विफल रही। यह जमीन पाकिस्तानी नौसेना के पास थी। इस जमीन को अब एक अनुबंध के तहत चीन को दे दिया गया है। इस जगह पर चीन 10 अरब डॉलर अर्थात लगभग 550 अरब रुपये का निवेश कर रहा है और इसके संचालन संबंधी अधिकार भी चीन के पास रहेंगे। यहां की सामरिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही माकरात के ग्वादर बंदरगाह नौ सैनिक अड्डे को अब अत्याधुनिक रूप में विकसित किया जा रहा है। ग्वादर पाकिस्तान के दक्षिण पश्चिम भाग में बलूचिस्तान प्रांत के अरब सागर का तटवर्ती शहर है। यह शहर 80 किलोमीटर की चौड़ी पट्टी पर स्थित है जिसे माकरात कहा जाता है। पूरी तरह से विकसित होने के बाद यह दुनिया के आधुनिकतम बंदरगाहों में से एक होगा।


चीन ग्वादर से जियोंग तक रेल मार्ग तैयार कर रहा है। चीन ने यहां से अपने देष के शिनचियांग प्रांत को पाकिस्तान से जोड़ने के लिए बहुत पहले काराकोरम मार्ग बनाया गया था। चीन द्वारा अब इस हाईवे का विस्तार किया जा चुका है। उपर्युक्त सभी मागरें से चीन बलूचिस्तान के ग्वादर, पासनी एवं ओइमरा में स्थित नौ सैनिक अड्डों पर जरूरी सैनिक साजो-सामान, कार्गो व तेल टैंकर मात्र 48 घंटों में पहुंचाने में सक्षम हो गया है। इस बंदरगाह का आर्थिक व सामरिक रूप से विशेष महत्व है। इसीलिए चीन द्वारा परमाणु पनडुब्बियों, अत्याधुनिक जलयानों व मिसाइलों की तैनाती यहां पर की जा रही है। यहां से चीन अरब सागर के माध्यम से हिंद महासागर में प्रवेश करके भारत को चुनौती प्रस्तुत करेगा। ग्वादर नौ सैनिक अड्डे पर पाकिस्तान की नौ सेना भी महफूज रह सकेगी। भारत के लिए चिंतनीय स्थिति यह है कि इस सामरिक महत्व वाले स्थान पर भारतीय नौसेना व थल सेना की पहुंच आसान नहीं होगी तथा पहाड़ी इलाका होने के कारण भारतीय वायु सेना भी यहां पर हवाई हमले नहीं कर सकेगी।


इस आलेख के लेखक लक्ष्मी शंकर यादव हैं


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Tags: बंदरगाह, खाड़ी देशों, ए.के. एंटनी, भारतीय वायु सेना

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