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खगोल वैज्ञानिक इस समय पृथ्वी से 335 प्रकाश वर्ष दूर दूसरे सौरमंडल में एक ग्रह का जन्म देख रहे हैं। नवजात ग्रह अभी भी गैस और धूल की मोटी डिस्क से घिरा हुआ है। यह अद्भुत नजारा पहली बार प्रत्यक्ष रूप से देखा गया है। यदि इस खोज की पुष्टि हो जाती है तो हम ग्रहों की उत्पत्ति और उनकी निर्माण प्ररिया को ज्यादा बेहतर ढंग से समझ सकेंगे। खगोल वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने यूरोपियन सदर्न आब्जर्वेट्री के वेरी लार्ज टेलीस्कोप की मदद से एचडी 100546 नामक युवा तारे के इर्दगिर्द गैस और धूल की डिस्क के अध्ययन के दौरान इस नवजात ग्रह का पता लगाया।
टीम का नेतृत्व करने वाले स्विस वैज्ञानिक साशा क्वान्ज का कहना है कि हम ग्रह निर्माण प्रक्रिया को सिर्फ कंप्यूटर द्वारा तैयार मॉडलों के आधार पर ही समझने की कोशिश कर रहे थे। अभी तक किसी ने ग्रह की साक्षात उत्पत्ति नहीं देखी थी। यदि नई खोज सचमुच एक निर्माणाधीन ग्रह को दर्शा रही है तो वैज्ञानिक पहली बार न सिर्फ ग्रह निर्माण प्रक्रिया का अध्ययन कर सकेंगे, बल्कि यह भी जान सकेंगे कि बहुत ही प्रारंभिक अवस्था में नवजात ग्रह और उसके आसपास के माहौल के बीच कैसी क्रिया-प्रतिक्रिया होती है। ग्रहों की उत्पति के बारे में इस वक्त प्रचलित सिद्धांत के अनुसार बड़े-बड़े ग्रह किसी तारे के निर्माण के बाद बची गैस और धूल को ग्रहण करके विकसित होते हैं। खगोल वैज्ञानिकों ने तारे के इर्दगिर्द डिस्क की तस्वीर में कुछ अनोखी संरचनाएं देखी हैं, जिनसे ग्रह निर्माण के बारे में नई अवधारणा को बल मिलता है। नया खोजा गया ग्रह हमारे बृहस्पति जैसा विशाल गैस पिंड है। पृथ्वी और सूरज के बीच की दूरी की तुलना में नया ग्रह अपने तारे से 70 गुना ज्यादा दूर है। नया ग्रह खोजने वाली टीम एक एक अन्य सदस्य एडम एमारा नेई खोज से बेहद रोमांचित हैं।
उनका कहना है कि ग्रहों की प्रत्यक्ष इमजिंग एक नया क्षेत्र है। हाल ही में उपकरणों और डेटा विश्लेषण के तरीकों में सुधार होने से बाहरी ग्रहों के अनुसंधान को बढ़ावा मिल रहा है। इस बीच, नासा के वान एलन प्रोब्स मिशन ने पृथ्वी के इर्दगिर्द तीसरी रेडिएशन बेल्ट का पता लगाया है। हमारे ग्रह के इर्दगिर्द दो वान एलन बेल्ट्स के बारे में काफी पड़ताल हो चुकी है। इनकी खोज जेम्स वान एलन ने की थी। विकिरण की ये पट्टियां आधुनिक समाज के के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, जो अंतरिक्ष आधारित टेक्नोलॉजी पर निर्भर है। सूरज पर उठने वाले तूफानों और अंतरिक्ष के मौसम में होने वाले परिवर्तनों से इन पट्टियों पर असर पड़ता है। इनसे इनका आकार अचानक बढ़ सकता है। फूली हुई विकिरण पट्टियों से संचार और जीपीएस उपग्रहों के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है। इससे अंतरिक्ष यात्रियों पर भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है। गत 30 अगस्त को छोड़े गए नासा के जुड़वां एलन वान खोजी यानों के उपकरणों ने रेडिएशन की तीसरी बेल्ट खोजने में मदद की है। इन खोजी यानों में प्रयुक्त नई टेक्नोलॉजी और कण खोजने वाले उपकरणों की अद्भुत क्षमता की बदौलत वैज्ञानिक अब इन विकिरण पट्टियों को बेहतर ढंग से समझ पा रहे हैं। हमारे लिए यह जानना जरूरी है कि इन संरचनाओं में विद्युत आवेशित कणों की आबादी कैसे बढ़ती है, उनमें परिवर्तन क्यों होता है तथा पृथ्वी के वायुमंडल के बाहरी क्षेत्रों पर इन संरचनाओं का क्या असर पड़ता है। वैज्ञानिकों ने तीसरी पट्टी का चार हफ्ते तक पर्यवेक्षण किया। बाद में सूरज से आई एक शक्तिशाली तरंग ने इस पट्टी को नष्ट कर दिया। नासा अपने लिविंग विद ए स्टार प्रोग्राम के अंतर्गत सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के उन पहलुओं का अध्ययन कर रहा है, जो सीधे हमारे ग्रह के जीवन और समाज को प्रभावित करते हैं। वान एलंन प्रोब्स मिशन इसी कार्यक्रम का हिस्सा है।
इस आलेख के लेखक मुकुल व्यास हैं
Tags: रेडिएशन बेल्ट, पर्यवेक्षण, सूर्य-पृथ्वी, खगोल वैज्ञानिक
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