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जनता के नायक और राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज का निधन एक ऐसे धूमकेतु का अस्त होना है, जो दो दशक तक अमेरिकी साम्राज्यवाद के कपाल पर प्रतिरोध का मुहर लगाता रहा। पूंजीवाद के गर्भ में साम्यवाद का बीज रोप लाल ठिकाने को मजबूत करता रहा। राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज का निधन केवल वेनेजुएला की व्यक्तिगत क्षति भर नहीं है, बल्कि साम्यवादी विचारधारा के संकटग्रस्त होने का खतरा भी है। शावेज क्यूबाई राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो के बाद साम्यवादी संघर्ष की विरासत के अंतिम योद्धा थे, जो अंत तक पूंजीवादी आग्रहों के खिलाफ मोर्चाबंदी करते रहे। देखना दिलचस्प होगा कि उनके जाने के बाद अब अपनी वैश्विक प्रासंगिकता गंवा रहा साम्यवाद अपने गर्भ से कोई और शावेज को जन्म देता है या उसका तंबू भूमंडलीकरण की आंधी में उखड़कर पूंजीवाद की छतरी में समा जाता है। वैसे कराकस में दिवंगत राष्ट्रपति शावेज की अंतिम विदायी में लाखों वेनेजुएलियाई जनता का शरीक होना इस बात का संकेत है कि शावेज के जाने के बाद भी वेनेजुएला की साम्यावदी जमीन को पूंजीवाद के रंग में रंगना अमेरिका के लिए आसान नहीं होगा।
शावेज की शानदार लोकप्रियता का प्रमाण है कि रूस, चीन, क्यूबा, ब्राजील और अर्जेटीना समेत कई देश उन्हें महान नेता के तौर पर याद कर श्रद्धांजलि दे रहे हैं। भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी शावेज को श्रद्धा-सुमन अर्पित किया है। गरीब शिक्षक परिवार में जन्मे शावेज का प्रारंभिक जीवन बेहद कठिनाइयों में गुजरा। शावेज के चचेरे भाई फरियास का एक वक्तव्य बरबस याद आ जाता है कि वे और शावेज जब छोटे थे, तब धूल भरी सड़कों पर बेस-बॉल खेलते समय वे लोग अपने हाथों का बल्ल्े के तौर पर इस्तेमाल करते थे। कौन जानता था कि पतंगबाजी और चित्रकारी का शौकीन यह अद्भुत बालक आगे चलकर पूंजीवाद और साम्राज्य के खिलाफ प्रतिरोध की प्रस्तावना रचेगा। शावेज दक्षिण अमेरिका के मार्क्सवादी नेता सिमोन बोलिवार और क्रांतिनायक चे ग्वेरा से बेहद प्रभावित थे। 38 की उम्र में उन्होंने एक नए वेनेजुएला को गढ़ने का सपना देख डाला। उन्होंने 1992 में तत्कालीन राष्ट्रपति कार्लोस पेरेज की भ्रष्ट सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए तख्तापलट की कोशिश की और गिरफ्तार कर लिए गए। दो साल की जेल काटने के बाद फिर उन्होंने दोबारा फौजी वर्दी को अपने तन पर नहीं चढ़ाया।
परिवर्तन के लिए अपनी जुबान को हथियार बनाया। उन्होंने वेनेजुएलियाई जनता को लामबंद किया और 1998 का चुनाव जीतकर राष्ट्रपति बन गए। सत्ता में आने के बाद शावेज ने समतामूलक समाज की संकल्पना को आगे बढ़ाने के लिए बोलिवेरियन क्रांति का मंत्र फूंका, लेकिन सिद्धांत को व्यवहार में उतारना आसान नहीं होता है। मगर जब बात शावेज जैसे दृढ़ इच्छा वाले व्यक्तित्व की हो तो कठिन भी क्या है। जब शावेज ने सत्ता की बागडोर संभाली उस वक्त तक वेनेजुएला में अमेरिकी तेल कंपनियों ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी। वेनेजुएला को गुलामी के रास्ते पर बढ़ते देख शावेज तिलमिला गए। उन्होंने फैसला कर लिया कि अपनी भूमि पर अमेरिकी समर्थक कंपनियों और संस्थाओं का पैर टिकने नहीं देंगे। लिहाजा, उन्होंने कड़े कदम उठाते हुए पेट्रोलियम, दूरसंचार और ऊर्जा का राष्ट्रीयकरण कर दिया। वेनेजुएला की संपूर्ण आजादी और अमेरिकी पूंजीवाद की प्रेतछाया से बचने के लिए शावेज ने और भी महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने वर्ल्ड बैंक और आइएमएफ जैसी अमेरिकी प्रभाव वाली विश्व संस्थाओं का कर्ज उतारने के लिए रोडमैप बनाया। मजे की बात यह कि उन्होंने तय समय से पहले ही कर्ज का बोझ उतारकर ब्याज के 80 लाख डॉलर यानी 35 करोड़ रुपये बचा लिए। शावेज के इस तेवर से अमेरिका का नाराज होना स्वाभाविक था। उसने शावेज को घेरने के लिए अपने खतरनाक काकस तंत्र को सक्रिय कर दिया, लेकिन शावेज इससे विचलित नहीं हुए। मौत से खौफ खाना उनकी आदत में शुमार नहीं था। मौत से चंद रोज पहले उन्होंने कहा था कि उनके जाने के बाद भी समाजवादी क्रांति जारी रहेगी और क्रांतिकारी विचारधारा वाली युवा पीढ़ी वेनेजुएला में चल रहे राजनीतिक संघर्ष की रक्षा करेगी। सर्वहारा के इस महान नायक के निधन के बाद विश्व समुदाय उसका मूल्यांकन किस रूप में करेगा और वेनेजुएला का समाजवाद पूंजीवाद के प्रहार से बच पाएगा, यह सवाल आसमान में तैरने लगा है। लेकिन साम्राज्यवाद के कपाल पर समाजवाद का रंग चढ़ाने वाले इस धूमकेतु की शौर्य दीप्ति को भला निस्तेज कैसे किया जा सकता है।
इस आलेख के लेखक अरविंद जयतिलक हैं
Tags:तख्तापलट, पूंजीवाद, साम्यवादी संघर्ष, उत्तराधिकारी, राष्ट्रपति कार्लोस पेरेज
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