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हिंदी के एक मशहूर लेखक ने अपने एक इंटरव्यू में सिविल सर्विस की परीक्षाओं का मजाक उड़ाते हुए कहा है कि आप इतिहास की सात किताबें रटकर टॉपर बन सकते हैं। इस तरह के तमाम आरोप पिछले कई दशकों से विभिन्न प्रशासनिक परीक्षाओं के संदर्भ में लगाए जाते रहे हैं। कहा जाता रहा है कि ये परीक्षाएं रट्टू तोतों के लिए आसान होती हैं और सही मायनों में समझदारी रखने वालों के लिए कठिन होती हैं। इसी सबको ध्यान में रखकर जब कुछ साल पहले यूनिवर्सिटी सर्विस कमीशन के पूर्व चेयरमैन प्रोफेसर अरुण एस निगवेकर ने परीक्षाओं के मूल ढांचे में बदलाव की अनुशंसा की थी और बाद में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे हरी झंडी दिखाई थी। तब तमाम लोगों ने सरकार के इस कदम की सराहना की थी। सवाल उठता है कि फिर आज जब 20 सालों बाद पहली बार संघ लोक सेवा आयोग की भारतीय प्रशासनिक सेवा की मुख्य परीक्षा में फेरबदल किए गए हैं तो दिल्ली से लेकर पटना तक विरोध क्यों हो रहा है? विरोध की जो तात्कालिक वजह सामने आ रही है, वह यह है कि अब संघ लोक सेवा आयोग की अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा की मुख्य परीक्षा के निबंध खंड में अंगे्रजी ज्ञान को जांचने वाला भी एक अनिवार्य प्रश्न होगा। सारी की सारी गिरोहबंदी इसी हिस्से को लेकर हो रही है।
इस विरोध को बड़े सरलीकृत ढंग से पेश किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इससे अंग्रेजी कान्वेंट स्कूलों के पढ़े-लिखे बच्चे आसानी से सफल हो जाएंगे और गांव देहात व छोटे शहरों से आने वाले छात्रों के लिए सिविल सर्विस की परीक्षा पास करना काफी मुश्किल हो जाएगी। जबकि सच यह नहीं है। नए पैटर्न के मुताबिक सारा जोर सामान्य अध्ययन या जनरल स्टडीज का होगा। अब इस पैटर्न के तहत इसके चार पेपर होंगे और सभी 250 नंबर के होंगे। इसके बाद दो पेपर ऑप्शनल या वैकल्पिक चयनित विषय के होंगे, जिसके लिए अधिकतम 500 नंबर दिए जाएंगे और तीसरा खंड निबंध का होगा, जिसमें कुल 300 नंबर होंगे। सिर्फ यही वह खंड है, जहां अंग्रेजी का एक प्रश्न आपकी अंग्रेजी भाषा के संबंध में समझदारी को जांचने के लिए और इस भाषा में खुद को व्यक्त करने के ढंग को परखने के लिए होगा। इस तरह देखा जाए तो 1500 नंबर के प्रश्नों में अंग्रेजी कहीं आड़े नहीं आएगी। निबंध खंड में अगर एक प्रश्न अंग्रेजी का अनिवार्य होगा तो भी उसकी पूरी की पूरी क्षमता मान लें तो भी 300 नंबरों तक ही सीमित होगा, जबकि इंटरव्यू के लिए 250 नंबरों का एक और खंड है और इस तरह से अंग्रेजी का हव्वा जिस प्रश्न-पत्र को बनाया जा रहा है, वह इतना महत्वपूर्ण नहीं होगा कि आपको पास या फेल कर सके। सवाल है कि आखिर इस नए पैटर्न को पेश करने की जरूरत क्यों पड़ी? वास्तव में हाल के सालों में देखा गया था कि कुछ गणितीय या तथ्य आधाारित विज्ञान विषयों के छात्र काफी ज्यादा अंक हासिल करके इन परीक्षाओं में बाजी मार ले जाते हैं। इंजीनियरिंग और मेडिकल के छात्र पिछले कई सालों से इन प्रशासनिक सेवाओं की परीक्षाओं में अव्वल बने हुए थे, लेकिन कई मौकों पर पाया गया कि इंजीनियरिंग और मेडिकल के इन छात्रों को समाज की बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है। यह बात कोई और नहीं कह रहा है, बल्कि सरकार का खुद ऐसा दावा अपने एक विशेष सर्वेक्षण अध्ययन के आधार पर है।
सरकार का साफ कहना है कि ऐसे प्रशासनिक अधिकारी हाल के सालों में धुर सामाजिक मुद्दों और पहलुओं को लेकर भौचक नजर आते हैं। उन्हें ऐसे मुद्दों को हल करने की न तो बेहतर समझ है और न ही उनका कोई व्यावहारिक ज्ञान है। इस कारण प्रशासनिक सेवाओं की गुणवत्ता में हाल के सालों में काफी गिरावट देखी गई है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पिछले साल कई बार इस ओर इशारा किया था। दरअसल, आइएएस और दूसरी संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में जो बदलाव प्रस्तावित किए गए हैं, वे अच्छे हैं और एक लिहाज से जरूरी भी। दुनिया बड़ी तेजी से एक-दूसरे के करीब आ रही है। ऐसे में अंग्रेजी से दूरी, विरोध और उसकी अनदेखी कोई समझदारी नहीं है। सभी जानते हैं कि आज दुनिया में बुनियादी ज्ञान का आधार अंग्रेजी भाषा है। क्या हम चाहते हैं कि हमारे प्रशासनिक अधिकारी अंग्रेजी भाषा से अनभिज्ञ रहें? फिर वे दुनिया को कैसे समझेंगे? याद रखें हम अपने सर्वश्रेष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को यह सहानुभूति नहीं दे सकते कि उन्हें अंग्रेजी सीखने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि वे सर्वश्रेष्ठ हैं। इसलिए उन्हें यह बोझ तो उठाना ही पड़ेगा। यह देश हित में भी है और दुनिया के हित में भी।
इस आलेख के लेखक निनाद गौतम हैं
Tags: आइएएस, प्रशासनिक, प्रशासनिक सेवा, प्रशासनिक अधिकारियों
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