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सरकार ने कोयला घोटाला से जुड़ी सीबीआइ की जांच रपट को देखा था और उसमें बदलाव किए थे, यह सूचना सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपनी पहली सुनवाई में इसे बहुत परेशान करने वाला बताया और इस जांच एजेंसी को सरकार से आजाद करने की जरूरत बताई। ये दोनों ही बातें अन्ना आंदोलन की मांग जैसी लगती हैं, पर जब मामला एक बड़े घोटाले, एक केंद्रीय मंत्री और सरकार के सीधे फंसने का हो तो इसकी गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। विपक्ष, खासकर भाजपा ने सीधे-सीधे प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग करते हुए सातवें दिन भी संसद के कामकाज को बाधित करके सरकार के ऊपर दबाव बनाया है। इसका कुछ असर दिखने लगा है। कानूनी लड़ाई में सरकार और सीबीआइ के खेवनहारों के बीच आपसी जंग शुरू हो गई है और लगता है कि एडिशनल सालिसिटर जनरल हरेन रावल विदा होने के रास्ते पर हैं। उन्होंने और अटार्नी जनरल जीई वाहनवती ने खुलकर एक-दूसरे पर आरोप लगाना शुरू किया है।
जिस तरह का यह घोटाला है और जिस स्तर के लोगों की साफ भागीदारी दिखती है और इन सबसे बढ़कर जिस बेशर्मी से मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की रही है उसमें अकेले किसी रावल को बलि का बकरा बनाने से काम नहीं चलेगा। बात वहानवती और कानून मंत्री अश्वनी कुमार की विदाई और फिर सरकार तक पहुंचती है या नहीं, इस पर सबकी नजर लगी हुई है। इसी बीच किसी और समर्थक दल ने समर्थन वापसी का फैसला कर लिया तो अदालती फैसले और कानूनी पेचीदगियों में फंसने वाला मामला भी किनारे हो जाएगा। सरकार के मैनेजर अब साफ तौर पर सीधे कुछ कहने और अदालती फटकार पर कुछ करने को तैयार नहीं लगते? सीबीआइ के प्रमुख को दो साल का कार्यकाल सरकारी दबाव से मुक्ति के लिए ही दिया गया था, पर इसके बाद भी वह रपट अदालत को पेश करने से पहले सरकार को दिखाने की आदत से बाज नहीं आते हैं तो यह सिर्फ आलोचना और फटकार का विषय नहीं है। जब अदालत ने सीबीआइ को आजादी देने की बात की है तो फिर यह भी तय किया जाना चाहिए कि सेवा के पुरस्कार के रूप में रिटायरमेंट के बाद सीबीआइ प्रमुख को राज्यपाल बनाने जैसे फैसले न होने पाएं। पहले के लगभग सभी सीबीआइ प्रमुख आज बड़े पदों की शोभा बढ़ा रहे हैं। राज्यपाल और राजदूत जैसे पदों पर गैर-नौकरशाहों का आना कम हुआ है और सारे पद नौकरशाहों के पास ही जा रहे हैं। इस मामले में रंजीत सिन्हा छोटे कसूरवार हैं। उन्हें और उनके जैसे लोगों को सेवानिवृत्ति के बाद के काम की चिंता से भी ज्यादा अपने मौजूदा पद और वहां के कामकाज के हिसाब से चलना होता है और यह तथ्य है कि जब हरेन रावल अदालत के समक्ष झूठ बोल रहे थे और वाहनवती चुप्पी साधे रहे तब तक सरकार के मंत्री और दो अधिकारी सीबीआइ की रपट को देख और बदल चुके थे। संभवत: अदालत को भी अंदाजा होगा कि उसके समक्ष झूठ बोला जा रहा है।
दरअसल सीबीआइ का सदुपयोग या दुरुपयोग मसला नहीं है। मामला जनता के भरोसे का है। सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में स्पष्ट रूप से अपनी नाखुशी भी जताई है। केवल कोयला घोटाले में अदालत को भ्रम में रखने और सीबीआइ के दुरुपयोग भर की कोशिश ही नहीं हुई है। 2जी घोटाले में संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी की रपट के मामले में भी ऐसी ही स्थिति नजर आ रही है। अब जेपीसी के अध्यक्ष पीसी चाको रपट में बदलाव करने और ए. राजा को बुलाने जैसी बातें करने लगे हैं, पर जेपीसी से प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को क्लीन चिट दिलाने और सीबीआइ की ओर से प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को घोटाले की जानकारी होने की बात सुप्रीम कोर्ट में कबूल कर लेने का खेल काफी सोच समझकर खेला गया। अदालत में जानकारी होने भर की बात कबूलने से ज्यादा कूछ नही बिगड़ता, क्योंकि अदालत ठोस सुबूत-गवाही के आधार पर काम करती है। जेपीसी में राजनीतिक और नैतिक सवाल भी प्रमुख होगा। सो वहां नाम आने से राजनीतिक तूफान आता। अदालत जानकारी के आधार पर सजा तो नहीं देगी, पर लगता है कि ज्यादा होशियारी के इस खेल में कांग्रेस उलझ गई है और अभी उसके रणनीतिकारों को कुछ नहीं सूझ रहा है। अब दिन काटने और संसद का सत्र बीतने का ही इंतजार किया जाएगा।
इसमें अच्छी बात यह है कि चीन से सीमा पर खटर-पटर और सरबजीत पर हमले के मामले को कांग्रेस ने अपने बचाव में इस्तेमाल नहीं किया है। वह ऐसा करेगी या नहीं, यह कहना मुश्किल है, लेकिन भाजपा इन मुद्दों पर ज्यादा हंगामा करके कांग्रेस की घेराबंदी को और मजबूत करना चाहती है। वह सरकार की कमजोरी का मुद्दा उठाकर राजनीतिक लाभ लेना चाहती है, पर गड़बड़ हुई या कांग्रेस ज्यादा घिरी तो वह इन मुद्दों को भी इस्तेमाल कर सकती है। कोयला घोटाले में उसके साथ भाजपा और अन्य दल भी उलङो हैं। हर मामले में राज्य सरकारों की स्वीकृति की सच्चाई भी है। कांग्रेस के रणनीतिकारों ने गलती को कबूलने और भूल सुधार का प्रयास करने की जगह जो तरीका चुना उसमें नतीजा कुछ भी हो सकता है। अभी जो चीजें दिख रही हैं उतने पर ही मत रुक जाइए। अभी बहुत कुछ होना बाकी है। क्या अभी फंसी कांग्रेस इसी तरह उलझी रहेगी या इससे निकल भी सकती है। हो सकता है कि अपने सद्कर्म की जगह दूसरों की गलतियां ही उसका मुख्य हथियार हों। वैसे भी पार्टी कोयला ही नहीं 2जी मामले में भी अपनी गलती से ज्यादा राजग सरकार पर बात डालकर बचना चाहती है।
इस आलेख के लेखक अरविंद मोहन हैं
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