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लेबनानी विद्रोही खलील जिब्रान ने लिखा था, हम दोस्तों की तरह आते हैं तुम्हारे पास/लेकिन तुम दुश्मनों की तरह टूट पड़ते हो हम पर/हमारी दोस्ती और तुम्हारी दुश्मनी के बीच/एक गहरी दरार है जिसमें सैलाब है खून का/और आंसू बहते हैं बेतहाशा..। भारत-पाक संबंधों की यही नियति है और इसका खामियाजा दोनों देशों के निदरेष नागरिक भोग रहे हैं। भारत का दृष्टिकोण फिर भी मानवीय और उदात्त संबंधों वाला है। पाकिस्तानी डॉक्टर खलील चिश्ती को भारत में आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। जरदारी-मनमोहन वार्ता में 80 वर्षीय डॉ. चिश्ती का मानवीय सवाल उठा। भारत की सर्वोच्च न्यायपीठ ने उन्हें जमानत पर रिहा करने के आदेश दे दिए, लेकिन सरबजीत अभागे निकले। डॉ. चिश्ती पर गंभीर आपराधिक आरोप थे। सरबजीत के विरुद्ध ठोस आरोप नहीं थे। डॉ. चिश्ती भारतीय जेल में स्वस्थ व मस्त थे, लेकिन सरबजीत को पाकिस्तानी जेल में ही मारा गया। उन पर बर्बर हमला हुआ था। भारत पाकिस्तानी सरकार से अच्छे इलाज की प्रार्थना करता रहा। सुनवाई नहीं हुई। भारत ने भारतीय चिकित्सकीय सेवा का प्रस्ताव किया। प्रस्ताव खारिज हो गया। सरबजीत की हत्या हुई है पाकिस्तानी जेल में। एक बार मातृभूमि देखने की इच्छा ने ही उन्हें जिजीविषा दी। संकल्प हार गया और बर्बरता की जीत हो गई।
पाकिस्तान वास्तविक राष्ट्र नहीं है। इसका जन्म मुस्लिम लीग द्वारा फैलाई गई घृणा के साथ हुआ था। हम 1947 तक एक साथ थे। एक इतिहास, एक भूगोल, साझा संस्कृति, साङो दुख और साङो सुख, लेकिन सत्ता पिपासा ने घर बांट दिया। सिंधु अब भी वैसे ही बहती है, लेकिन अब वह पाकिस्तानी कही जाती है। पाकिस्तान कृत्रिम देश बना। भारत की प्राचीन संस्कृति को वहां अपनी संस्कृति नहीं माना जाता। वहां संविधान की सत्ता नहीं चलती। उग्र इस्लामवाद अनेक आतंकी गुटों में बंटकर पूरे मुल्क को रक्तरंजित कर रहा है। ईशनिंदा को लेकर निदरेषों को सजा दी जा रही है। पत्रकार भी मारे जा रहे हैं। पाकिस्तान अल्लाह, आर्मी और अमेरिकी कृपा पर ही घिसटता एक असफल राज्य है। विश्वविख्यात अमेरिकी विचारक नोम चोमस्की ने 2008 में ही इसे विफल राज्य घोषित कर दिया था।
पाकिस्तान का अवाम जनतंत्र के सुख नहीं जानता। गरीबी, भुखमरी से छुटकारे का कोई स्वप्न नहीं देखता। अल्पसंख्यक हिंदू अपने घर में भी धार्मिक कार्य नहीं कर सकते। उनकी बेटियां उठाई जा रही हैं, जोर जबर्दस्ती के मतांतरण हैं। आइएसआइ, फौज और जिहादी आतंकी गुटों की मिली-जुली सत्ता में लगभग दो हजार पाकिस्तानी नागरिक आतंकी हमलों में मारे जा चुके हैं। दुनिया का सबसे बड़ा दहशतगर्द मुल्क है पाकिस्तान। अपनी राजव्यवस्था के संचालन में बेहद असफल, लेकिन हठी और दुराग्रही देश। भारत विरोध उसका जन्मजात सिद्धांत है। जो जितना बड़ा भारत विरोधी वह उतना ही बड़ा देशभक्त पाकिस्तानी। दुर्भाग्य से भारत की पाकिस्तानी नीति का कोई आधार नहीं है। पाकिस्तान भारत में घुसपैठ कराता है। पाकिस्तान में आतंकी ट्रेनिंग कैंप हैं। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की बात भी स्वत: सिद्ध है, बावजूद इसके भारत निरीह, लाचार, असहाय और बेबस क्यों है?
पाकिस्तानी जेलें भारत के निदरेष नागरिकों से भरी हुई हैं। कुछ समय पहले तत्कालीन विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने राज्यसभा में बताया था कि पाकिस्तान की जेलों में 793 भारतीय बंद हैं। इनमें 582 गरीब मछुआरे हैं। शेष 211 भी साधारण नागरिक हैं। मछुआरे नदी में उतरते समय भारत-पाक की नियंत्रण रेखा नहीं जांच पाते। पानी की लहरों में देश-परदेश की जांच नहीं हो पाती। निदरेष मछुआरों को पाकिस्तानी जेल में सड़ने देना और भारत-पाक शीर्ष वार्ताओं में ही मजे लेना भारतीय राजनयिकों की लत है। पाकिस्तान में मानवाधिकारों की कोई जगह नहीं है। सरबजीत निदरेष थे। लाहौर और फैसलाबाद के सीरियल बम ब्लास्ट में पाकिस्तान को मंजीत सिंह की तलाश थी। मंजीत नहीं मिला तो सरबजीत पर मुकदमा चला। उन्होंने अपनी पहचान बताई। वह गलती से पाक सीमावर्ती गांव में थे, लेकिन उनकी दलील नहीं सुनी गई। 1991 में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। पांच दया याचिकाएं दाखिल की गईं। उन्होंने दया की भीख मांगी कि जिस अपराध के लिए उन्हें जेल में 22 वर्ष बिताने पड़े हैं वे उन्होंने नहीं किए। 28 मई, 2012 की याचिका पर पाकिस्तानी राष्ट्रपति ने उनकी रिहाई के आदेश दिए। पाकिस्तानी उग्रवादी समूहों के दबाव में यह आदेश वापस हो गया, कहा गया कि सुरजीत सिंह को क्षमा किया गया है, न कि सरबजीत को।
पाकिस्तानी राजव्यवस्था ने नाम के बहाने ही सरबजीत को दो बार सताया। पहली बार उन्हें मंजीत सिंह बताकर 23 बरस तक जेल में यातनाएं दी गईं। दूसरी बार रिहाई के मौके पर उनके नाम की जगह सुरजीत को माफी दी गई। अंतत: उन्हें मार दिया गया। जेल में प्राणघातक हमला हुआ। भारत का एक निदरेष पुत्र आतंकी मुल्क की जेल में मारा गया। सैकड़ों अब भी जेल में यातनाओं के शिकार हैं। मूलभूत प्रश्न है कि भारत सरकार ने क्या किया? चिश्ती के लिए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने भारतीय प्रधानमंत्री से वार्ता की थी। सरबजीत के लिए डॉ. मनमोहन सिंह ने क्या प्रयास किए? भारत ने चिश्ती के मामले में उदारता दिखाई तो इसी के साथ सरबजीत की रिहाई के प्रश्न क्यों नहीं उठाए गए? क्या भारत-पाक के रिश्ते एकतरफा हैं। हमारी ओर से वे दोस्त हैं। पड़ोसी हैं और उनकी दृष्टि में हम भारत के लोग उनके शत्रु।
असल में भारत की पाक नीति में ही सारा दोष है। पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सैनिकों के सिर काटकर ले गए। भारत ने कुछ नहीं किया। वह बार-बार ललकारता है। भारत मौन रहता है। पाकिस्तान सदाशयता का अर्थ कायरता ही लेता है। वह अपने जन्मकाल (1947) से ही युद्धरत है। वह चार प्रत्यक्ष युद्धों में भारत से हार चुका है, लेकिन प्रच्छन्न आतंकी युद्ध जारी है। वह आतंकवाद के प्रशिक्षण की यूनिवर्सिटी चलाता है। दुनिया के पास आतंकी टेनिंग सेंटरों के सबूत हैं। पाकिस्तान कृत्रिम राष्ट्र है और एक सुव्यवस्थित युद्ध विचारधारा। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के एक छात्र रहमत अली ने 1933 में नाऊ ऑर नेवर (अभी नहीं तो कभी नहीं) लेख के जरिए दक्षिण एशिया में एक अलग मुस्लिम राष्ट्र की पैरवी की थी कि हिंदू बहुमत वाले भारत में मुसलमानों का भला नहीं हो सकता। उन्होंने इस काल्पनिक राष्ट्र का नाम पाकिस्तान रखा था। मुस्लिम लीग के लाहौर सम्मेलन (1940) में जिन्ना का रखा पाकिस्तान प्रस्ताव पारित हो गया। नेहरू, लार्ड माउंटबेटन और जिन्ना ने भारत बांट दिया। तबसे अब तक भारत पर ही घात-प्रतिघात हुए हैं। दिल्ली के सिंहासन की कमजोरी ने राष्ट्र को आहत किया है।
इस आलेख के लेखक हृदयनारायण दीक्षित हैं
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