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दुश्मनी की नापाक कहानी

जागरण मेहमान कोना
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पाकिस्तान में कट्टरपंथी तत्व जिस तरह हावी हैं और भारत विरोध की भावना से भरे हुए हैं उससे तो बिलकुल ही आशा नहीं थी कि सरबजीत सिंह सकुशल भारत आ पाएंगे। वही हुआ जिसका डर था और पाकिस्तान ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह भारत और भारतीयों के प्रति किस कदर शत्रुतापूर्ण भाव रखता है। पाकिस्तान का इतिहास रहा है कि यदि कोई भारतीय भूले-भटके सरहद के पार चला जाता है तो उसे गिरफ्तार कर संगीन से संगीन इल्जाम लगाए जाते हैं। यही नहीं जो लोग पासपोर्ट पर वीजा का ठप्पा लगवाकर भारत से पाकिस्तान जाते हैं उनकी भी कोई गारंटी नहीं कि कब उन्हें बंदी बना लिया जाए, उनके सामान में कोई खतरनाक चीज प्लांट करके उन पर केस चलाया जाए।


खेद का विषय यह भी है कि जब भी पाकिस्तान में किसी भारतीय पर जुल्म किया जाता है तो उसकी प्रतिक्रिया भारतीय मुसलमानों को भुगतनी पड़ती है। आज भी बहुत से लोग सोचते हैं कि भारतीय मुसलमानों के मन के तार पाकिस्तान से जुड़े हुए हैं, जबकि यह बिलकुल गलत है। आज का भारतीय मुसलमान पाकिस्तान से नफरत करता है। जब-जब भारत ने पाकिस्तान का साथ दिया है, तब-तब उसे धोखा मिला है। पाकिस्तान के जन्म का आधार ही भारतीयों के प्रति नफरत का भाव है। 1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी नवाज शरीफ से गले मिल रहे थे तो कारगिल में जनरल परवेज मुशर्रफ चढ़ाई कर रहे थे। जहां तक पाकिस्तान में भारतीय बंदियों का प्रश्न है, पाकिस्तान को तो क्यों उनकी चिंता होगी। खेद का विषय है कि हमारी भारत सरकार को भी उनकी कोई चिंता नहीं। सरबजीत को 1990 में किसी दूसरे के मुगालते में झूठे आरोप लगाकर बंदी बना लिया गया था। वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान में राजनेता तो मात्र कठपुतलियां हैं। असल सत्ता तो आइएसआइ और सेना के हाथों में है। जो देश सेना द्वारा चलाया जाता हो वहां बर्बरता, जुल्म, आतंक आदि के अतिरिक्त कुछ और होने की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। आज पाकिस्तान एक ज्वालामुखी की भांति किसी भी समय फट पड़ने को तैयार है और यह विस्फोट करने वाले भारत से नहीं, बल्कि स्वयं पाकिस्तान से होंगे। आज पाकिस्तान तालिबान, मुहाजिर, सिंधी, मेमन, अहमदिया, मेहदी, कादियानी, शिया एवं सुन्नी और न जाने कितने अनेक भागों में बंट चुका है। ये सभी एक-दूसरे की जान के दुश्मन बने हुए हैं। इनके हत्थे यदि कोई हिंदुस्तानी चढ़ जाता है तो उसकी फिर खैर नहीं। सरबजीत के साथ पाकिस्तान में जो कुछ हुआ उसके लिए निश्चित तौर पर पाकिस्तानी सरकार, वहां के राजनेता और आइएसआइ जिम्मेदार है, लेकिन इसके साथ ही भारत सरकार की निष्क्रियता और नाकामी की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। 1991 से ही दलबीर कौर अपने भाई को इंसाफ दिलाने के लिए सत्ता की बहरी चौखटों पर दस्तक देती फिर रही थीं। जिस प्रकार के घड़ियाली आंसू आज सत्तासीन कांग्रेसी नेता बहा रहे हैं और भाजपा सरबजीत की शहादत पर राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगी है, यदि उन्होंने इतनी ही बेचैनी सरबजीत के जीते जी दिखा दी होती तो शायद वह अपने घर जिंदा लौट चुके होते।


आज जब सरबजीत का बेरहमी और बर्बरता के साथ लाहौर की कोट लखपत जेल में कत्ल कर दिया गया तब उनकी मौत पर सभी राजनीति कर रहे हैं। इस पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि पाकिस्तान की छवि दुनिया में ऐसी बन गई है कि उस पर तनिक भी भरोसा नहीं किया जा सकता। पूरा विश्व कम से कम आतंकवाद के मामले में पाकिस्तान के छल-फरेब से त्रस्त है। भारत उसके इस छल-फरेब से सबसे अधिक पीड़ित है। कम से कम अब नई दिल्ली को तुरंत अपना उच्चायुक्त पाकिस्तान से वापस बुला लेना चाहिए और उसके साथ कूटनीतिक संबंधों पर तात्कालिक विराम लगना चाहिए।


सरबजीत से पहले भी पाकिस्तान की सेना भारत के दो सैनिकों के साथ बर्बर व्यवहार कर चुकी है। सरबजीत सिंह की तरह ही चमेल सिंह का भी लाहौर की उसी जेल में बेरहमी से कत्ल कर दिया गया था। भारत को इन सभी मामलों को एमनेस्टी इंटरनेशनल, संयुक्त राष्ट्र और इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के समक्ष लेकर जाना चाहिए और इसके साथ ही विश्व से आग्रह करना चाहिए कि वह पाकिस्तान पर अंकुश लगाने के कुछ उपाय करे। कुछ लोगों का विचार है कि भारत एक कमजोर देश है, जिसके कारण कभी पाकिस्तान, कभी चीन तो कभी श्रीलंका उसे आंखें दिखाते रहते हैं। इसमें दो राय नहीं कि भारत की विदेश नीति शांति एवं अमन-चैन पर आधारित है। पाकिस्तान सदा से ही इसका नाजायज फायदा उठाता चला आया है। भारत की सबसे बड़ी गलती यह रही कि जब मुंबई में पाकिस्तान से आतंकवादियों ने दुस्साहसिक हमला किया था तो नई दिल्ली अपनी सख्त प्रतिक्रिया पर बहुत दिन तक कायम नहीं रह सकी। बहुत जल्दी यह स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तान मुंबई हमले के षड्यंत्रकारियों को सजा देने के प्रति गंभीर नहीं, बावजूद इसके नई दिल्ली उस पर कोई दबाव नहीं डाल सकी। भारत को इस पर विचार करना चाहिए कि क्यों उसके रुख को कमजोरी के रूप में देखा जा रहा है। अब वक्त आ गया है कि भारत न केवल पाकिस्तान, बल्कि चीन को सख्त संदेश दे। अगर अभी भी भारत विदेश नीति के मोर्चे पर अपने ढीले-ढाले रवैये का परित्याग नहीं करता तो उसे आगे भी इसी तरह के आघातों के लिएतैयार रहना चाहिए।


इस आलेख के लेखक फिरोज बख्त अहमद हैं

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