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अखबारी दुनिया का एक जुमला है कि अच्छी खबरों का कभी कोई मौसम नहीं होता वैसे ही जैसे बुरी खबरें बिना बताए आती हैं। पिछले छह महीने खबरों की दुनिया में बहुत बुरे गजरे। एक को पछाड़ते दूसरे घपले-घोटाले थे तो दिल्ली से लेकर मुल्क के दूसरे गली-कूचों में दुष्कर्म की घिनौनी खबरें, लेकिन इसी बीच अयोध्या से एक सुखद बयार आई है। ऐसी अयोध्या जिसकी वजह से मुल्क की कौमी एकता पर सवाल भी खड़े होते रहे हैं। पिछले सप्ताह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश पलोक बसु के संयोजन और श्रीरामजन्म भूमि निर्माण सेवा समिति के अध्यक्ष महंत जनमेजय शरण की अध्यक्षता में दोनों समुदाय के लोगों ने एक प्रस्ताव पास किया कि विराजमान रामलला के स्थान पर मंदिर और उसके दक्षिणी पश्चिमी हिस्से में मस्जिद का निर्माण किया जा सकेगा। इस प्रकार 70 एकड़ में फैले विवादित अधिग्रहीत परिसर में ही मंदिर के साथ मस्जिद का निर्माण किया जाएगा। हिंदू धर्माचार्यो के अलावा सैयद आफताब रजा, अब्दुल लतीफ, सादिक अली, मंजर मेंहदी और कैसर अंसारी जैसे लोग जो मंदिर-मस्जिद विवाद में पैरोकार रहे, वे भी इस मौके पर मौजूद थे। इन सब लोगों ने यह प्रस्ताव अयोध्या की आम जनता के समक्ष रख दिया है और दस हजार लोगों के समर्थन के बाद यह प्रस्ताव फैजाबाद के कमिश्नर, जो कि अधिग्रहीत परिसर के रिसीवर हैं, उनके समक्ष रखा जाएगा। दोनों पक्षों ने तय किया कि इस मुद्दे का समाधान अयोध्या के लोग ही करेंगे, किसी बाहरी व्यक्ति का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जाएगा।
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Ayodhya Verdict Judgement
यह सुखद है कि यह प्रस्ताव अयोध्या के जिन घरों में जा रहा है उसे पुरजोर समर्थन मिल रहा है, लेकिन क्या मंदिर-मस्जिद बनने भर से सांप्रदायिक सौहाद्र्र का हमारा दामन फिर से उजला हो जाएगा? फिर जैनों और बौद्धों के उन दावों का क्या होगा, जो उतने ही अकाट्य तथ्यों के साथ इस पर अपना दावा जताते रहे हैं, जितने हिंदू और मुस्लिम। मसलन बौद्ध कहते हैं कि इस्लाम में किसी के नाम से कभी मस्जिद तामीर नहीं की जाती। बौद्ध ग्रंथों में अयोध्या के एक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु बाबरी का उल्लेख मिलता है। तर्क है कि यह बाबरी मस्जिद पहले बाबरी स्तूप था। कनिंघम ने कुबेर टीला और सुग्रीव टीला को बौद्ध स्तूप बताया है। यह भी उल्लेखनीय है कि अयोध्या प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान अश्वघोष की नगरी रही है। तथागत ने साकेत में, जो अयोध्या का पूर्व नाम था, में 21 वर्ष व्यतीत किया था और उनके प्रभाव के कारण ही साकेत का नाम बाद में अयोध्या (वह क्षेत्र जहां युद्ध और वध नहीं होते) पड़ा।
Ayodhya Verdict In Hindi
चौबीस र्तीथकरों में पांच र्तीथकरों ऋषभदेव, अजीतनाथ, अभिनंदननाथ, अनुजनाथ और सुमतिनाथ की जन्म स्थली रही है अयोध्या। आज भी अयोध्या में जैनों के कई मंदिर हैं। इसलिए विवादित स्थल पर जैनों ने भी अपना हक जताया है। अवध के नवाबों ने अयोध्या के इस स्वरूप को भली-भांति समझा था और उसे अपनी तरफ से सजाने-संवारने की कोशिश भी की। हनुमानगढ़ी का निर्माण अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने कराया था। चूंकि यह जमीन पहले एक मुसलमान जमींदार की थी इसलिए सांप्रदायिक सद्भाव की उस मिसाल को कायम रखते हुए हनुमान गढ़ी का पहला प्रसाद आज भी एक मुस्लिम फकीर को दिया जाता है। हनुमान गढ़ी में रमजान मुबारक के मौके पर एक बड़े रोजा इफ्तार का आयोजन किया जाता है। हनुमान गढ़ी के पहले महंत ने इसमें एक सर्वधर्म मंदिर का निर्माण कराया था, जिसमें राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर के साथ-साथ मक्का-मदीना की तस्वीरें आज भी आबाद हैं। अयोध्या में मंदिरों का प्रसाद, भगवा ध्वज, मालाएं आदि बनाने वाले 80 फीसद कारीगर मुसलमान हैं। आज भी नवरात्र केबाद हिंदू जब मूर्तियों को विसर्जन के लिए ले जाते हंै तो मुसलमान अपने घरों की छतों पर खड़े होकर फूल बरसाते हैं। प्रसिद्ध शायर और पाकिस्तान के प्रवर्तक अल्लामा इकबाल अयोध्या के इस मिजाज से बहुत प्रभावित रहते थे और शेष हिंदुस्तान को अयोध्या से सीखने का सबक देते थे। राम के आदर्शवादी चरित्र से अभिभूत होकर एक बार उन्होंने राम को हिंदुस्तान का इमाम भी कहा। अल्लामा इकबाल के अलावा कुछ और लोगों ने भी बड़ी शिद्दत से अयोध्या की इस विरासत को लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की। प्रख्यात नर्तकी उमराव जान, जो आज मुजफ्फर अली की अजीम शाहकार या रेखा के अभिनय से ज्यादा जानी जाती है, वह इसी अयोध्या की थीं। प्रख्यात विचारक डॉ. राम मनोहर लोहिया अयोध्या को सर्वधर्म समभाव का केंद्र बनाने की वकालत करते थे।
Hindu Muslim Riots: Ayodhya Verdict Judgement
खुद फैजाबाद 1857 के गदर में हिंदू- मुस्लिम एकता की एक मिसाल था। फैजाबाद के प्रशासन पर जब बागियों ने कब्जा किया तो हिंदुओं की पहल पर मौलवी अहमद उल्ला को फैजाबाद की कमान सौंपी गई। कैंपबेल ने जब फैजाबाद पर कब्जा किया तो हिंदू-मुसलमानों ने एक साथ अपने सीने पर गोली खाई। काकोरी कांड के नायक अशफाक उल्ला को फैजाबाद में फांसी दी गई थी, इस वजह से यह क्रांतिकारियों के लिए भी तीर्थ स्थल बना रहा। अयोध्या के लोग जो एक नया सबेरा गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं उसका दामन कुछ और ज्यादा सुर्ख और व्यापक बनाने की जरूरत है। तभी तो प्रभात की किरणों न केवल हमारे अपने मुल्क को, बल्कि पूरी कायनात को कौमी एकता का पैगाम देंगी। यहां एक साथ मंदिर-मस्जिद बने, उसी आंचल में जैनों-बौद्धों के भी मठ बने। जब यहां से एक साथ अलसुबह मंदिर के घड़ियाल, मस्जिद की अजान और र्तीथकरों की देशनाएं गूंजेगीं तो अयोध्या का वह दाग धुल जाएगा जो विवादित ढांचे के विध्वंस के बाद मुल्क के दामन पर लगा था।
इस आलेख के लेखक कौशलेन्द्र प्रताप यादव हैं
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