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क्रिकेट बोर्ड का ढकोसला

जागरण मेहमान कोना
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बीसीसीआइ की इमरजेंसी वर्किंग कमेटी के बाद कार्यकारी अध्यक्ष जगमोहन डालमिया ने एक मास्टर प्लान सामने रखा। यह प्लान क्रिकेट में आई गंदगी, खासतौर पर आइपीएल में फिक्सिंग को दूर करने के लिए तैयार किया गया है। दिलचस्प, चौंकाने वाली और अफसोसनाक बात यह है कि इस मास्टर प्लान में पारदर्शिता रखने की सारी जिम्मेदारी खिलाड़ियों और कुछ जिम्मेदारी टीम मालिकों पर डाली गई है, लेकिन कहीं भी जिक्र नहीं है कि बीसीसीआइ की क्या जिम्मेदारी होगी? अपनी सुविधा से तोड़े-मरोड़े जाने वाले बोर्ड के नियमों में पारदर्शिता का क्या होगा? दरअसल, पारदर्शिता के लिए आरटीआइ के दायरे में आने से भागने वाली बीसीसीआइ के अधिकारियों के मुंह से पारदर्शिता शब्द अच्छा नहीं लगता। जगमोहन डालमिया के मास्टर प्लान के मुताबिक खिलाड़ियों को अब आइपीएल शुरू होने से एक महीने पहले अपने फोन नंबर बोर्ड को देने होंगे। खिलाडियों की कमाई का ब्यौरा बोर्ड को देना होगा। टीम मालिकों को खिलाड़ियों को करार के पैसे देने से पहले बोर्ड को जानकारी देनी होगी। मैच के दौरान खिलाड़ी ईयरफोन और माइक्रोफोन नहीं लगा पाएंगे।


Match Fixing: मैच फिक्सिंग

इसके अलावा टीम मालिकों को मैदान में बैठने की इजाजत नहीं होगी। कोई भी चयनकर्ता किसी टीम के साथ किसी भी हैसियत में नहीं जुड़ पाएगा और खिलाड़ी किसी अजनबी से किसी किस्म का तोहफा नहीं लेंगे। इस पूरी लिस्ट में कहीं इस बात का जिक्र तक नहीं है कि बीसीसीआइ के अध्यक्ष समेत तमाम अधिकारियों की पारदर्शिता का क्या होगा? इसमें कहीं इस बात का जिक्र नहीं है कि आइपीएल के संचालन में होने वाले खचोर्ं का ब्यौरा क्या सार्वजनिक किया जाएगा? क्रिकेट संघों को दी जाने वाली रकम क्या सावर्जनिक की जाएगी? आइपीएल के आयोजन में लग रहे काले धन के आरोप को लेकर क्या कोई पारदर्शिता बरती जाएगी? शायद नहीं, क्योंकि अगर इन्हीं सारी बातों का ब्यौरा देना होता तो बीसीसीआइ आरटीआइ के दायरे में ना आ जाती। आपको याद दिला दें कि पूर्व खेल मंत्री अजय माकन ने जब नेशनल स्पोर्ट्स बिल को पेश किया था, तो उसमें सभी खेल संगठनों के आरटीआइ के दायरे में आने की बात थी, लेकिन बीसीसीआइ उसके लिए तैयार नहीं हुई।


Match Fixing: मैच फिक्सिंग

शुरुआत में बीसीसीआइ के हवाले से कहा जा रहा था कि वह आरटीआइ के दायरे में इसलिए नहीं आना चाहती क्योंकि क्रिकेट एक बेहद लोकप्रिय खेल है। ऐसे में अगर बीसीसीआइ आरटीआइ के दायरे में आती है तो लोग कई ऐसे सवाल पूछेंगे जिनका जवाब देना संभव नहीं है। मसलन अगर किसी ने यह पूछ लिया कि चैंपियंस ट्रॉफी की टीम में वीरेंद्र सहवाग और हरभजन सिंह को क्यों नहीं चुना गया तो क्या जवाब दिया जाएगा? जवाब ना दिए जाने की सूरत में एक अतिरिक्त भार होगा कि आरटीआइ दायर करने वालों को यह बताया जाए कि उनके सवालों का जवाब नहीं दिया जा सकता। हालांकि सच्चाई इस तर्क से बिल्कुल परे थी। नेशनल स्पोर्ट्स कोड के सेक्शन-8 में खेल संगठनों को कुछ छूट दी गई थी।


Match Fixing: मैच फिक्सिंग

सेक्शन-8 के मुताबिक टीम के चयन, टीम के सपोर्ट स्टाफ के चयन या उन्हें हटाए जाने, खिलाड़ियों के प्रदर्शन, खिलाड़ियों की चोट और उनकी फिटनेस के अलावा डोपिंग टेस्ट के नतीजों के बारे में आरटीआइ दायर नहीं की जा सकती है। बावजूद इसके बीसीसीआइ इसके लिए तैयार नहीं हुई। यहां तक कि स्पॉट फिक्सिंग के बाद जब यह सवाल बोर्ड अध्यक्ष एन श्रीनिवासन से पूछा गया तो उन्होंने ताल ठोंककर कहा कि बीसीसीआइ एक प्राइवेट बॉडी है। वह सरकार से किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं लेती इसलिए उसे आरटीआइ के दायरे में लाने की कोई जरूरत नहीं है। हालांकि उनका यह दावा भी गलत था क्योंकि अप्रत्यक्ष तौर पर बीसीसीआइ सरकार से कई मदद लेती है। अब भी देश भर में कई स्टेडियम ऐसे हैं जो सरकारी हैं, लेकिन सरकार उन्हें मैचों के आयोजन के लिए बीसीसीआइ को मुहैया कराती है। इसके अलावा मैचों की सुरक्षा के लिए किए जाने वाले पुलिसिया इंतजाम के लिए बीसीसीआइ को सरकारी मदद ही मिलती है। जिसके लिए बोर्ड को मामूली रकम चुकानी होती है।


Match Fixing: मैच फिक्सिंग

दरअसल, आज चारों तरफ से आलोचना का शिकार होने के बाद खिलाड़ियों की पारदर्शिता की बात करने वाली बीसीसीआइ नहीं चाहती कि उससे वित्तीय मामलों को लेकर सवाल पूछे जाएं। पारदर्शिता और जवाबदेही के नाम पर बीसीसीआइ अपने फायदे के बारे में जानकारियां सार्वजनिक करती रही है, लेकिन उस फायदे का स्नोत क्या है जानना मुश्किल है। आइपीएल के शुरू होने के बाद से तो वित्तीय मामलों पर बीसीसीआइ ने पारदर्शिता को बिल्कुल ही खत्म कर दिया। यह जानना नामुमकिन है कि सचिन तेंदुलकर, महेंद्र धौनी, वीरेंद्र सहवाग या फिर विराट कोहली जैसे खिलाड़ियों को आइपीएल के हर सीजन में कितने पैसे मिलते हैं? इनकी बोली की कीमत तो सार्वजनिक की जाती है, लेकिन आइपीएल पर आए दिन आरोप लगते रहते हैं कि बोली के अलावा भी इन खिलाड़ियों को पैसे दिए जाते हैं। इतना ही नहीं अनकैप्ड खिलाड़ियों को दी जाने वाली रकम में तो और भी गड़बड़ी है। इसके अलावा जगमोहन डालमिया के मास्टर प्लान में इस बात का भी जिक्र नहीं है कि आइपीएल में यह नौबत आखिर क्यों आई? आइपीएल के छह सीजन गुजरने के बाद देर रात होने वाली पार्टियों और चीयरलीडर्स को बंद करने की बात कही जा रही है। ये कदम तब क्यों नहीं उठाए गए थे जब इन पार्टियों में शराब पीकर खिलाड़ियों के हंगामा करने की खबरें आई थीं। यहां तक कि एक विदेशी खिलाड़ी को महिला के साथ छेड़छाड़ के मामले में पुलिस स्टेशन और कोर्ट के चक्कर तक काटने पड़े थे, लेकिन तब तो हर कोई इस रंगीनी का मजा लेने के लिए बेताब था।


Match Fixing: मैच फिक्सिंग

कभी शोर होता भी था तो यह कहकर बात टाल दी जाती थी कि कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना। जिक्र इस बात का भी नहीं है कि आइपीएल को इस नौबत तक पहुंचाने वाले लोगों के खिलाफ क्या कोई कार्रवाई की जाएगी? यह सच है कि खिलाड़ियों ने स्पॉट फिक्सिंग की, यह भी सच है कि टीम मालिकों का नाम भी सट्टेबाजी में सामने आया, लेकिन इन सबसे बड़ा सच यह है कि भविष्य में इससे बचने के लिए सिर्फ खिलाड़ी या टीम मालिकों का पारदर्शिता बरतना ही काफी नहीं है। बीसीसीआइ को भी अपने कामकाज में पारदर्शिता बरतनी होगी। जिसकी बात पूरे मास्टर प्लान से नदारद है। वह इसलिए क्योंकि बीसीसीआइ में उद्योगपतियों और राजनेताओं का जमघट है और इन दोनों को ही पारदर्शिता जैसे शब्द पसंद नहीं आते।

इस आलेख के लेखक शिवेंद्र कुमार सिंह हैं

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