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इशरत जहां की मुठभेड़ में मृत्यु की जांच को लेकरजो विवाद खड़ा हो गया है, वह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। इस विवाद के कई पहलू हैं। एक तो इशरत जहां की पृष्ठभूमि और वह कैसे कार्यो में लिप्त थी? दूसरा, जिस मुठभेड़ में वह मारी गई क्या वह सही थी या उसकी हत्या की गई? तीसरा, क्या केंद्रीय जांच ब्यूरो इस मामले की सही ढंग से जांच कर रहा है? और चौथा यह कि इस मुठभेड़ में खुफिया विभाग की क्या भूमिका थी? इशरत की पृष्ठभूमि के बारे में सरकारी दस्तावेजों में पर्याप्त उल्लेख है। कहा जाता है कि अहमदाबाद पुलिस की क्राइम ब्रांच ने 15 जून 2004 को एक मुठभेड़ में 4 व्यक्तियों को मार गिराया। इनके नाम थे जीशन जौहर उर्फ अब्दुल गनी, अमजद अली उर्फ सलीम, जावेद गुलाम शेख उर्फ प्रनेश कुमार पिल्लई और इशरत जहां पुत्री शमीमा कौसर। मारे गये व्यक्तियों में दो- जीशन जौहर और अमजद अली पाकिस्तानी नागरिक थे।
जीशन के बारे में कहा जाता है कि वह पाक अधिकृत कश्मीर से जम्मू और कश्मीर में घुसा था और उसने ऊधमपुर में एक फर्जी पहचानपत्र बनवा लिया था। अमजद अली को लश्कर-ए-तैयबा ने विशेष तौर से महाराष्ट्र और गुजरात में आतंकवादी घटनाएं करने के लिए भेजा था। तीसरा व्यक्ति जावेद उर्फ पिल्लई के बारे में पता चला कि यह व्यक्ति 1994 में दुबई गया था, जहां प्रलोभन देकर उसका धर्म परिवर्तन किया गया और लश्कर-ए-तैयबा ने उसे अपने संरक्षण में ले लिया। पिल्लई ने कोचीन में एक पासपोर्ट बनवा लिया था ताकि उसकी गतिविधियों पर किसी को संदेह न हो। लश्कर-ए-तैयबा ने इशरत जहां और जावेद उर्फ पिल्लई को साथ कर दिया था और यह दोनों पति-पत्नी की तरह देश के विभिन्न स्थानों में गए। इनके लखनऊ, फैजाबाद और अहमदाबाद जाने के प्रमाण हैं। अपने दौरे में यह इत्र के व्यापार का कवर लेते थे। भारत सरकार ने गुजरात हाई कोर्ट में जो हलफनामा दाखिल किया उसमें स्पष्ट तौर से लिखा गया था कि जावेद उर्फ पिल्लई और इशरत जहां आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के सदस्य थे।1उल्लेखनीय है कि मुठभेड़ के बाद ही लाहौर से प्रकाशित ‘गजवा टाइम्स’ जो लश्कर का समाचारपत्र है, ने इस बात को स्वीकार किया कि इशरत जहां लश्कर की कार्यकर्ता थी, जिसे भारतीय पुलिस ने मार गिराया। अमेरिका की सरकार ने डेविड हेडली से पूछताछ के बाद भारत सरकार को एक औपचारिक पत्र भेजा था जिसमें स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि इशरत जहां एक ‘महिला सुसाइड बंबर’ थी, जिसे मुजम्मिल ने भर्ती किया था।
अमेरिका की एफबीआइ ने यह भी स्पष्ट किया कि लश्कर के इस दस्ते की योजना थी कि सोमनाथ मंदिर, अक्षरधाम और सिद्घि विनायक मंदिर पर हमले किए जाएं। यह सारे दस्तावेज प्रमाणिक हैं और उनमें लिखित तथ्यों पर अविश्वास करना आंख में पट्टी बांधना होगा। दुर्भाग्य से इस देश का एक बुद्धिजीवी वर्ग आज यह प्रमाणित करने में लगा हुआ है कि इशरत एक निदरेष युवा महिला थी। रही बात मुठभेड़ की सत्यता की, इसकी जांच चल रही है। गुजरात हाईकोर्ट ने इस विषय पर केंद्रीय जांच ब्यूरो की आलोचना की है और उसे जांच को सही दिशा में ले जाने का निर्देश दिया है।1केंद्रीय जांच ब्यूरो की अभी तक की जांच से उसकी निष्पक्षता पर संदेह होता है। जांच एक ऐसे पुलिस अधिकारी को क्यों दी गई जो इशरत की मां द्वारा नामित किया गया था। इस अधिकारी सतीश वर्मा के बारे में यह भी कहा जाता है कि इसकी स्वयं की पृष्ठभूमि अच्छी नहीं है। इसके अलावा जांच अधिकारी के खुफिया विभाग के तत्कालीन संयुक्त निदेशक, राजेंद्र कुमार से अच्छे संबंध नहीं थे।
खुफिया ब्यूरो के अधिकारियों का कहना है कि जांच अधिकारी ने कह रखा था कि वह राजेंद्र कुमार को ठिकाने लगाएगा। इन परिस्थितियों में जांच निष्पक्ष हो ही नहीं सकती सकती थी। निदेशक इंटेलीजेंस ब्यूरो ने केंद्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक से मुलाकात के दौरान इस बिंदु पर बल दिया। भारत सरकार ने सारी स्थिति का आकलन करने के पश्चात यह फैसला लिया कि सतीश वर्मा से जांच वापस ली जाए और दूसरे अधिकारी को सौंपी जाए। सतीश वर्मा से जांच वापस लेने से इस बात की स्वीकारोक्ति हो जाती है कि वह जांच सही दिशा में नहीं थी। सवाल यह उठता है कि निदेशक, केंद्रीय जांच ब्यूरो ने जांच को गलत दिशा में जाने ही क्यों दिया? ऐसा प्रतीत होता है कि समस्त प्रकरण में ऊपर से राजनीतिक दबाव आ रहा है। गृह मंत्रलय ने पहले एक हलफनामा दाखिल किया, जिसमें गुजरात पुलिस द्वारा प्रस्तुत तथ्यों को सही ठहराया गया था और इशरत जहां को स्पष्ट रूप से लश्कर का कार्यकर्ता माना था। बाद में राजनीतिक दबाव में तथ्यों को एक नया मोड़ दे दिया गया है। इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों पर जिस तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं वे प्रथम दृष्ट्या सत्य प्रतीत नहीं होते। यह सही है कि ब्यूरो आतंकवादियों की गतिविधियों की मानिटरिंग करता है और उनके बारे में प्रदेश पुलिस को सूचना देता है। इससे ज्यादा सामान्यत: उनकी भूमिका नहीं होती। अगर यह मान भी लिया जाए कि इशरत को गलत ढंग से मारा गया, तब भी यह विश्वसनीय नहीं है कि मारने के आदेश आइबी के अधिकारी ने दिया होगा। सत्ताधारी पार्टी जिस तरह से सीबीआइ का बचाव और आइबी पर आरोप लगा रही है उसका सुरक्षा व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।1आज भारत आतंकवाद से बुरी तरह ग्रस्त है। जैसे-जैसे अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में कम होती जाएगी, भारत पर आतंकी खतरा बढ़ता जाएगा। लश्कर प्रमुख हाफिज सईद ने कहा है कि 2014 में कश्मीर में जेहाद संघर्ष को और तीव्र किया जाएगा।
सवाल यह है कि ऐसी परिस्थितियों में सुरक्षा बल क्या करें? इशरत जहां से होने वाली मुठभेड़ के पीछे सच्चाई से क्या यह कम महत्वपूर्ण है कि उसकी पृष्ठभूमि क्या थी और उसको क्या काम दिया गया था? लश्कर का लक्ष्य भारत को खंडित करना, यहां मुगल राज्य की फिर से स्थापना करना है। ऐसे संगठन के कार्यकर्ता की मृत्यु को इतना तूल देना कहां तक सही है? जिस देश में एक आतंकवादी के जीवन को इतना महत्व दिया जाएगा, वह देश निश्चय ही आतंकवाद से लड़ने में अपने आपको अक्षम पाएगा। इस संदर्भ में जिस तरह वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार किया जा रहा है और खुफिया विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों पर जाल डाला जा रहा है उसका परिणाम यह होगा कि भविष्य में सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारी आतंकवाद से लड़ने से पहले अपनी नौकरी बचाएंगे, बाद में देश की सुरक्षा की सोचेंगे। यह एक बड़ी कीमत होगी जिसका खामियाजा देश की जनता को भुगतना पड़ेगा।
इस आलेख के लेखक प्रकाश सिंह हैं
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