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सुरक्षा पर नए सवाल

जागरण मेहमान कोना
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बिहार के बोधगया में सिलसिलेवार धमाकों के रूप में किया गया हमला स्तब्ध कर देने वाला है। आंतरिक सुरक्षा के लिए इस घटना के नतीजे बहुत दूर तक जाएंगे। बोधगया का महाबोधि मंदिर एक बहुत ही महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है और इस हमले के जरिये एक बार फिर धार्मिक विभाजन गहराने की कोशिश की गई है। बौद्ध धर्म के अनुयायी पूरी दुनिया में फैले हुए हैं और उनके लिए महाबोधि मंदिर में हुई यह घटना झकझोर देने वाली है। फिलहाल इस बारे में कुछ कहना कठिन है कि इस हमले को किसने अंजाम दिया और इसका असल मकसद क्या है, लेकिन इतना स्पष्ट है कि एक बहुत बड़ी साजिश के तहत बोधगया को निशाना बनाने का फैसला किया गया। केंद्रीय गृह सचिव की मानें तो यह एक आतंकी हमला है। उनके इस निष्कर्ष का अवश्य ही कुछ न कुछ ठोस आधार होगा, लेकिन यह स्पष्ट है कि हाल के समय में कुछ नक्सली हमलों के बाद इस घटना ने आंतरिक सुरक्षा के लिए कुछ नए सवाल अवश्य खड़े कर दिए हैं।1 प्रारंभिक खबरों के अनुसार इस हमले के पीछे इंडियन मुजाहिदीन का हाथ होने की आशंका व्यक्त की जा रही है।

संकटों का उजाला


इसी तरह एक विचार यह भी है कि इस घटना के पीछे म्यांमार के रोहंग्या मुस्लिमों पर हो रहे हमले भी एक वजह हो सकती है। वैसे इस बारे में कुछ भी दावे के साथ कहना मुश्किल है, लेकिन अगर वाकई ऐसा है तो पूरी आशंका है कि इस हमले को बांग्लादेश स्थित आतंकी संगठन हुजी की मदद से अंजाम दिया गया होगा। हुजी ने पहले भी भारत में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया है और इस संगठन ने देश के अनेक स्थानों पर अपनी जड़ें भी जमा ली हैं। देश की खुफिया एजेंसियों ने वैसे तो इस संगठन पर एक हद तक अंकुश लगा दिया है, लेकिन यह कहना सही नहीं होगा कि हुजी का पूरा नेटवर्क नष्ट हो गया है। जहां तक बोधगया में हुए सिलसिलेवार धमाकों का प्रश्न है तो यह स्पष्ट नजर आ रहा है कि यह हमला बहुत सोची-समझी साजिश का नतीजा है। जिन लोगों ने भी इस घटना को अंजाम दिया उन्हें अच्छी तरह पता था कि इस धार्मिक स्थल पर पूरी दुनिया से लोग आते हैं और यहां धमाका कर वे पूरी दुनिया को अपने इरादों की चेतावनी दे सकते हैं। इसके अतिरिक्त बिहार को इस धार्मिक स्थल से विभिन्न रूपों में अच्छी-खासी आय भी होती है। जाहिर है, इस हमले का असर बिहार की छवि और उसकी अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। यह अनायास नहीं है कि आतंकी हमलों का निशाना ऐसे शहरों, महत्वपूर्ण स्थलों और केंद्रों को बनाया जा रहा है जो किसी राज्य विशेष की पहचान हैं अथवा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी ख्याति रखते हैं। 1 बोधगया का महाबोधि मंदिर एक ऐसा ही स्थान है। सुरक्षा और खुफिया एजेंसियां जल्दी से जल्दी इस हमले की तह तक जाना चाहेंगी, लेकिन कोई भी यह आसानी से समझ सकता है कि इस तरह का हमला बाहरी मदद के बिना नहीं किया जा सकता। इस हमले के पीछे भारत की लुक ईस्ट नीति को बाधित करने की मंशा भी हो सकती है।

मित्रता का मजबूत धरातल


भारत पिछले कई वर्षो से पूर्वी एशियाई देशों के साथ अपने व्यापारिक संबंध प्रगाढ़ करने की नीति पर चल रहा है और देश की अर्थव्यवस्था में इसके सार्थक नतीजे भी सामने आए हैं। देश के अंदर और बाहर अनेक ऐसी शक्तियां हैं जिन्हें भारत की यह नीति रास नहीं आ रही है। महाबोधि मंदिर को निशाना बनाकर बौद्ध समुदाय की बहुलता वाले पूर्वी एशियाई देशों को एक तरह से चेतावनी देने की कोशिश की गई है। ऐसी शक्तियों को अपने इरादों की पूर्ति में कामयाबी नहीं मिलने वाली, क्योंकि भारत की छवि एक साफ-सुथरे और शांतिपूर्ण देश की है और ऐसे हमले उसकी छवि को बिगाड़ नहीं सकते। 1महाबोधि मंदिर में हुए हमले के संदर्भ में भी यह सामने आ रहा है कि पहले पकड़े गए आतंकियों के जरिये यह खुलासा हुआ था कि यह स्थान आतंकियों के निशाने पर है और इस लिहाज से एक बार फिर सुरक्षा के तंत्र पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं, लेकिन ऐसे हमलों को पूर्व सूचना के बावजूद रोक पाना आसान नहीं होता। खुफिया सूचनाएं लगातार आती रहती हैं, लेकिन उनके अनुरूप जरूरी बंदोबस्त कर पाना सहज नहीं होता। इसके लिए चाहे तो स्थानीय पुलिस को दोष दे दिया जाए, लेकिन किसी को इस पर भी विचार करना चाहिए कि क्या पुलिस अपने मौजूदा ढांचे में आतंकवाद जैसी चुनौती का सामना कर सकती है? जिस देश की पुलिस स्थानीय अपराधों के दबाव से ही सही तरह न निपट पाती हो उससे यह अपेक्षा कैसे की जा सकती है कि वह आंतरिक सुरक्षा की बड़ी चुनौतियों का सामना कर सकेगी?


सच तो यह है कि मौजूदा स्थितियों में राज्य इतने सक्षम ही नहीं हैं कि वे आतंकवाद की चुनौती का सामना कर सकें। हैरत की बात है कि इन स्थितियों में भी पुलिस सुधारों का काम लंबे समय से अटका पड़ा है। हमारे नीति-नियंता यह देखने से इन्कार कर रहे हैं कि मौजूदा ढांचे में पुलिस के प्रशिक्षण और समझ का जो स्तर है वह अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। खासकर भारत सरीखे लोकतांत्रिक और बहुसांस्कृतिक देश में आतंकवाद से निपटने के तौर-तरीके भिन्न ही होंगे। अपने देश में ऐसी सख्ती काम नहीं कर सकती कि जगह-जगह बैरीकेड लगा दिए जाएं और सघन जांच-पड़ताल का सिलसिला शुरू हो जाए। अगर ऐसा किया जाएगा तो नई तरह की समस्याएं खड़ी हो जाएंगी। जाहिर है आतंकवाद के खतरे से निपटने के लिए नए ढांचे और तौर-तरीकों की तलाश करनी होगी। पुलिस और स्थानीय खुफिया एजेंसियों की कमजोरियों के चलते ही राष्ट्रीय आतंक रोधी केंद्र यानी एनसीटीसी के गठन का प्रस्ताव किया गया है। 1 आज भले ही एनसीटीसी की राह में अनेक बाधाएं खड़ी नजर आ रही हों और अनेक राज्य ऐसे किसी केंद्र को अपने अधिकारों के लिए ठीक न मान रहे हों, लेकिन सभी पक्ष धीरे-धीरे इस दिशा में बढ़ते नजर आ रहे हैं। वैसे भी एनसीटीसी जैसे संवेदनशील मसले पर रातोंरात सहमति कायम हो पाना आसान नहीं है, लेकिन देर-सबेर यह केंद्र अस्तित्व में अवश्य आएगा। यह मान लेना सही नहीं होगा कि एनसीटीसी के गठन का प्रस्ताव राजनीति की भेंट चढ़ गया है, क्योंकि पर्दे के पीछे बातचीत की प्रक्रिया सही दिशा में आगे बढ़ रही है और यह तय है कि जैसे ही राज्यों की आशंकाओं का समाधान होगा, एनसीटीसी अस्तित्व में आ जाएगा।


इस आलेख के लेखक कमर आगा हैं


शरीफ का इम्तिहान

भरोसा बढ़ाने वाली भेंट


Tags: Bodhgaya Bihar, Bodhgaya, बोधगया, बौद्ध धर्म, इंडियन मुजाहिदीन, आतंकी हमला, बोधगया आतंकी हमला

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