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वर्ष 2008 के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था के संकटग्रस्त होने के साथ-साथ वहां के केंद्रीय बैंक ने प्रोत्साहन पैकेज जारी किया। उसने ब्याज दर न्यून रखी। इससे कंपनियों और उपभोक्ताओं के लिए ऋण लेकर खर्च करना आसान बना रहा, लेकिन दूसरी तरफ ब्याज दर न्यून होने के कारण निवेशकों के लिए अमेरिकी बैंकों में रकम जमा कराना लाभप्रद नहीं रह गया था। उन्होंने विदेशों की तरफ रुख किया था। फलस्वरूप भारत आदि देशों को विदेशी निवेश पर्याप्त मात्र में मिलता रहा। हाल में अमेरिका में संकट समाप्त होने के संकेत मिल रहे हैं। ब्याज दर न्यून होने के कारण उपभोक्ताओं द्वारा खपत में वृद्धि हुई है। बाजार में मांग बढ़ी है। बेरोजगारी दर में कुछ गिरावट आई है। नए रोजगार बनने की रफ्तार भी कुछ तेज हुई है। इस सुधार से उत्साहित होकर केंद्रीय बैंक के अध्यक्ष ने संकेत दिए हैं कि प्रोत्साहन को समाप्त किया जा सकता है।
प्रोत्साहन समाप्त होने से ब्याज दरों में वृद्धि होगी और निवेशकों के लिए अमेरिका में निवेश करना पुन: लाभप्रद हो जाएगा। इसलिए पिछले दो माह में विदेशी निवेशक भारत समेत दूसरे विकासशील देशों से अपने निवेश निकालकर वापस अमेरिका लाए हैं-ठीक उसी तरह जैसे बाजार में नया स्टोर खुल जाए तो खरीदार सहज ही उसकी ओर बढ़ने लगता है। उसी प्रकार पूंजी पुन: अमेरिका की ओर बढ़ने लगी है। 1प्रश्न यह है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में दिख रहा सुधार टिकाऊ होगा या नहीं? यदि वर्तमान सुधार टिकाऊ न हुआ तो निवेशक पुन: भारत आदि देशों की तरफ रुख करेंगे। मेरा आकलन है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में दिख रहा सुधार टिकाऊ नहीं होगा। यह सुधार ऋण पर आधारित है, जैसे दुकानदार ऋण लेकर आलीशान शोरूम बना ले और उसमें चार सेल्समैन नियुक्त कर दे तो बेशक रोजगार उत्पन्न होंगे, लेकिन मूल बात तो बिक्री की है।
यदि शोरूम से पर्याप्त बिक्री और आय होती है तो ऋण की अदायगी हो पाएगी और सेल्समैन के रोजगार टिकाऊ होंगे। बिक्री और आय के अभाव में दुकानदार ऋण का भुगतान नहीं कर पाएगा। ऐसे में शीघ्र ही दुकानदार का दिवाला निकल जाएगा और सेल्समैन की नौकरी समाप्त हो जाएगी। ऐसी ही स्थिति अमेरिका की है। 1वर्ष 2008 एवं 2012 के बीच अमेरिकी सरकार द्वारा लिए गए ऋण में 5,300 अरब डॉलर की वृद्धि हुई। इसके सामने अमेरिका की आय में मात्र 1,500 अरब डॉलर की वृद्धि हुई। यूं समङिाए कि एक डॉलर ऋण लेकर अमेरिकी सरकार देश की आय में मात्र 28 सेंट की वृद्धि हासिल कर पाई। यह भी स्वीकार होता यदि ऋण का उपयोग निवेश के लिए किया गया होता। तब भविष्य में आय की संभावना बनती, जैसे दुकानदार ऋण लेकर शोरूम बनाता है तो बिक्री धीरे-धीरे बढ़ती। परंतु अमेरिकी सरकार ने धन का उपयोग चालू खर्चो को पोषित करने के लिए किया, न कि निवेश के लिए। रिसर्च, शिक्षा और बुनियादी सेवाओं में किए जाने वाले निवेश में कटौती हुई है। इसलिए ऋण के उपयोग से नई आय उत्पन्न नहीं हो रही है। ऋण पर ब्याज चढ़ता रहा है और अमेरिका के पुन: संकटग्रस्त होने की संभावना बन रही है। दुर्भाग्यवश निवेशकों द्वारा रोजगार में देखी जा रही वृद्धि को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है और बढ़ते ऋण को नजरंदाज किया जा रहा है, जैसे एथलीट स्टेरायड लेकर तेज दौड़े तो इसे उसकी टिकाऊ क्षमता नहीं समझना चाहिए। इसी प्रकार ऋण के बल पर बन रहे रोजगार को टिकाऊ नहीं समझना चाहिए। 1वर्तमान में रोजगार में जो वृद्धि दिख रही है उसमें भी संदेह हैं। नए रोजगार पार्टटाइम और न्यून वेतन वाले उत्पन्न हो रहे हैं। चार फुल टाइम सेल्समैन के स्थान पर आठ पार्ट टाइम सेल्समैन रख लें तो रोजगार उत्पन्न होते दिखेंगे, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं होगा।
दूसरा संदेह है कि भारी संख्या में लोग हताश हो चुके हैं और उन्होंने रोजगार ढूंढना ही बंद कर दिया है। इसलिए इनकी गिनती बेरोजगारों में नहीं होती है, जबकि ये पूर्णतया बेरोजगार हैं। वर्तमान उत्साह का दूसरा आधार पूर्वानुमान है। 43 प्रमुख अर्थशास्त्रियों के सर्वे के हवाले से बताया गया कि अगले वर्ष के मध्य में विकास दर तीन प्रतिशत पर पहुंच जाएगी जो कि वर्तमान में एक से दो प्रतिशत के बीच घूम रही है। यह आकलन भी मुख्यत: बढ़ते रोजगार पर आधारित है जो कि स्वयं संदेह के घेरे में है। 1मेरे अनुमान में अमेरिका की अर्थव्यवस्था में वर्तमान में दिख रहा उछाल वास्तव में आने वाले संकट का द्योतक है, जैसे दिया बुझने के पहले धधकता है। वर्तमान सुधार पूर्णतया ऋण पर आधारित हैं। जिस प्रकार डिस्काउंट देकर दुकानदार माल बेच लेता है उसी प्रकार ब्याज दर न्यून रखकर केंद्रीय बैंक ने अर्थव्यवस्था को चलाया है। डिस्काउंट देने की सार्थकता तभी है जब बाद में ऊंचे दाम पर माल को बेचा जा सके। अमेरिका ऐसा कर सकेगा, इसकी संभावना कम ही है। मूल रूप से अमेरिका की प्रतिस्पर्धा करने की शक्ति का ह्रास हो रहा है। प्रोत्साहन पैकेज समाप्त होने के साथ-साथ ब्याज दर में वृद्धि होगी और संकट पुन: आना शुरू हो जाएगा, यद्यपि इसमें एक-दो वर्ष का समय लग सकता है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था की चाल और हमारे हालात में गहरा संबंध है। अमेरिका की ब्याज दर न्यून होने से 2008 से 2012 तक हमें विदेशी निवेश भारी मात्र में मिला है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक द्वारा प्रोत्साहन पैकेज समाप्त करने से अमेरिका में ब्याज दर बढ़ेगी और एक बार भारत से विदेशी निवेश का पलायन होगा, जैसाकि पिछले दो माह में देखा गया है, परंतु अमेरिका का यह उछाल टिकाऊ नहीं होगा। सच्चई यह है कि अमेरिका ऋण के बोझ से दबता जा रहा है और मेरे आकलन में एक-दो वर्ष में पुन: संकट में आएगा। तब निवेशक फिर से विकासशील देशों की तरफ मुड़ेंगे। हमें तैयारी रखनी चाहिए कि उस परिस्थिति में निवेशक भारत की तरफ रुख करें, न कि दक्षिण अफ्रीका अथवा ब्राजील की तरफ।
इस आलेख के लेखक डां. भरत झुनझुनवाला हैं
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