Menu
blogid : 5736 postid : 604426

land acquisition bill 2013: नए युग की शुरुआत

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

पांच सितंबर को संसद ने भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास, पुनस्र्थापना में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार बिल पर मुहर लगा दी। भूमि अधिग्रहण बिल की अवधारणा को साकार होने में दो वर्ष का समय लगा। इन दो वर्षो में देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग समूहों ने इस बिल में जो दिलचस्पी दिखाई उससे स्पष्ट हो जाता है कि यह बिल एक ऐतिहासिक बिल है। यह संप्रग सरकार द्वारा जनता को अधिकारों से लैस करने के कानूनों की दिशा में पांचवां मील का पत्थर है। इससे पहले सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, खाद्य सुरक्षा अधिकार और वन अधिकार को लेकर कानून बनाए जा चुके हैं। इन बिलों का उद्देश्य आम आदमी का सशक्तीकरण और हाशिये पर सिमटे समुदायों के अधिकारों की रक्षा है। हालांकि जैसा कि किसी भी अच्छे कानून के मामले में होता है, नागरिक समाज के कुछ समूहों और कुछ औद्योगिक व कारपोरेट गुरुओं ने इस कानून पर भी हमला बोला है। मेरे ख्याल से, यह आलोचना अपने आपमें इस तथ्य की पुष्टि करती है कि हमने एक अच्छा कानून तैयार किया है। एक ऐसा कानून जो किसी खास समूह के हित न साधता हो, बल्कि टिकाऊ विकास के लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध है।

देश में एक गरीबी रेखा के स्थान पर दो तरह की रेखाएं


पिछले सप्ताह मुङो दैनिक जागरण टीम के साथ नए भूमि अधिग्रहण बिल पर चर्चा करने का मौका मिला। मैं इस अपेक्षा से जागरण कार्यालय गया था कि जागरण टीम इस कानून की ‘वामपंथी’ प्रकृति के आरोप में मुझ पर चढ़ाई कर देगी। जागरण हमारी हालिया पहलों का बड़ा प्रशंसक नहीं रहा है और मैं मान रहा था कि इस प्रयास को भी कुछ संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा होगा। मैं तब हैरान रह गया जब जागरण संपादक मंडल ने सराहना की कि हमने एक ऐसा मसौदा तैयार किया है जो विभिन्न प्रतिस्पर्धी हितों के क्षेत्र में संतुलन कायम करता है। मुङो सुखद आश्चर्य हुआ। असल में, यह नया कानून तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था और उन विविध सामाजिक संरचनाओं के बीच एक समझौता है, जिन्हें संवेदनशीलता के साथ समङो जाने की जरूरत है। यही वह भावना है जिसके साथ हमें इस कानून को लागू करने के लिए काम करना है। यह ऐसा कानून नहीं है, जो किसी भी क्षेत्र के खिलाफ लक्षित है। यह कानून महज किसानों या आदिवासियों के ही पक्ष में नहीं है। दरअसल, यह कानून जनवादी है। 1इस कानून को सही ढंग से समझने के लिए इसे एक बीमा पॉलिसी के रूप में देखना चाहिए। यह कानून जबरन अधिग्रहण के खिलाफ गारंटी है। यह बिल वायदा है कि स्वतंत्र भारत के पिछले छह दशकों के विपरीत अब किसी भी परिवार का उसकी इच्छा के खिलाफ उसकी भूमि से विस्थापन नहीं होगा। हम अनुचित अधिग्रहण को सरल बनाने के लिए किसी गरीब और वंचित व्यक्ति के अधिकारों की बलि नहीं चढ़ा सकते। मुङो पूरा विश्वास है कि कोई भी ऐसा नहीं चाहता। समाचार पत्रों में मुआवजे, पुनर्वास और पुनस्र्थापना संबंधी प्रावधानों पर काफी चर्चा हुई है। मैं दो और महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहूंगा। इसके साथ ही कलेक्टर की भूमिका और अपील के तंत्र पर भी प्रकाश डालना चाहूंगा।

सुरक्षा पर नए सवाल


इस नए बिल के दूरगामी पहलुओं में से एक यह है कि इसमें जिलाधिकारी की शक्तियों पर अंकुश लगाया गया है। 1894 एक्ट के तहत यह तय करने का पूरा प्राधिकार कलेक्टर को ही प्राप्त था कि जनहित में कौन सी गतिविधियांआती हैं। नए कानून के तहत यह निर्धारित करने का अधिकार जिलाधिकारी से वापस ले लिया गया है। इस कानून में जनहित के मापदंड सुस्पष्ट कर दिए गए हैं। जिलाधिकारी इस कानून में उल्लिखित जनहित कार्यो की सूची में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता। 1894 कानून के तहत यह निर्धारित करने का अधिकार भी जिलाधिकारी के पास था कि विस्थापित को कितना मुआवजा दिया जाना चाहिए। नए कानून में मुआवजा निर्धारित करने का एक फामरूला है, जिसमें जिलाधिकारी कोई परिवर्तन नहीं कर सकता है। उसका काम बस निर्देशित दर पर मुआवजे की गणना कर इसकी अदायगी सुनिश्चित करना है। पुराने कानून में जिलाधिकारी को यह शक्ति थी कि कब्जा कब लिया जाए। वह एक माह का नोटिस देकर किसी भी परिवार को विस्थापित कर सकता था। अब कब्जा तभी लिया जा सकता है जब नए कानून के प्रावधानों के तहत भूस्वामी को मुआवजा अदा कर दिया जाए और पुनर्वास और पुनस्र्थापना की तमाम शर्ते पूरी कर दी जाएं।

Money Mantra: बादलों में बंद रोशनी


इन सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पुराना कानून जिलाधिकारी को आपात क्लॉज की निरंकुश शक्तियों से लैस करता था। आपात स्थिति क्या है, इसका निर्धारण भी पूरी तरह जिलाधिकारी की विवेचना पर निर्भर करता था। नए कानून में इस छिद्र को बंद कर दिया गया है। अब केवल दो स्थितियों में ही आपात धारा का इस्तेमाल किया जा सकता है। एक तो प्राकृतिक हादसे की सूरत में और दूसरे राष्ट्रीय सुरक्षा की जरूरत को देखते हुए। इनके अलावा किसी अन्य सूरत में जिलाधिकारी आपात कारणों के आधार पर जमीन का अधिग्रहण नहीं कर सकता है। इसके अलावा नए कानून के तहत हमने पुनर्विचार याचिका का सार्थक और प्रभावी तंत्र भी विकसित किया है। अगर कोई व्यक्ति इस कानून के तहत दिए गए अवार्ड से संतुष्ट नहीं है तो वह भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनस्र्थापना प्राधिकरण के समक्ष मुआवजे या अन्य सुविधाओं में संशोधन करने या फिर वृद्धि करने की अपील कर सकता है। 1इस प्राधिकरण की स्थापना नए कानून के तहत की गई है। प्राधिकरण को छह माह के भीतर ही अपील पर फैसला सुनाना होगा। अगर इसके बाद भी कोई परिवार मुआवजा या अन्य सुविधाओं से असंतुष्ट रहता है तो वह हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सकता है। यह कानून अतिउत्साही जिलाधिकारियों के अधिग्रहण के असीमित अधिकारों पर अंकुश लगाता है। विकास की पूर्वशर्त के रूप में विस्थापन और अभाव को स्वीकार करने का युग खत्म हो गया है। मुङो जरा भी संदेह नहीं है कि भारत इस कानून को आत्मसात करेगा और हम केवल आर्थिक रूप से ही विकास नहीं करेंगे, बल्कि लोकतांत्रिक और सामाजिक समानता के स्तर पर भी तरक्की करेंगे। ऐसा विकास जिसमें सबकी भागीदारी होगी।

इस आलेख के लेखक जयराम रमेश हैं


Web Title: land acquisition bill 2013


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to MANTU KUMAR SATYAMCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh